भारत एक ऐसा देश हैं जहां आलू-प्याज की बढ़ती हुई कीमतों के मसले पर सरकारें गिर जाती हैं..इस साल के आखिर में 5 विधानसभा और अगले साल की शुरुआत में देश में आम चुनाव होने हैं. इस लिहाज से भारत सरकार कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है. देश में खाने-पीने की जरूरी चीजों की कीमतों काबू में रखने के लिए धड़ाधड़ फैसले कर रही हैं, सरकार महंगाई पर काबू पाने के लिए कई ठोस कदम उठाए हैं. सरकार ने गेंहू, चावल, प्याज समेत कई चीजों के निर्यात पर रोक लगा दी. मोदी सरकार के इन फैसलों ने पूरी दुनिया की नींद उड़ा दी है. मंहगाई को कंट्रोल में रखने के भारत के उपाय दुनिया को काफी महंगे पड़ रहे हैं.
दरअसल, ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में पूरी दुनिया इकॉनोमी इस कदर आपस में जुड़ी हुई हैं कि किसी एक कोने में होने वाली कोई घटना पूरी दुनिया पर असर डाल देती है. और ऐसी ही एक घटना है यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस का अनाज डील को रद्द करना. रूस का ये फैसला, भारत के महंगाई को कंट्रोल करने वाले वाले फैसलों के साथ मिलकर कई देशों में खाद्य संकट पैदा कर रहा है. पहले बात करते हैं भारत की.इनमें गेंहूं , चावल , चीनी और प्याज को लेकर किए गए फैसले शामिल हैं यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद पिछले साल ही भारत ने गेहूं के निर्यात पर पांबदी लगा थी. भारत के इस फैसले को लेकर दुनिया के कई देशों समेत ताकतवर देशों के समूह जी-7 ने काफी हो हल्ला मचाया लेकिन भारत अपने फैसले से टस से मस नहीं हुआ. इसके बाद भारत ने हाल ही में गैर बासमती चावल के निर्यात पर भी पाबंदी लगा दी. गेहूं के साथ-साथ चावल भी पूरी दुनिया में सबसे अधिक खाया जाने वाला अनाज है.
भारत ने चावल, प्याज और गेंहू के निर्यात पर रोक लगाई
भारत दुनिया में गैर बासमती चावल का 40 फीसदी हिस्सा निर्यात करता है.एशिया और अफ्रीका के 42 देश अपनी जरूरत का 50 फीसदी चावल भारत से ही खरीदते हैं. कुछ देश तो 80 फीसदी तक चावल भारत से खरीदते हैं. भारत के अलावा पाकिस्तान, थाइलैंड और वियतनाम जैसे देश भी चावल का उत्पादन करते हैं लेकिन इतनी बड़ी मात्रा में चावल की भरपाई करने उनस बस की बात नहीं है. भारत के इस फैसले का असर चावल के इंटरनेशनल मार्केट में दिखाई देने लगा है. संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के मुताबिक जुलाई के महीने में चावल की कीमत में 2.8 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो गई जो साल 2011 के बाद सबसे अधिक है.
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जाहिर है चावल की कीमतों में बढ़ोत्तरी से उन गरीब देशों पर सीधी असर पड़ेगा जिनका विदेशी मुद्रा भंडार कम है लिहाजा महंगाई और ज्यादा बढ़ जाएगी. यही नहीं, हाल ही में टमाटर की बढ़ी हुई कीमतों के चलते परेशानी का सामना कर चुकी भारत सरकार ने अब प्याज को लेकर भी सतर्कता बरतते हुए प्याज के निर्यात पर 40 फीसदी ड्यूटी लगा दी है जिसके बाद अब दुनिया के मार्केट में भारत के प्याज की सप्लाई कम हो जाने की पूरी संभावना है. इसके अलावा मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत सरकार अगले महीने से चीनी के निर्यात पर भी पाबंदी लगा सकती है. पिछले सात सालों में भारत ने चीनी के निर्यात पर पाबंदी नहीं लगाई है. लेकिन इस बार ऐसी नौबत आती दिख रही है.
भारत प्याज और चीनी निर्यात करने वाला दूसरा देश
भारत प्याज और चीनी निर्यात करने वाला दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है. जाहिर है भारत के इन फैसलों से हाहाकार मचना लाजिमी है. खासतौर से मिडिल ईस्ट के देश तो भारतीय चीनी के बड़े ग्राहक है. एक आंकड़े के मुताबिक, पिछले साल कतर ने 90 फीसदी, यूएई ने 43 फीसदी, बहरीन ने 34 फीसदी और सऊदी अरब और कुवैत ने 28-28 फीसदी चीनी भारत से खरीदी थी. सवाल ये भी है कि क्या खाद्य पदार्थों की कीमतों में हो रही वृद्धि के लिए भारत जिम्मेदार है?
दरअसल अल-नीनो के चलते भारत में कृषि उत्पादन का हिसाब-किताब थोड़ा बिगड़ सा गया है. पिछले 100 सालों में अगस्त के महीने में इस बार सबसे कम बारिश हुई हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक देश में गेहूं का उत्पादन पहले से ही 10 फीसदी कम हुआ है और अब चावल के उत्पादन पर भी असर पड़ता नजर आ रहा है. यही नहीं भारत अपनी जरूरत के मुताबिक दालें भी नहीं पैदा कर पा रहा है और इसकी पूर्ति के लिए उस अब मोजाम्बीक जैसे अफ्रीकी देश से दालें आयात करने होंगी. भारत में खाद्य पदार्थों की कीमत में करीब 11 फीसदी का इजाफा हो चुका है.
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दुनिया भर में बढ़ा खाद्य संकट
दुनिया भर में बढ़ रहे खाद्य संकट का एक सबसे बड़ा कारक यूक्रेन युद्ध भी बना हुआ है. दरअसल यूक्रेन अनाज और खासतौर से गेंहूं का एक बड़ा उत्पादक देश है. यूक्रेन के गेहूं को दुनिया के मार्केट में पहंचने के लिए काला सागर यानी ब्लैक सी से होकर गुजरना होता है जहां रूस की नेवी में मजबूत नाकेबंदी कर दी है. यूक्रेन की जंग शुरू होने से पहले दुनिया के 40 करोड़ लोग यूक्रेन का अनाज ही खाते थे. एक रिपोर्ट के मुताबिक इंटरनेशनल अनाज मार्केट में 10 फीसदी गेहूं, 15 फीसदी मक्का और 13 फीसदी ज्वार यूक्रेन से ही आता था.
पिछले साल संयुक्त राष्ट्र संघ की मध्यस्थता में एक अनाज डील हुई थी जिसके तहत यूक्रेन के अनाज को उसके बंदरगाहों से बाहर निकाल कर संयुक्त राष्ट्र संघ के जरिए जरूरतमंद देशों तक पहुंचाया गया था लेकिन अब रूस इस डील से पीछे हट गया है. जाहिर है रूस के इस फैसले से भारी अनाज संकट खड़ा हो गया है और दुनिया भारत की ओर देख रही है लेकिन भारत के सामने सबसे पहली प्राथमिकता अपनी आवाम का पेट भरने की है लिहाजा सरकार एक के बाद एक सख्त फैसला लेती जा रही है.
सुमित कुमार दुबे की रिपोर्ट
Source : News Nation Bureau