निहत्थे भारतीयों पर अंधाधुंध फायरिंग में सैकड़ों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, तो कई अन्य घायल हो गए. 13 अप्रैल 1919 यानी बैसाखी के दिन ब्रिटिश (British) सैन्य अधिकारी जनरल डायर (General Dyer) ने अपने सैनिकों को राष्ट्रवादी नेताओं सैफुद्दीन किचलू और सत्यपाल की गिरफ्तारी के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध करने के लिए पंजाब (Punjab) के अमृतसर में स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) के पास एक खुले क्षेत्र में एकत्र निहत्थी भीड़ पर गोलियां चलाने का आदेश दिया था. बताते हैं कि इस मौके पर बाग में 15 से 20 हजार के आसपास लोग एकत्रित थे.
104 साल बाद जलियांवाला बाग हत्याकांड को याद
नरसंहार ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की क्रूरता की याद दिलाता है, जिसने 2023 में 104 साल पूरे कर लिए हैं. यह दुखद नरसंहार भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ बन गया. इसने भारत के कोने-कोने में स्व-शासन और स्वतंत्रता की मांग को और तेज कर दिया. यह नरसंहार क्रूर रोलेट एक्ट का परिणाम था, जिसने ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार को राजद्रोह के संदेह में किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमे के गिरफ्तार करने की अनुमति दे दी थी. इस कानून के तहत किचलू और सत्यपाल को गिरफ्तार कर किया गया था. इसका पूरे भारत खासकर पंजाब में व्यापक विरोध हुआ. विरोध की इसी कड़ी में जलियांवाला बाग में बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी एकत्र हुए थे, जिनमें सभी आयु वर्ग के पुरुष, महिलाएं और बच्चे शामिल थे.
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तब तक फायरिंग जब तक गोला-बारूद खत्म नहीं हो गया
इस विरोध को ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के लिए खतरा माना गया और अमृतसर क्षेत्र के प्रभारी अधिकारी जनरल रेजिनाल्ड डायर ने इसके खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का बीड़ा उठाया. जनरल डायर ब्रिटिश सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ बाग में दाखिल हुआ. उसने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए बिना किसी चेतावनी के उन पर गोली चलाने का आदेश दे दिया. लगभग 1,650 राउंड फायरिंग की गई, जिसमें 500 से अधिक लोग मारे गए और 1,500 से अधिक घायल हुए. ब्रिटिश सैनिकों की गोला-बारूद के खत्म होने तक 20 मिनट से अधिक समय तक फायरिंग की गई. हालांकि ब्रिटिश हुक्मरानों ने आधिकारिक तौर पर 379 लोगों के मारे जाने और 1200 के घायल होने की पुष्टि की.
जलियांवाला बाग हत्याकांड का महत्व
- इस घटना के विरोध में भारत और विदेशों में बड़े पैमाने पर आक्रोश देखने में आया. इसने अंततः ब्रिटिश हुकूमत से आजादी के लिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के आह्वान को और हवा दी. यहां तक कि इस मांग के फलस्वरूप उदारवादी राष्ट्रवादियों ने भी अधिक कट्टरपंथी रुख अपनाना शुरू कर दिया.
- रवींद्रनाथ टैगोर ने ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ विरोध के संकेत के रूप में नाइटहुड की उपाधि समेत तमाम सम्मान वापस लौटा दिए. टैगोर को 1915 मे ब्रिटिश हुकूमत ने नाइटहुड की उपाधि प्रदान की थी.
- जलियांवाला बाग नरसंहार में घायल स्वतंत्रता सेनानी उधम सिंह ने प्रतिशोध के रूप में पंजाब के तत्कालीन लेफ्टिनेंट-गवर्नर और रेजिनाल्ड डायर के हिमायती माइकल ओ डायर की 31 जुलाई 1940 हत्या कर दी.
- जलियांवाला नरसंहार के बाद पंजाब में हुई हिंसक घटनाओं और अशांति की जांच के लिए ब्रिटिश सरकार ने हंटर आयोग की स्थापना की.
- इस क्षेत्र में 2019 में उन लोगों की याद में एक संग्रहालय बनाया गया है, जिन्होंने जलियांवाला बाग नरसंहार में अपनी जान गंवाई. साथ ही बाग में नरसंहार का एक प्रामाणिक विवरण भी प्रस्तुत किया.
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ब्रिगेडियर जनरल डायर से हंटर आयोग की पूछताछ
1919 में स्कॉटलैंड के पूर्व सॉलिसिटर जनरल और स्कॉटलैंड में कॉलेज ऑफ जस्टिस के सीनेटर लॉर्ड विलियम हंटर की अध्यक्षता में एक जांच समिति का गठन किया गया था. इस पैनल को हंटर कमीशन के नाम से जाना जाता है. डायर को उसी साल 19 नवंबर को आयोग के सामने पेश होने के लिए बुलाया गया था. डायर ने हंटर आयोग के समक्ष जो कहा, वह ज्यादातर लोगों को हैरान कर देगा. डायर के साथ आयोग की बातचीत को निगेल कोललेट ने 2006 में अपनी किताब 'द बुचर ऑफ अमृतसर: जनरल रेजिनाल्ड डायर' में प्रकाशित किया है. डायर ने कहा, 'गोली चलाने से पहले कोई चेतावनी जारी करने का विचार उस समय मेरे दिमाग में नहीं आया. मैंने केवल यह महसूस किया कि मेरे आदेशों का पालन नहीं किया गया था. मार्शल लॉ का उल्लंघन किया गया और यह मेरा कर्तव्य था कि मैं इसे फायरिंग के जरिये तुरंत तितर-बितर कर दूं. अगर मैंने थोड़ी-बहुत गोलियां चलाई होती, तो उसका प्रभाव काफी नहीं होता.' डायर ने आयोग को बताया, 'बाग में इकट्ठे हुए लोग विद्रोही थे, जो उसकी सेना को अलग-थलग कर उनकी आपूर्ति रोकने की कोशिश कर रहे थे. इसलिए मैंने उन पर गोली चलाना अपना कर्तव्य समझा. मुझे लगता है कि बहुत हद तक संभव था कि मैं बिना गोली चलाए भीड़ को तितर-बितर कर देता. हालांकि वे फिर से वापस आते और मुझ पर हंसते. इस तरह में खुद की नजरों में मूर्ख बन जाता.' गौरतलब है कि डायर को जलियांवाला बाग नरसंहार का दोषी मान पद से हटा दिया गया था.
HIGHLIGHTS
- 1919 में बैसाखी के दिन जलियांवाला बाग में दसियों हजार भारतीय एकत्र थे
- ब्रिटिश जनरल डायर ने निहत्थे भारतीयों पर बगैर चेतावनी करा दी फायरिंग
- हंटर आयोग ने 1919 के अंत में जनरल डायर को नरसंहार का दोषी माना था