जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) में भारतीय सुरक्षा बलों के ऑपरेशन से पाकिस्तान (Pakistan) पोषित आतंकवादियों (Terrorists) का मनोबल टूट रहा है. यह अलग बात है कि पाकिस्तान पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) में न सिर्फ टेरर कैंप चला रहा है, बल्कि एलओसी (LoC) पार से प्रशिक्षित आतंकियों की घुसपैठ कराने की भी लगातार कोशिश कर रहा है. नापाक साजिश के इस दौर में भारतीय सुरक्षा बलों (Indian Forces) को विगत दिनों मुठभेड़ में मारे गए आतंकियों से मिले हथियारों ने फिर चौंका दिया है. विगत दिनों बारामूला के वानीगाम में सुरक्षा बलों से मुठभेड़ में आतंकियों ने भारतीय जवानों पर स्टील बुलेट (Steel Bullets) दागी. आम बुलेट से काफी अलग स्टील बुलेट बेहद खतरनाक मानी जाती हैं, जो बंकर समेत बुलेट प्रूफ जैकेट (Bullet Proof Jackets) तक को आसानी से भेद देती हैं. हालांकि पहले भी स्टील बुलेट आतंकियों से बरामद की गई, लेकिन अब आतंकी इनका ही इस्तेमाल कर रहे हैं.
पहली बार आतंकियों ने कब की इस्तेमाल
आगे के हिस्से को बनाने में स्टील का इस्तेमाल कर बनाई गईं खास बुलेट का इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर में पहली बार 2017-18 में देखने में आया था. खासकर जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने घाटी में सुरक्षा बलों पर स्टील बुलेट्स से फायरिंग की थी, जिसनें आतंकवाद रोधी अभियान के तहत बनाए गए बंकर को भी भेद दिया था. यह आतंकी हमला दक्षिण कश्मीर के लेथपुरा में सीआरपीएफ के कैंप कर जैश-ए-मोहम्मद ने किया था, जिसमें सीआरपीएफ के 5 जवान शहीद हो गए थे. शहीद हुए सभी जवान बुलेट प्रूफ जैकेट पहने हुए थे, लेकिन स्टील बुलेट ने उन्हें भेद दिया. इसके बाद लगातार कई मौकों पर आतंकियों ने सुरक्षाबलों पर हमला करने के लिए स्टील बुलेट का इस्तेमाल किया. इनमें पुलवामा में 2016 में हुए आतंकी हमले और फिर 2019 में अनंतनाग हमले में सिर्फ और सिर्फ स्टील बुलेट का इस्तेमाल किया गया.
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इस तरह बन जाती है घातक स्टील बुलेट
सामान्यतः एके-47 या किसी अन्य राइफल से दागी जाने वाली बुलेट के आगे का हिस्सा तांबे और हल्के स्टील से बना होता है, जो बुलेट प्रूफ जैकेट या बंकर को भेद नहीं पाता. लेकिन, अब आतंकी खासकर जैश के सदस्य स्टील बुलेट का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिनकी गोलियों का आगे का हिस्सा स्टील या टंगस्टन कार्बाइड से बना होतात है. हथियारों की दुनिया में ऐसी बुलेट को आर्मर पियर्सिंग (एपी) कहा जाता है, जो तांबे के अग्र भाग वाली बुलेट की तुलना में 7 इंच मोटी स्टील की चादर को आसानी से भेदने में सक्षम है. जाहिर है इसके आगे बुलेट प्रूफ जैकेट कहां टिक सकेगी. स्टील बुलेट भले ही जैश के आतंकी इस्तेमाल कर रहे हों, लेकिन इसका एक चाइनीज एंगल भी है.
स्टील बुलेट्स का चाइनीज एंगल
जैश के आतंकियों की ओर से स्टील बुलेट बरसाए जाने के बाद भारतीय खुफिया ने जो जानकारी एकत्र की, वह चौंकाने वाली निकली. पता चला की चीन की मदद से पाकिस्तान ने एके-47 को तांबे की गोलियों को स्टील का बनाने की तकनीक हासिल की है. चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी अपने आधुनिक हथियारों में स्टील बुलेट का इस्तेमाल लंबे समय से कर रही है. पहले चीन में भी तांबे के अग्रभाग वाली बुलेट्स का इस्तेमाल होता था. तांबे की बुलेट का राइफल्स पर ज्यादा निशान नहीं पड़ता, दूसरे उनका रखरखाव भी आसान होता है क्योंकि वह आसानी से ऑक्सीडाइज नहीं होतीं. इसके बावजूद चीन ने तांबे के बजाय स्टील का इस्तेमाल शुरू किया, क्योंकि उसके पास तांबे का भंडार कम है. एक और बड़ी बात यह भी है कि स्टील बुलेट्स की लागत कम आती है. फिर चीन ने अपने सदाबहार दोस्त पाकिस्तान को स्टील बुलेट्स मुहैया कराई और बाद में तकनीक भी बता दी. जाहिर है अब पाकिस्तान जैश या अन्य आतंकियों को स्टील बुलेट्स उपलब्ध करा रहा है.
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क्या कर रही मोदी सरकार
आतंकियों के पास स्टील की बुलेट्स की बरामदगी ने सुरक्षा बलों को मुठभेड़ के समय संवेदनशील बना दिया था. हालांकि तमाम शोध के बाद इसका भी तोड़ ढूंढ़ निकाला गया. इसके तहत अब जम्मू-कश्मीर खासकर दक्षिणी कश्मीर में आतंक विरोधी अभियानों में जिन वाहनों का इस्तेमाल हो रहा है, उनमें सुरक्षा की एक अतिरिक्त सतह का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसकी वजह से स्टील बुलेट्स उन्हें भेद नहीं पाती. यह अलग बात है कि जवानों द्वारा पहनी गई बुलेटप्रूफ जैकेट्स अभी भी उनके आगे कुछ हद तक नाकाम साबित हो रही हैं. हालांकि मोदी सरकार ने बड़े पैमाने पर ऐसी बुलेट प्रूफ जैकेट्स की खरीद शुरू कर दी है, जो स्टील बुलेट्स की मारक क्षमता को भोथरा कर सके.
HIGHLIGHTS
- स्टील बुलेट्स स्विस आर्मी के कर्नल एडवर्ड रुबिन ने 1982 में बनाई
- चीन भी अपनी पिपुल्स लिबरेशन आर्मी के जवानों को दे रहा स्टील बुलेट
- पाक को भी बता दी स्टील बुलेट तकनीक, जो आ रही आतंकियों के काम