मेरा बेटा आज भी जिंदा है! नम आंखों से अपने शहीद बेटे की वर्दी को सीने से लगाए एक मां आज भी ये कहती है. दरअसल ये कहानी है पंजाब के एक जाबांज बेटे राजेश कुमार की, जो कारगिल युद्ध में अपनी आखिरी सांस तक भारत मां के लिए लड़ते रहे. शहीद राजेश कुमार 16 डोगरा रेजिमेंट में तैनात थे. सरहद पार से जब अपने नापाक मंसूबो को मुकम्मल करने पाकिस्तानी भारतीय सीमा में घुसपैठ कर रहे थे, तो वीर नौजवान राजेश कुमार ने उन्हें बुरी तरह खदेड़ लिया था. इसी युद्ध को लड़ते हुए, दुश्मनों की गोलियों ने उनका सीना छलनी कर दिया और वो हमेशा-हमेशा के लिए हमसे दूर चले गए...
मगर उनकी मां के लिए उनका बेटा आज भी जिंदा है. दरअसल शहीद राजेश कुमार की मां महिंदर कौर उन्हें याद करते हुए कहती है, मेरा बेटा आज भी मेरे पास है. मैं आज भी उसके बिस्तर, कपड़े, जूते और हर एक चीज़ का ख्याल रखती हूं. मुझे लगता है वो यहीं हमारे बीच ही मौजूद है. वो हमें छोड़ कर कहीं नहीं गया है. बता दें कि शहीद राजेश कुमार अपनी मां का एकलौता बेटा था, जिनकी पांच बहने थी. जब भी वे छुट्टी लेकर घर आते, घर में त्योहार जैसा माहौल होता था.
मां को याद है वो आखिरी छुट्टियां...
मां महिंदर कौर, अपने शहीद बेटे राजेश कुमार की आखिरी छुट्टियों को याद करके बताती हैं. जब वो अपने घर होशियारपुर जिले के गांव रेपुर आया, तो सब बहुत खुश थे. उसकी बहनों ने मिलकर उसके लिए शादी का रिश्ता ढूंढा था. सबने मिलकर तय किया था कि जब वो अगली बार छुट्टी पर घर आएगा, तो उसकी शादी करेंगे, लेकिन किस्तम को शायद कुछ और ही मंजूर था. अभी कुछ वक्त ही बीता था, कि कारगिल की खबर आई. मां के जहन में भी अनहोनी का डर था और हुआ भी कुछ ऐसा ही. 1999 में हुए करगिल युद्ध में जाबांज जवान राजेश कुमार ने अपनी शहादत देकर देश की जीत में अहम भूमिका निभाई. एक मां का एकलौता बेटा उसे छोड़ हमेशा-हमेशा के लिए उनसे दूर चला गया.
महज 4 साल सेना में सेवाएं देते हुए राजेश ने अपने देश के लिए अपनी जान दे दी. आज उनकी इस कुर्बानी को 22 साल का वक्त बीत चुका है, आज भी जब कोई इस कहानी को सुनता है तो उसका सीना गर्व से ऊंचा हो जाता है.
Source : News Nation Bureau