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Karnataka Elections 2023: भाजपा को वापसी; कांग्रेस को पलटवार की उम्मीद, जद(एस) किंगमेकर चाह रही बनना

भाजपा और कांग्रेस राज्य विधानसभा चुनाव के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं, वहीं जद (एस) 25-35 सीटें जीतकर किंगमेकर की भूमिका निभाने की उम्मीद कर रही है. इसने पहले भाजपा और कांग्रेस दोनों के साथ गठबंधन सरकारें बनाई थीं.

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Nihar Saxena
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Rahul Adani

राहुल-अडानी राजनीतिक द्वंद के बीच फंसा पहला कर्नाटक चुनाव.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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चुनाव आयोग (Election Commission) की ओर से कर्नाटक (Karnataka) में एक चरण के विधानसभा चुनाव (Karnataka Assembly Elections 2023) के लिए 10 मई की तारीख का ऐलान हो चुका है. इसके साथ ही 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले इस साल अन्य महत्वपूर्ण राजनीतिक मुकाबलों वाले व्यस्त चुनावी मौसम का आगाज हो गया है. विद्यमान राजनीतिक टकराव वाली परिस्थितियों में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की लोकसभा से अयोग्यता और अडानी (Gautam Adani) को लेकर कांग्रेस-बीजेपी की तीखी लड़ाई के बीच कर्नाटक में पहला विधानसभा (Karnataka Elections 2023) चुनाव होगा. 

जदएस क्या निभाएगा किंगमेकर की भूमिका
वास्तव में इस चुनाव ने कर्नाटक में भाजपा-कांग्रेस की कड़ी टक्कर के लिए मंच तैयार कर दिया है. पूर्व प्रधान मंत्री और जनता दल सेक्युलर के नेता एचडी देवेगौड़ा अन्य प्रतिस्पर्धियों को बहुमत न हासिल करने देकर पार्टी की किंगमेकर की भूमिका तैयार करेंगे. हालांकि जेडीएस अब वह ताकत नहीं रही, जिसके लिए वह जानी जाती थी. इसके बावजूद वोक्कालिगाओं के बीच अपने आधार और मुस्लिम वोटों के एक हिस्से पर कब्जा कर वह इसे एक त्रिकोणीय मुकाबला बनाने के लिए दृढ़ संकल्पित है. 

कांग्रेस का दांव सबसे बड़ा
13 मई को घोषित होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव परिणामों पर कांग्रेस का दांव सबसे अधिक है. खासकर एक जनाधार खोती रपटीली बिसात वाली पार्टी की छवि से उसे छुटकारा पाना है, तो दूसरी ओर 2024 के मद्देनजर खुद को भाजपा के समक्ष बतौर मुख्य चुनौती भी पेश करना है. इन दोनों उद्देश्यों को हासिल करने के बाद ही कांग्रेस भगवा पार्टी के विरोध मतदाताओं के बीच अपनी स्थिति बढ़ा सकेगी. साथ ही, कर्नाटक चुनाव कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई है, जो इसी राज्य से आते हैं और जहां से उनका बेटा विधायक है. 

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पीएम मोदी के बल बीजेपी बदलना चाहेगी परंपरा
इस क्रम में भारतीय जनता पार्टी पीएम नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत अपील के बल पर सूबे की सत्ता में 'एक बार तू और एक बार मैं' की परंपरा को ध्वस्त करने का लक्ष्य लेकर चल रही है. गौरतलब है कि पांच साल पहले पीएम मोदी ने अपने ऊर्जावान अभियान, अंतिम मिनट के आरक्षण पैतरे और हिंदू एकीककरण से तटीय कर्नाटक की फिजा बदलने में सफलता हासिल की थी. कर्नाटक में बीजेपी की जीत इस साल के अंत में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के साथ आमने-सामने के मुकाबले के लिहाज से मनोबल बढ़ाने वाली साबित होगी.

जातियों और पुराने प्रतिद्वंद्वियों की लड़ाई
बहुमत हासिल करने के लिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों को पुराने मैसूर क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करना होगा, जिसमें 61 सीटें हैं. साथ ही कित्तूर-कर्नाटक और कल्याण-कर्नाटक जैसे क्षेत्रों में भी. अगर बीजेपी यहां बेहतर प्रदर्शन करने में नाकाम रहती है, तो उसे 113 सीटों की बहुमत सीमा तक पहुंचने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा और अगर कांग्रेस विफल होती है, तो जद (एस) किंगमेकर की भूमिका निभाने के लिए पर्याप्त सीटों के साथ सामने खड़ी होगी. पिछले अनुभवों के आधार पर देवेगौड़ा त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में किसे चुनेंगे, इसका जवाब तो 13 मई को परिणाम सामने आने के बाद ही मिलेगा. 

लिंगायत, कुरुबा और वोक्कालिगा भी बेहद महत्वपूर्ण 
कर्नाटक में सत्तारूढ़ बीजेपी ने पिछली बार विधानसभा की 224 सीटों में से 104 सीटें जीती थीं. हालांकि बाद में कांग्रेस और जद (एस) से दलबदल करके केसरिया पार्टी में आए विधायकों के बल पर उसने अपनी सीटों की संख्या में इजाफा किया. 'ऑपरेशन लोटस' की बदौलत अब कर्नाटक विधानसभा में बीजेपी के 119 विधायक हैं. इसके बाद कांग्रेस के 75 और जद (एस) के 28 विधायक हैं. बाकी दो सीटें खाली हैं. कर्नाटक में काफी हद तक लड़ाई पुराने प्रतिद्वंद्वियों क्रमशः बीजेपी के प्रमुख चेहरे बीएस येदियुरप्पा, कांग्रेस के एसएस सिद्धारमैया और उनके महत्वाकांक्षी सहयोगी डीके शिवकुमार समेत पिता-पुत्र की जोड़ी एचडी देवगौड़ा व एचडी कुमारस्वामी के बीच होगी. इस राजनीतिक बिसात पर इनकी जातियां लिंगायत, कुरुबा और वोक्कालिगा भी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली हैं.

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कर्नाटक में एक बार फिर त्रिकोणीय मुकाबला
बीजेपीः आरक्षण और हिंदू कार्ड
बीजेपी पहली बार बिना मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के चुनाव में उतर रही है. हाल ही में चुनाव न लड़ने का ऐलान करने वाले बीएस येदियुरप्पा 1980 के दशक से राज्य में बीजेपी पार्टी का चेहरा थे. अब राज्य इकाई में कोई कद्दावर जननेता नहीं होने के कारण पीएम मोदी भाजपा चुनाव अभियान का चेहरा हैं. वह मतदाताओं को भाजपा के 'डबल इंजन' यानी केंद्र व राज्य में एक ही पार्टी की सरकार होने के लाभों की याद दिलाकर एंटीइनकंबेंसी और कांग्रेस के भ्रष्टाचार के आरोप को कुंद करने की कोशिश कर रहे हैं. चुनावों को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने प्रमुख जाति समूहों के लिए आरक्षण बढ़ा दिया है. साथ ही देवताओं और ऐतिहासिक प्रतीकों के सहारे हिंदू मतदाताओं की भावनाओं को भुनाने की कोशिश में है. यही वजह है कि राज्य भर में हिंदू देवी-देवताओं की सभी आकार में मूर्तियां आ गई हैं.

कांग्रेसः सत्ता विरोधी लहर और भ्रष्टाचार के सहारे
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सत्ता विरोधी लहर के बावजूद अच्छा प्रदर्शन किया और 78 सीटों के साथ 38 फीसद वोट शेयर हासिल किया. हालांकि भाजपा के आक्रामक जोड़-तोड़ अभियान ने अंततः विधानसभा में कांग्रेस की ताकत को 69 विधायकों तक ला दिया. इस बार कांग्रेस भाजपा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों और सत्ता विरोधी लहर पर उम्मीदें लगाए बैठी है. पार्टी के 2018 चुनाव अभियान का नेतृत्व करने वाले राहुल गांधी फिर से व्यस्त हैं. पार्टी स्क्रीनिंग कमेटी अपने क्षेत्रीय दिग्गजों, एआईसीसी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, विधायक दल के अध्यक्ष सिद्धारमैया और केपीसीसी अध्यक्ष डीके शिवकुमार के प्रभाव के बिना 124 उम्मीदवारों की अपनी पहली सूची की घोषणा करने में कामयाब रही. हालांकि नामांकन दाखिल करने के करीब आने वाली दूसरी सूची में उनके हस्तक्षेप से इंकार नहीं किया जा सकता है.

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जद (एस): किंगमेकर बनने की है उम्मीद
जहां भाजपा और कांग्रेस राज्य विधानसभा चुनाव के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं, वहीं जद (एस) 25-35 सीटें जीतकर किंगमेकर की भूमिका निभाने की उम्मीद कर रही है. इसने पहले भाजपा और कांग्रेस दोनों के साथ गठबंधन सरकारें बनाई थीं. 'पंचरत्न यात्रा' के राज्यव्यापी दौरे पर जद (एस) के पूर्व मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी ने उत्तर कर्नाटक में बड़े तबके को आकर्षित किया. हालांकि जद (एस) दक्षिण कर्नाटक में वोक्कालिगा बेल्ट से कहीं ज्यादा ताकत प्राप्त करता है. हालांकि पुराने मैसूरु क्षेत्र में वोक्कालिगा बेल्ट में पैठ बनाने के लिए बीजेपी का दांव इस बार कांग्रेस के पक्ष में भी जा सकता है. खंडित जनादेश से बचने के लिए पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह मतदाताओं से जद(एस) को वोट न देने की अपील कर रहे हैं. कुमारस्वामी और उनके भाई एचडी रेवन्ना के परिवारों के बीच दरार के कारण जद(एस) को हासन में भी संकट का सामना करना पड़ रहा है.

HIGHLIGHTS

  • बीजेपी पहली बार बिना मुख्यमंत्री चेहरे के चुनावी मैदान में
  • विधानसभा चुनाव परिणामों पर कांग्रेस का दांव सबसे बड़ा
  • जद (एस) को किंगमेकर की भूमिका निभाने की है उम्मीद
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