रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ( Rajnath Singh) के पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) को लेकर बयान के बाद देश भर में माता शारदा शक्तिपीठ मंदिर ( Sharda Peeth Mandir) एक बार फिर सुर्खियों में है. 23वें कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) के लिए आयोजित एक समारोह में बीते दिन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि 'पाक अधिकृत कश्मीर यानी PoK, भारत का हिस्सा था, भारत का हिस्सा है और रहेगा. ऐसा कैसे हो सकता है कि भगवान शिव के रूप में बाबा अमरनाथ हमारे साथ हैं और मां शारदा शक्ति LoC के दूसरी ओर हैं.
PoK भारत का हिस्सा है, हम यह मानते हैं। संसद में इस बारे में सर्वसम्मत प्रस्ताव भी पारित है।
— Rajnath Singh (@rajnathsingh) July 24, 2022
यह कैसे हो सकता है कि शिव के स्वरूप बाबा अमरनाथ हमारे पास हों, पर शक्ति स्वरूपा शारदा जी का धाम LoC के उस पार रहे… pic.twitter.com/4ha4qJMBeD
रक्षा मंत्री के इस महत्वपूर्ण बयान के बाद 75 सालों से PoK में उपेक्षित कश्मीरी पंडितों की कुलदेवी मां शारदा शक्ति पीठ मंदिर को लेकर सबके दर्द ताजा हो गए. हिंदू धर्म में ज्ञान की देवी सरस्वती ( शारदा) का एक प्राचीन मंदिर अब खंडहर में बदल चुका है. भक्तों को उनके दर्शन की लालसा लगातार बनी हुई है. आइए, इस प्राचीन मंदिर के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं. इसके अलावा शारदा पीठ को लेकर देश में किस तरह की मांग की जा रही है.
70 साल से दोबारा तीर्थयात्रा शुरू करवाने की गुहार
कश्मीरी पंडितों की आस्था का प्रतीक केंद्र शारदा पीठ मंदिर लगभग 5000 साल से ज्यादा पुराना मंदिर माना जाता है. कश्मीरी लोगों खासकर पंडितों समेत देशभर के हिंदुओं के मन में इस मंदिर को लेकर आज भी दर्द दिखता है. शारदा पीठ मंदिर अमरनाथ और अनंतनाग के मार्तंड सूर्य मंदिर की तरह की कश्मीरी पंडितों समेत पूरे भारत के लिए श्रद्धा का केंद्र है. कश्मीरी पंडित लगातार भारत और पाकिस्तान की सरकारों से शारदा पीठ तक तीर्थयात्रा शुरू करने की गुहार लगाते रहे हैं.
देशभर के कर्मकांड में श्रद्धापूर्वक स्मरण
शारदा पीठ का मतलब है माता शारदा का स्थान. शारदा देवी माता सरस्वती का ही एक नाम है. इसे कश्मीरी नाम भी बताया जाता है. शारदा पीठ मंदिर का धार्मिक आस्था के साथ ही शैक्षणिक महत्व भी है. भारतीय उपमहाद्वीप के प्रमुख प्राचीन विश्वविद्यालयों में एक शारदा पीठ वर्तमान में पाकिस्तान के कब्जे वाले
कश्मीर में नियंत्रण रेखा के पास किशनगंगा (नीलम) नदी, मधुमती और सरगुन नदी की धाराओं के संगम के पास हरमुख पहाड़ी पर करीब 6500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. श्रीनगर से लगभग 124 , मुजफ्फराबाद से लगभग 140 और कुपवाड़ा जिला मुख्यालय से इसकी दूरी करीब 30 किलोमीटर है. शारदा देवी मंदिर में पिछले 70 सालों से विधिवत पूजा नहीं हुई है. आज भी देश भर के ब्राह्मण ( पंडित ) कर्मकांड के दौरान शारदा पीठ को नमन करते हैं.
'नमस्ते शारदा देवी कश्मीर पुर वासिनी त्वम अहम् प्रथये नित्यं विद्याधनं चे दे ही माही.'
इसका अर्थ है- 'आपको प्रणाम, शारदा देवी, कश्मीर की निवासी, मैं आपकी हमेशा प्रशंसा करता हूं, मुझे ज्ञान का धन दो.' ये प्रार्थना कश्मीरी पंडितों की मां शारदा की दैनिक पूजा का हिस्सा है. शारदा देवी कश्मीरी पंडितों की कुलदेवी हैं और शारदा पीठ कश्मीरी पंडितों के लिए एक तीर्थस्थल है.
237 ईसा पूर्व में निर्माण के ऐतिहासिक तथ्य
देवी शारदा को कश्मीरा-पुरवासनी भी कहा जाता है. ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक शारदा पीठ मंदिर को महाराज अशोक ने 237 ईसा पूर्व में बनवाया था. अधिकतर इतिहासकारों के अनुसार शारदा पीठ का निर्माण ललितादित्य मुक्तपीड ने शुरू कराया था. कुछ ने इस मंदिर का निर्माण पहली शताब्दी के प्रारंभ में कुषाणों के शासन के दौरान और कुछ इतिहासकारों ने बौद्धों की शारदा क्षेत्र में काफी भागीदारी की बात की, लेकिन शोधकर्ताओं को इस दावे के समर्थन में कोई सबूत नहीं मिले हैं.
अल-बरूनी, बिल्हण और कल्हण ने बताया महत्व
ईरानी इतिहासहार अल-बरूनी ने एक तीर्थस्थल के रूप में शारदा पीठ के बारे में लिखा है. उनके विवरण के अनुसार, आठवीं सदी तक शारदा मंदिर प्रमुख तीर्थस्थल बन चुका था. 11वीं शताब्दी में कश्मीरी कवि बिल्हण ने शारदा पीठ के बारे में लिखा. उन्होंने कश्मीर को शिक्षा का संरक्षक बताया और उसकी ऐसी ख्याति के पीछे शारदा पीठ को माना है. कल्हण के महाकाव्य 'राजतरंगिणी' में भी शारदा पीठ को उपासना के प्रमुख स्थल के रूप में जिक्र है. कल्हण ने शारदा पीठ के राजनीतिक महत्व के बारे में भी लिखा है.
इस्लामिक आक्रमणकारियों ने शारदा पीठ को तोड़ा
14 वीं शताब्दी तक कई बार प्राकृतिक आपदाओं के कारण मंदिर को बहुत क्षति पहुंची. बाद में विदेशी आक्रमणों खासकर मुगलों और अफगानों के हमले में मंदिर का काफी नुकसान हुआ. कुछ प्राचीन वृत्तांतों के अनुसार, मंदिर की ऊंचाई 142 फीट और चौड़ाई 94.6 फीट है. मंदिर की बाहरी दीवारें 6 फीट चौड़ी और 11 फीट लंबी हैं. वृत्त-खंड 8 फीट की ऊंचाई के हैं. अधिकतर ढांचा इस्लामिक कट्टरपंथियों ने बेरहमी से ध्वस्त कर दिया था. इसकी वजह से शारदा पीठ में तीर्थयात्रियों की संख्या घट गई. कश्मीर में जब डोगरा शासन शुरू हुआ तो शारदा पीठ के तीर्थयात्रियों की संख्या फिर बढ़ी. इस मंदिर की आखिरी बार मरम्मत 19वीं सदी के महाराजा गुलाब सिंह ने कराई थी.
भारत विभाजन का दंश और शारदा पीठ की दुर्दशा
साल 1946 में कुपवाड़ा के स्वामी नंदलाल की अगुवाई में आखिरी बार यहां संगठित तौर पर भव्य तीर्थयात्रा का आयोजन किया गया था. साल 1947 में आजादी के साथ ही देश को विभाजन का गहरा घाव लगा. इसके साथ ही शारदा पीठ का भी सबकुछ बदल गया. बंटवार के समय, स्वामी नंद लाल ने शारदा पीठ की कुछ प्रतिमाएं घोड़ों पर लदवाकर टिक्कर पहुंचा दी. बाद में इनमें से कुछ को बारामूला के देवीबल मंदिर पहुंचाया गया. भारत और पाकिस्तान में जंग के दौरान शारदा पीठ पाकिस्तान के कब्जे में रह गया. बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडितों ने भारतीय जम्मू और कश्मीर में पलायन किया. नियंत्रण रेखा (LoC) के काफी करीब होने की वजह से यहां आसानी से तीर्थयात्रा की इजाजत नहीं मिलती. मंदिर तक जाने के लिए भारतीयों को नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लेना पड़ता है.
आदि शंकराचार्य और रामानुजाचार्य की साधना
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक शारदा पीठ शाक्त संप्रदाय को समर्पित प्रथम तीर्थ स्थल है. कश्मीर स्थित इसी मंदिर में सर्वप्रथम देवी की आराधना शुरू हुई थी. बाद में खीर भवानी और वैष्णो देवी मंदिर की स्थापना हुई. कश्मीरी पंडितों का मानना है कि शारदा पीठ में पूजी जाने वाली मां शारदा तीन शक्तियों का संगम है. पहली शारदा (शिक्षा की देवी) दूसरी सरस्वती (ज्ञान की देवी) और वाग्देवी (वाणी की देवी). विद्या की देवी सरस्वती को समर्पित शारदा पीठ में आदि शंकराचार्य और वैष्णव संप्रदाय के प्रवर्तक रामानुजाचार्य ने साधना कर महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की. 14वीं सदी में लिखे गए माधवीय शंकर विजयम में शंकराचार्य की 'सर्वज्ञान पीठम' नाम की परीक्षा का जिक्र है. रामानुजाचार्य ने यही पर श्रीविद्या का भाष्य प्रवर्तित किया था.
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राम जन्मभूमि मंदिर में शारदा पीठ की मिट्टी
पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता सती के देह त्याग के बाद भगवान शिव उनका शव लेकर शोक में डूबे थे और तांडव किया था. उस दौरान माता सती का दाहिना हाथ इस स्थान गिरा था. हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, इसे देवी शक्ति के 18 महाशक्ति पीठों में से एक माना गया है.
लगभग साढ़े पांच सौ वर्षों के संघर्षों और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद अयोध्या में भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए शारदा पीठ की पवित्र मिट्टी भी मंगाई गई थी. मौजूदा दौर में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर ( PoK ) में चीनी नागरिकों को जाने की इजाजत है. इसलिए चीन के नागरिकता पा चुके भारतीय वेंकटेश रमन हॉन्ग कॉन्ग के रास्ते से मुजफ्फराबाद पहुंचे. वहां से शारदा पीठ गए जाकर मंदिर के पुजारी से संपर्क किया. इसके बाद मिट्टी लेकर हॉन्ग कॉन्ग के रास्ते ही वापस दिल्ली लौटे.
HIGHLIGHTS
- कश्मीरी पंडितों की कुलदेवी मां शारदा शक्तिपीठ मंदिर PoK में उपेक्षित है
- शारदा पीठ मंदिर लगभग 5000 साल से ज्यादा पुराना मंदिर माना जाता है
- मान्यताओं के मुताबिक शारदा पीठ शाक्त संप्रदाय को समर्पित प्रथम तीर्थ है