विदेश मंत्री एस जयशंकर (Minister of external Affairs S Jaishankar) पहली बार सऊदी अरब यात्रा (first visit to Saudi Arabia) की आधिकारिक यात्रा पर शनिवार को पहुंचे. अपने तीन दिवसीय यात्रा के दौरान वह सऊदी अरब के साथ भारत के संबंधों को और मजबूत करने के तरीकों पर चर्चा कर रहे हैं. यात्रा के दौरान उन्होंने कहा कि भारत और सऊदी अरब के बीच सदियों पुराने आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक संबंधों के साथ सौहार्दपूर्ण और मैत्रीपूर्ण संबंध हैं. आइए, जानते हैं कि मौजूदा वक्त में उनकी पहली सऊदी अरब यात्रा क्यों और कितना अहम है?
चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार
सऊदी अरब भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. एस जयशंकर ने कहा कि भारत-सऊदी अरब "सहयोग साझा विकास, समृद्धि, स्थिरता, सुरक्षा और विकास का वादा करता है." अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जानकारों के मुताबिक भारत के विदेश मंत्री के रूप में उनकी यात्रा बीजेपी के पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा की पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी के मद्देनजर हुई है. एक टीवी डिबेट के दौरान शर्मा के कमेंट को रियाद ने "अपमानजनक" करार दिया था. हालांकि बीजेपी ने अपने प्रवक्ता के बयान से किनारा कर लिया और उन्हें पार्टी से भी निकाल दिया था.
क्यों जरूरी है सऊदी अरब
हाल के महीनों में सस्ते रूसी कच्चे तेल की खरीद को लेकर पर भारत के दबाव के बाद भी सऊदी अरब भारत की तेल ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के मामले में कम नहीं है. कच्चे तेल के सबसे बड़े भंडार वाला देश जब ओपेक को उत्पादन में कटौती का फैसला करना है और अभी भी भारत के कच्चे तेल के आयात का 15 फीसदी हिस्सा है. दिसंबर 2021 तक यह खरीद 22 फीसदी तक था. इस साल जून तक भारत ने अपने कच्चे तेल जरूरतों का 24 फीसदी रूस से और 21 फीसदी इराक के बाद सबसे अधिक सऊदी अरब से खरीदा है.
इस्लामिक देश के साथ व्यापार संतुलन
इस्लामिक साम्राज्य के साथ भारत का व्यापार संतुलन बनाना बेहद अहम है. भारत सऊदी अरब से लगभग 23 बिलियन डॉलर का सामान आयात करता है, जो भारत से केवल 7 बिलियन डॉलर मूल्य की वस्तुओं और सेवाओं का आयात करता है. 2021-22 (अप्रैल-दिसंबर) तक. भले ही कच्चे तेल की कीमतें कुछ हद तक 100 डॉलर से अधिक के उच्च स्तर से अब 90 डॉलर से कम हो गई हैं. हालांकि अमेरिका और यूरोप में आर्थिक मंदी के डर से यह जल्द ही बदल सकता है. क्योंकि ओपेक और उसके सहयोगियों ने उत्पादन में कटौती की घोषणा की है.
अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों का असर
इसके अलावा रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद रूस की ओर से यूरोप-अमेरिका को गैस की आपूर्ति में कटौती करने की धमकी के साथ पश्चिम एशिया से तेल की शरण लेने के लिए मजबूर किया जा सकता है. इस घटना के बाद फिर से कच्चे तेलों की कीमत बढ़ सकता है. खासकर उत्तरी गोलार्ध में तेजी से आने वाले सर्दियों के मौसम के दौरान इसके फिर से नियंत्रित किया जा सकता है.
देश में चुनाव और धार्मिक एंगल
देश में महत्वपूर्ण गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में इस साल और अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इन राज्यों में मुस्लिम वोटों का बहुत प्रभाव बताया जाता है. सऊदी अरब स्थित मक्का और मदीना शहर में मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र दो तीर्थस्थल हैं. वहां की गतिविधियों का दुनिया भर के मुस्लिमों पर सीधा असर होता है.
निवेश और मनीऑर्डर अर्थव्यवस्था
सऊदी अरब 2.2 मिलियन (22 लाख) प्रवासी भारतीयों का भी घर है. वहां भारतीय सबसे बड़े प्रवासी समुदाय के तौर पर रहते हैं. लगभग 2 बिलियन डॉलर के निवेश के साथ लगभग 745 भारतीय कंपनियां या तो संयुक्त उद्यम के रूप में या सऊदी अरब में 100 फीसदी स्वामित्व वाली सहायक कंपनियों के रूप में पंजीकृत हैं. बीते साल में सऊदी अरब ने प्रवासी कामगारों को लेकर अपनी नीतियों में भारत के दृष्टिकोण से पुनर्विचार भी किया था.
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कोविड-19 महामारी के दौरान शीर्ष संपर्क
विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा भी है कि कोविड-19 महामारी के दौरान भी दोनों देशों का शीर्ष नेतृत्व निकट संपर्क में रहा है. सऊदी अरब के विदेश मंत्री शहजादे फैसल बिन फरहान अल सऊद के साथ एस जयशंकर ने यात्रा के दौरान भारत-सऊदी अरब रणनीतिक भागीदारी परिषद के ढांचे के तहत स्थापित राजनीतिक, सुरक्षा, सामाजिक और सांस्कृतिक सहयोग समिति (PSSC) की पहली मंत्रिस्तरीय बैठक की सह-अध्यक्षता भी की है.
HIGHLIGHTS
- सऊदी अरब भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार
- विदेश मंत्री एस जयशंकर पहली बार सऊदी अरब यात्रा पहुंचे
- इस्लामिक देश के साथ भारत का व्यापार संतुलन बनाना अहम