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Lok Sabha Election 2024: शुरू हुई चुनावी महाभारत! समझें BJP का सियासी गेम.. सपा-बसपा की चुनौती

राजनीतिक पंडितों की मानें तो, इस 'भगवा प्रदेश' में चुनावी जंग फतह करने के लिए रण में उतरी तमाम राजनीतिक पार्टियों को यहां अपनी सियासी बिसात मजबूत करनी होगी.

Updated on: 21 Mar 2024, 01:21 PM

नई दिल्ली :

लोकसभा चुनाव 2024 का शंखनाद हो चुका है. सभी सियासी पार्टियां चुनावी मैदान में ताल ठोक रही हैं. 19 अप्रैल को पहले चरण का मतदान होना है. पहले फेज में 102 सीटों पर वोटिंग होगी. पहले चरण में उत्तर प्रदेश की 8 लोकसभा सीटों पर चुनाव होने हैं. इसमें सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, रामपुर और पीलीभीत सीट शामिल हैं. राजनीतिक पंडितों की मानें तो, इस 'भगवा प्रदेश' में चुनावी जंग फतह करने के लिए रण में उतरी तमाम राजनीतिक पार्टियों को यहां अपनी सियासी बिसात मजबूत करनी होगी. खासतौर पर भाजपा के लिए ये चुनौती और भी दीर्घ होने वाली है, क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा था, 'भगवा पार्टी' यहां सिर्फ तीन सीटों पर सिमट कर रह गई थी, जबकि सपा-बसपा गठबंधन पांच सीटें जीतने में सफल रहा था. 

हालांकि भाजपा ने इस क्षेत्र में विजय के लिए अपने सारे सियासी घोड़े खोल दिए हैं. पार्टी ने बसपा, सपा और आरएलडी के गठबंधन में सेंधमारी करते हुए, आरएलडी को अपने पाले में कर लिया है. ताकि ठीक 2014 के लोकसभा चुनावों की तरह ही विपक्ष बिखर जाए और भाजपा 2019 के आम चुनाव में हुए नुकसान की भरपाई बेहतर ढंग से कर सके. 

अब यहां सवाल है कि, आखिर आरएलडी के साथ आना भाजपा के लिए सियासी मुनाफा कैसे है? दरअसल, भाजपा और आरएलडी का एकजुट होना जाट समुदाय के वोटों को अपने पक्ष में करने की कवायद है. आरएलडी का सियासी आधार जाट और किसानों पर निर्भर करता है. पश्चिमी यूपी का इलाका, जहां पहले चरण की वोटिंग होनी है, किसान और जाट प्रभावी माना जाता है. बीजेपी ने आरएलडी को इसीलिए अपने साथ रखा है, ताकि जाट वोटों में बिखराव न हो सके. भाजपा ने आरएलडी को बागपत और बिजनौर सीट दी हैं, जिसमें बिजनौर सीट पर पहले चरण में, तो बागपत सीट पर दूसरे चरण में वोटिंग होनी हैं.

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यहां ये भी समझ लें कि, भाजपा उत्तर प्रदेश में इस लोकसभा चुनाव को 2014 के चुनाव के तर्ज पर लड़ रही है, मसलन पार्टी का मकसद है पूरी तरह से क्लीन स्वीप करने का.. ये लक्ष्य काफी हद तक पूरा करना मुमकिन भी है, क्योंकि इस बार सपा और बसपा अलग-अलग चुनावी मैदान में हैं. जहां एक ओर सपा ने कांग्रेस के साथ अपना गठबंधन कर रखा है, तो वहीं बसपा 'एकला चलो' फॉर्मूले पर रण में उतरी है. ऐसे में चलिए भाजपा के खिलाफ मैदान में उतरी इन दोनों पार्टियों की सियासी अग्निपरीक्षा को आंकते हैं...

बसपा की सियासी अग्निपरीक्षा

पहले चरण का चुनाव पश्चिमी यूपी के इलाके में हो रहा है, जो बसपा का मजबूत गढ़ माना जाता है. मगर 2019 लोकसभा चुनाव से अलग इस बार बसपा अकेले चुनाव लड़ रही है, जिसका सीधा असर पार्टी की जीत का आधार रहे दलित-मुस्लिम समीकरण पर पड़ेगा. लिहाजा बसपा के सामने चुनौती बड़ी है, अब देखना ये है कि पार्टी कैसे विपक्षी पार्टियों का मुकाबला कर पाती है?

सपा के लिए मुश्किल सफर 

सपा कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है, जिनका कोर वोट बैंक मुस्लिम-यादव पर टिका हुआ है. समाजवादी पार्टी का पारंपरिक वोटबैंक मुस्लिम और यादव रहा है. पार्टी MY समीकरण की रणनीति पर चुनाव लड़ती आ रही है, लेकिन इस बार पार्टी ने अपनी लाइन में थोड़ा परिवर्तन किया है. पार्टी ने इस बार दलित वोटबैंक पर भी नजर टिकाई है. पार्टी का दावा है कि बसपा का कोर वोट दलित इस बार सपा का समर्थन कर सकती है. इसलिए बहुत सोची-समझी रणनीति के तहत पार्टी ने मुस्लिम बहुल बिजनौर और मुजफ्फरनगर सीट पर हिंदू प्रत्याशी एक जाट और एक दलित समुदाय से उतारे हैं. इससे स्पष्ट है कि, पार्टी सिर्फ मुस्लिम वोटों के सहारे चुनाव नहीं लड़ेगी, इसलिए गैर-मुस्लिम पर दांव खेला है. राजनीतिक पंडितों की मानें तो ये पहले चरण का चुनाव आसान सपा के लिए भी काफी चुनौतीपूर्ण नजर आ रहा है.