मोदी और शाह की नई सियासी प्रयोगशाला बना मध्यप्रदेश, मंत्री और सांसद बनेंगे विधायक

मध्यप्रदेश विधानसभा के इस चुनाव में बीजेपी नेतृत्व ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि उनके लिए हर एक सीट अहम है. सियासी समीकरण को साधने के लिए पार्टी ने मंत्री, सांसदों को भी विधायकी चुनाव लड़ाने का फैसला किया है.

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Prashant Jha
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मध्य प्रदेश का सियासी समीकरण( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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मध्य प्रदेश में साल के आखिरी में विधानसभा चुनाव होने हैं. चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां जोरों पर है. पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में सबसे अधिक 230 विधानसभा सीट हैं. राज्य की सियासी अहमियत लोकसभा चुनाव के नजरिए से भी काफी अहम है. यहां से 29 लोकसभा सीट हैं. पिछले कई विधानसभा चुनाव और दो बार के लोकसभा चुनाव से भाजपा यह मजबूत स्थिति में है.  हिंदुस्तान का दिल कहे जाने वाले मध्यप्रदेश बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए राजनीतिक प्रयोगशाला रहे हैं. ऐसा मिलीजुली संस्कृति वाले इस प्रदेश का सियासी तापमान पूरे देश को प्रभावित करता है. मध्यप्रदेश विधानसभा के इस चुनाव में बीजेपी नेतृत्व ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि उनके लिए हर एक सीट अहम है. 25 अगस्त की शाम बीजेपी ने जैसे ही उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट जारी की. राजनीति के दिग्गज पंडित भी हैरान रह गए. मोदी सरकार के दिग्गज केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद सिंह पटेल, फग्गन सिंह कुलस्ते (Faggan Singh Kulaste) ही नहीं पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह (Rakesh Singh), बीजेपी के कद्दावर नेता और महासचिव कैलाश विजयवर्यीगय, 4 बार सांसद रह चुके गणेश सिंह (Ganesh Singh), रीती पाठक (Riti Pathak), उदय प्रताप सिंह जैसे सांसदों को भी चुनाव मैदान में उतार दिया गया है. 

क्या पूरी होगी मंत्री बनने की इच्छा
सांसदों के विधानसभा चुनाव लड़ने के मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मिश्रा कहते हैं कि दरअसल मध्यप्रदेश के कई सांसदों को लगता है कि केंद्रीय कैबिनेट में उनको जगह मिलना मुश्किल है. ऐसे में क्यों न प्रदेश की राजनीति की जाए. सतना सांसद गणेश सिंह का उदाहरण देते हुए वह बताते हैं कि 4 बार के सांसद गणेश सिंह काफी समय से मोदी कैबिनेट में अपने लिए उम्मीद में थे. लेकिन उन्हें हर बार मायूसी हाथ लग रही है. ऐसे में उन्होंने राज्य की राजनीति में सक्रिय होने का फैसला किया है. सतना उनके लिए सुरक्षित सीट साबित होगी क्योंकि यहां से कांग्रेस के सिद्धार्थ कुशवाहा के मुकाबले उनका कद काफी बड़ा है.

मोदी और शाह ने दिया संकेत
केंद्रीय मंत्रियों और दिग्गज नेताओं को चुनाव मैदान में उतारक बीजेपी शीर्ष नेतृत्व ने साफ संकेत दे दिया है कि उसके लिए हर सीट मायने रखती है. इसका असर लोकसभा चुनाव में भी पड़ेगा. माना जा रहा है कि पार्टी लोकसभा चुनाव में कई मौजूदा सांसदों के टिकट काटेगी, उनकी जगह नये चेहरों को मौका देने की कवायद शुरू हो चुकी है. 

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क्या चुनौती बनेगी गुटबाजी
मध्यप्रदेश की राजनीति को समझने के लिए आपको यहां के क्षेत्रीय क्षत्रपों और उनके जनाधार के बारे में समझना होगा. मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान निश्चित रूप से इस समय बीजेपी के सबसे अहम फेस हैं. उनकी लोकप्रियता के आगे भले ही प्रदेश में कोई दूसरा नेता न हो, लेकिन उनके पीछे जो नेता सीएम इन वेटिंग कहे जा रहे हैं उनमें पहला नाम नरेंद्र सिंह तोमर का है. 

नरेंद्र सिंह तोमर
ग्वालियर चंबल में विशेष प्रभाव रखने वाले नरेंद्र सिंह तोमर पीएम मोदी और अमित शाह के बेहद करीबी  होने के साथ शिवराज सिंह चौहान समेत प्रदेश के सभी नेताओं के साथ अच्छे रिश्ते के लिए जाने जाते हैं. बीजेपी प्रदेश की सत्ता में आती है तो नरेंद्र सिंह तोमर सीएम पद के बड़े दावेदार हो सकते हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath)और उत्तराखंड में धामी राजपूत सीएम हैं. ऐसे में एमपी में बीजेपी गैर ओबीसी ठाकुर को सीएम बनाएगी इसके आसार कम नजर आते हैं.

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प्रह्लाद सिंह पटेल
केंद्रीय मंत्री, दमोह से सांसद प्रह्लाद सिंह पटेल को नरसिंहपुर से बीजेपी ने चुनाव मैदान में उतारा है. नर्मदा के भक्त प्रहलाद सिंह पटेल अपनी बेबाक अंदाज के लिए जाने जाते हैं. कभी उमा भारती के साथ भारतीय जनशक्ति पार्टी के लिए बीजेपी से बगावत करने वाले प्रह्लाद सिंह पटेल का नितिन गडकरी के अध्यक्ष रहते हुए राजनीतिक वनवास खत्म हुआ. उन्हें पार्टी ने केंद्रीय कैबिनेट में भी जगह दी है. हालांकि प्रह्लाद सिंह पटेल की मध्यप्रदेश में स्वीकार्यता बड़ी चुनौती होगी. शिवराज सिंह चौहान के साथ उनकी सियासी अदावत नई नहीं है.

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कैलाश विजयवर्गीय
बेटे आकाश विजयवर्गीय की जगह अब उन्हें टिकट दिया गया है. बीजेपी शीर्ष नेतृत्व ने यह भी साफ कर दिया है कि पिता और पुत्र में किसी एक को ही चुनावी राजनीति में जगह मिलेगी. सवाल यह है कि कैलाश विजयवर्गीय क्या सीएम पद के दावेदार हो सकते हैं.

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चुनावी राजनीति में पिता-पुत्र एक साथ नहीं
बीजेपी शीर्ष नेतृत्व ने मध्यप्रदेश में टिकट वितरण के जरिए एक नया संकेत दिया है. पार्टी ने साफ कर दिया है कि चुनावी राजनीति में पिता और पुत्र में किसी एक को ही टिकट मिलेगा. कैलाश विजयवर्गीय जहां अपने बेटे के लिए एक बार फिर टिकट मांग रहे थे वही नरेंद्र सिंह तोमर भी बेटे की टिकट की जुगत में थे. इसी तरह प्रहलाद सिंह पटेल भाई जालम सिंह पटेल का समर्थन कर रहे थे. फिलहाल इन सभी नेताओं के परिजनों पार्टी की सेवा करने को कहा गया है.

केदार जाएंगे 'नारायण' 
बीजेपी की दूसरी लिस्ट के बाद से एमपी में यह सवाल काफी गूंज रहा है. दरअसल सीधी विधानसभा सीट से चार बार के विधायक केदारनाथ शुक्ला का टिकट काट दिया गया है. ये वही केदारनाथ शुक्ला हैं पत्रकार के साथ मारपीट और पेशाब कांड विवाद से जिनका नाम कथित तौर पर जोड़ा गया था. पिछले दस साल में जितनी बार भी कैबिनेट विस्तार हुआ, हर बार केदारनाथ का नाम उछाला गया. लेकिन वह मायूस ही रहे. इस बार पार्टी ने उनका टिकट काटकर रीति पाठक को टिकट दे दिया है. ऐसे में कयास इस बात के लिए भी लगाए जा रहे हैं कि क्या केदार शुक्ला कांग्रेस का दामन थामकर विधानसभा पहुंचने की कोशिश करेंगे. 
कुछ इसी तरह प्रदेश की सबसे चर्चित सीट मैहर में पार्टी ने वही किया जिसके कयास लगाए जा रहे थे. यहां से श्रीकांत चतुर्वेदी  जो कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक माने जाते हैं, उन्हें टिकट दिया है. ऐसे में नारायण त्रिपाठी और श्रीकांत चतुर्वेदी के बीच कड़ा मुकाबला हो सकता है. नारायण त्रिपाठी अब अपनी खुद की पार्टी से चुनाव लड़ते हैं या कांग्रेस का दामन थामते हैं ये देखना होगा.

सिंधिया क्या बना पाएंगे संतुलन
बीजेपी की अब तक की लिस्ट में देखें तो ज्योतिरादित्या सिंधिया समर्थक चार से छह नेताओं को टिकट मिला है. जबकि सिंधिया लगभग 20 विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल हुए थे. ऐसे में सवाल ये है कि क्या वह अपने सभी समर्थकों को टिकट दिला पाएंगे. इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मिश्रा कहते हैं कि फिलहाल यह मुश्किल ही लगता है क्योंकि कांग्रेस में रहते हुए भले ही सिंधिया मध्यप्रदेश में दूसरे सबसे बड़े नेता माने जाते थे लेकिन यहां ग्लालियर चंबल संभाग में ही नरेंद्र सिंह तोमर, वीडी शर्मा प्रदेश अध्यक्ष और नरोत्तम मिश्रा जैसे दिग्गज नेता हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया के 40 समर्थकों को टिकट दिया गया था. उनसे अधिक सिर्फ कमलनाथ समर्थकों को टिकट मिला था. बीजेपी में ऐसी स्थिति नहीं है. 

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दिग्गी राजा और कमलनाथ क्या एकजुट होंगे?
मध्यप्रदेश की मौजूदा राजनीति में कांग्रेस की बात की जाए तो अब प्रदेश में दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) और कमलनाथ (Kamalnath) गुट ही सक्रिय है. दिग्विजय सिंह के पास जहां अजय सिंह राहुल (Ajay Singh Rahul (विन्ध्य क्षेत्र की 20 सीट), कांतिलाल भूरिया (Kantilal Bhuria) (निमाड़ की 10 सीट) जैसे समर्थक हैं. वहीं कमलनाथ जीतू पटवारी और कमलेश्वर पटेल (Kamleshwar Patel) जैसे युवा नेताओं को आगे बढ़ा रहे हैं. खंड़वा और खरगोन में विशेष जनाधार रखने वाले प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव एवं सोनिया गांधी के करीबी नेताओं में शुमार सुरेश पचौरी जैसे दिग्गज नेता किसका समर्थन करेंगे यह देखना दिलचस्प होगा.

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Source :  प्रशांत झा

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