Maharashtra Election Result: महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव संपन्न हो चुके हैं. बुधवार को आए पोल ऑफ पोल्स के रुझाने ये दर्शाते हैं कि महाराष्ट्र में बड़ा बदलाव होने वाला है. अंतिम चुनाव नतीजे कुछ भी रहे हैं, लेकिन अभी जिस बात के इर्द-गिर्द सबसे अधिक चर्चा हो रही है कि वो ये है कि 29 साल बाद क्या शरद पवार सीएम की कुर्सी पर काबिज होंगे. इसका जवाब महाराष्ट्र में बन रहे सियासी समीकरणों में दिख रहा है. आइए उन संकेतों के बारे में जानते हैं. बता दें कि महाराष्ट्र की 288 सीटों पर 23 नवंबर को नतीजे आएंगे. सरकार बनाने के लिए किसी भी दल को 145 सीटें चाहिए होंगी.
पहला संकेत: चुनाव में पवार की स्थिति
राजनीति के चाणक्य शरद पवार की अगुवाई ने एनसीपी (SP) ने महाविकास अघाड़ी (MVA) के बैनर तले चुनाव लड़ा है, जिसमें कांग्रेस और शिवसेना (UBT) भी शामिल हैं. 288 विधानसभा सीटों में से 89 पर शरद पवार चुनाव लड़ रहे हैं. महाराष्ट्र को लेकर जितने भी एग्जिट पोल आए हैं उन सभी में शरद पवार को करीब 70 सीटें मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है. अगर ये अनुमान सही साबित होता है कि शरद पवार के पास सत्ता की चाबी रहेगी. जैसा कहा जा रहा है कि शरद पवार इस स्थिति को भुनाने से चूकेंगे नहीं.
दूसरा संकेत: सरकार बनाने को है कम समय
मौजूदा महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल 26 नवंबर 2024 को खत्म हो रहा है, जबकि चुनाव नतीजे 23 नवंबर को आएंगे. ऐसे में नई सरकार गठन के लिए सिर्फ 3 दिन का समय ही होगा. अगर इन तीनों के भीतर सरकार बनाने का दावा नहीं पेश किया गया तो महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लग सकता है. इस स्थिति से बचने के लिए सभी दल जल्द से जल्द सरकार बनाना चाहेंगे. शरद पवार इस सिचुएशन का फायदा उठा सकते हैं. जैसा उन्होंने 2019 में राष्ट्रपति शासन लागू होने पर उठाया था. तब शरद पवार ने महाविकास अघाड़ी (MVA) सरकार में गृह और वित्त जैसे कई अहम पद अपने पास रख लिए थे.
तीसरा संकेत: सीएम फेस का घोषित नहीं होना
महाराष्ट्र चुनाव में महायुति और महाविकास अघाड़ी के बीच जबरदस्त टक्कर मानी जा रही है. दोनों गठबंधनों ने बिना सीएम चेहरे का ऐलान किए चुनाव लड़ा है. शरद पवार के लिए ये बात उनके सीएम बनने की राह को खोल सकती है. वजह, शरद पावर के महाराष्ट्र में हर पॉलीटिकल पार्टी के साथ अच्छे रिश्ते बताए जाते हैं. वे अपने राजनीतिक रिश्तों में न काहू से दोस्त न काहू से बैर वाला फॉर्मूला अपनाते हैं. उदाहरण के लिए 2014 में बीजेपी को समर्थन देने वाले शरद पवार 2019 में उद्धव के साथ चले गए. अगर विखंडित जनाधार आता है, तो शरद पवार इस स्थिति का फायदा उठा सकते हैं.