पश्चिम बंगाल ( West Bengal) की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ( CM Mamata Banerjee) ने अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ( Trinmool Congress) को उपराष्ट्रपति चुनाव 2022 ( Vice President Election 2022) में मतदान से दूर रखने का फैसला लिया है. टीएमसी ने गुरुवार को कोलकाता में आयोजित शहीद दिवस रैली के बाद इसकी घोषणा की. देश में उपराष्ट्रपति पद के लिए 6 अगस्त को चुनाव होने वाला है. चुनाव में सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे जगदीप धनखड़ को उम्मीदवार बनाया है. वहीं विपक्ष की ओर से कांग्रेस की दिग्गज नेता मार्गरेट अल्वा मैदान में हैं.
इससे पहले टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने विपक्ष की ओर से उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार चुनने के लिए हुई बैठक में भी अपने प्रतिनिधि को नहीं भेजा था. उनके इस कदम से साफ हो गया था कि टीएमसी उपराष्ट्रपति चुनाव में एक अलग रास्ते पर जा सकती है. विपक्षी दलों की ओर से घोषित उपराष्ट्रपति उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा ने अपना नामांकन दाखिल किया. उस समय भी टीएमसी की ओर से कोई उनके साथ खड़ा नहीं दिखा. इसके अलावा ममता बनर्जी या टीएमसी के किसी नेता ने इ पर कोई टिप्पणी भी नहीं की थी.
विपक्ष की एकता में क्यों फिर पड़ी फूट
इससे पहले तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने कहा था कि पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी ने उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर 21 जुलाई को एक बैठक बुलाई है. वह इस मुद्दे पर अपने साथियों से चर्चा करेंगी और पार्टी के रुख की घोषणा करेंगी. इसी बैठक के बाद ममता बनर्जी ने उपराष्ट्रपति चुनाव में मतदान से दूर रहने का फैसला किया. आइए, जानने की कोशिश करते हैं कि इस बड़े फैसले के पीछे आखिर क्या वजह हो सकती है.
उम्मीदवार तय करने में नहीं ली गई राय
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आवास पर आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी ने कहा कि उपराष्ट्रपति उम्मीदवार को नामित करने से पहले हमारी सहमति नहीं ली गई थी. ममता बनर्जी ने अपने सभी सांसदों की सलाह से फैसला किया है कि टीएमसी एनडीए उम्मीदवार जगदीप धनखड़ का समर्थन नहीं करेगी. इसके अलावा टीएमसी की बैठक में शामिल 85 प्रतिशत सांसदों ने कहा कि जिस तरह विपक्ष ने टीएमसी से चर्चा किए और सलाह लिए बिना अपना उम्मीदवार तय किया. उसको देखते हुए हम विपक्ष के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार को भी वोट नहीं देंगे.
कांग्रेस के साथ टीएमसी का समीकरण
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक तृणमूल कांग्रेस विपक्ष की राजनीति में आगे बढ़ने के लिए ऐसा कर रही है. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक टीएमसी आने वाले दिनों में केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए एक विश्वसनीय चुनौती के रूप में अपनी पहचान स्थापित करना चाहती है. टीएमसी इसके लिए कांग्रेस को भी अपने साथ लाना चाहती है. इससे उलट कांग्रेस हमेशा टीएमसी समेत पूरे विपक्ष का मनोबल गिरा रही है. इसलिए टीएमसी से उपराष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए कोई राय नहीं ली गई.
केंद्र की राजनीति का निर्धारित लक्ष्य
दूसरी ओर ममता बनर्जी ने केंद्र की राजनीति यानी दिल्ली के लिए अपना लक्ष्य निर्धारित किया है. इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए उन्हें संगठित विपक्ष की जरूरत है. वह उस दिशा में काम कर रही हैं. उनकी पार्टी ने 21 जुलाई की रैली में ही पश्चिम बंगाल से बाहर पूरे दमखम से लोकसभा चुनाव लड़ने का भी ऐलान किया है. टीएमसी ने एक बार फिर यह दिखाने की कोशिश की है कि देश में वह एक महत्वपूर्ण विपक्षी पार्टी है और उचित सम्मान नहीं मिलने पर वह साथ नहीं चलेगी.
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ममता बनर्जी की निजी महत्वाकांक्षा
वहीं, कई राजनीतिक विश्लेषक इसके पीछे ममता बनर्जी की केंद्र में विपक्ष का नेतृत्व करने की महत्वाकांक्षा को भी कारण बताते हैं. इसलिए उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव और उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की एकता नहीं बनने दी. राष्ट्रपति चुनाव के दौरान भी विपक्ष की पहली बैठक के बाद उन्होंने इससे दूरी बना ली थी. हालांकि उन्होंने चुनाव और मतदान में हिस्सा जरूर लिया था. उपराष्ट्रपति चुनाव 2022 में मतदान से तृणमूल कांग्रेस के अलग रहने के फैसले की लेफ्ट दलों और कांग्रेस ने आलोचना की है.
HIGHLIGHTS
- उपराष्ट्रपति चुनाव 2022 में मतदान से दूर रहेगी तृणमूल कांग्रेस
- देश में उपराष्ट्रपति पद के लिए 6 अगस्त को चुनाव होने वाला है
- उपराष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए विपक्ष ने TMC की राय नहीं ली