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Multiple Myeloma: क्या है मल्टीपल मायलोमा, जिससे जूझ रही थीं बिहार कोकिला शारदा सिन्हा, दी गई अंतिम विदाई

Multiple Myeloma: मशहूर लोकगायिका शारदा सिन्हा को आज यानी गुरुवार को अंतिम विदाई दी गई. उनका निधन मल्टीपल मायलोमा की वजह से हुआ. आइए जानते हैं कि ये कितनी खतरनाक बिमारी है.

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Ajay Bhartia
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Sharda Sinha

Multiple Myeloma: क्या है मल्टीपल मायलोमा, जिससे जूझ रही थीं बिहार कोकिला शारदा सिन्हा, दी गई अंतिम विदाई

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Multiple Myeloma: बिहार कोकिला और मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्हा को छठ महापर्व के दिन गुरुवार को अंतिम विदाई गई है. छठ गीतों से अमिट छाप छोड़ने वाली शारदा सिन्हा को उनके बेटे मुख्गानि दी. पटना के गंगा तट के गुलबी घाट पर राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया. पता चला है कि शारदा सिन्हा मल्टीपल मायलोमा (Multiple Myeloma) से जूझ रही थीं, जिसके चलते मंगलवार देर रात उनका निधन हो गया था. आइए जानते हैं कि मल्टीपल मायलोमा क्या है.

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छठ पूजा लोक गायिका शारदा सिन्हा का निधन ऐसे में मौके पर हुआ, जब पूरा देश छठ का पर्व मना रहा है. हर ओर उनके गाने गूंज रहे हैं, लेकिन वो पंचत्व में विलीन हो चुकी हैं. शारदा सिन्हा ने छठ पर्व के लिए केलवा के पात पर उगलन सूरजमल झुके झुके और सुनअ छठी माई जैसे कई प्रसिद्ध छठ गीत गाए हैं. उनके गाए गीत देश क्या, अमेरिका तक में भी सुने जाते हैं. लोग उनकी गायिकी के दीवाने हैं. उनका निधन भोजपुरी, मैथिली और मगही संगीत के लिए बड़ी क्षति है. 

क्या है मल्टीपल मायलोमा?

एक रिपोर्ट के अनुसार, शारदा सिन्हा अपने जीवन के आखिरी समय में मल्टीपल मायलोमा से जूझ रही थीं, जो एक खतरनाक बीमारी है. मल्टीपल मायलोमा एक ऐसा कैंसर है, जो प्लाज्मा कोशिकाओं में शुरू होता है. प्लाज्मा कोशिकाएं एक प्रकार की श्वेत रक्त कोशिका (White Blood Cell) होती हैं जो शरीर को संक्रमण से लड़ने में मदद करने के लिए एंटीबॉडी बनाती हैं. 

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कैसे होता है मल्टीपल मायलोमा?

मल्टीपल मायलोमा ब्लड कैंसर का एक प्रकार है. ये खतरनाक बिमारी श्वेत रक्त (White Blood) के प्लाज्मा सेल के बढ़ाने की वजह से होता है. हालांकि, अभी तक इसके होने के सटिक कारणों का पता नहीं चल पाया है. ये खतरनाक बिमारी किसी को भी हो सकता है. बता दें कि मल्टीपल मायलोमा को वंशानुगत बीमारी नहीं माना जाता है.

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मल्टीपल मायलोमा का क्या है इलाज?

मल्टीपल मायलोमा एक लाइलाज बिमारी है, जिसे डॉक्टर कर सकते हैं, लेकिन जड़ से खत्म नहीं कर सकते हैं. इस बिमारी की कई सारी दवाएं मार्केट में उपलब्ध हैं. इस वजह से पहले जहां इसके मरीज 2-3 साल तक ही जिंदा रह पाते थे, वहीं अब वे 5-7 साल तक जीवित रह सकते हैं. दवाईयों के अलावा कीमोथेरेपी से इसका इलाज किया जाता है.

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