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कई ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी बना अगस्त, एक इतिहास मोदी सरकार ने भी लिखा

तीन तलाक के खिलाफ कानून 1986 में ही बन सकता था, जब शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया था. उस समय 545 सदस्यीय लोकसभा में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 400 से ज्यादा थी और 245 सांसदों वाली राज्यसभा में भी 159 सांसद कांग्रेस के थे.

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Nihar Saxena
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तीन तलाक कानून 1 अगस्त 2019 को लागू हुआ था.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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इतिहास के गलियारों में अगस्त (August) का महीना कई महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी रहा है. एक अगस्त को 1920 में महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने असहयोग आंदोलन (Non-cooperation movement) की शुरुआत की. एक हफ्ते बाद की तारीख यानी 8 अगस्त 1942 को ही अंग्रेजों भारत छोड़ो (Quit India Movement) का नारा बुलंद कर आंदोलन शुरू किया गया. इस महीने की 15 तारीख को 1947 में भारत को अंग्रेज हुक्मरानों के शासन से आजादी मिली. आधुनिक भारत में भी अगस्त कई ऐतिहासिक फैसलों और निर्णयों का साक्षी बना. मोदी सरकार (Modi Government) के दूसरे कार्यकाल में  5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) को अनुच्छेद 370 से मुक्त कराया गया. इसके बाद 1 अगस्त 2019 को ही मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक (Triple Talaq) रूपी कुप्रथा से आजादी मिली. इस दिन को इसीलिए मुस्लिम महिला अधिकार दिवस (Muslim Women's Rights Day) के रूप में मनाने कै फैसला किया गया. तीन तलाक या तलाक-ए-बिद्दत को न तो संवैधानिक दर्जा प्राप्त था और न इस्लाम की शिक्षाओं के अनुरूप यह जायज था. इसके बावजूद देश भर में मुस्लिम महिलाओं का उत्पीड़न करने वाली यह कुप्रथा वोट बैंक के फेर में फलती-फूलती रही, लेकिन मोदी सरकार ने इसे समाप्त कर मुस्लिम महिलाओं को इससे आजादी दिलाई.

राजीव गांधी चाहते तो ले सकते थे इसका श्रेय
अगर आधुनिक भारत के इतिहास में कांग्रेस या अन्य राजनीतिक दलों की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति पर नजर डालें, तो मुस्लिम महिलाओं के साथ कांग्रेस के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी न्याय कर सकते थे. यानी तीन तलाक के खिलाफ कानून 1986 में ही बन सकता था, जब शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया था. उस समय 545 सदस्यीय लोकसभा में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 400 से ज्यादा थी और 245 सांसदों वाली राज्यसभा में भी 159 सांसद कांग्रेस के थे. इसके बावजूद राजीव गांधी सरकार ने पांच मई 1986 को इस संख्या बल का इस्तेमाल कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी कर दिया. यानी मुस्लिम वोट बैंक के तुष्टिकरण की राजनीति का इस्तेमाल कर कुछ कट्टरपंथियों के दबाव के आगे झुकते हुए  मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को कुचलने और तीन तलाक कुप्रथा को ताकत देने का काम किया.

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2017 में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया
गौरतलब है कि सिर्फ तीन बार तलाक... तलाक... तलाक... बोल देने भर, तीन बार चिट्ठी पर लिख कर भेज देने भर, फोन पर बोलकर, वाट्स एप मैसेज के जरिये तलाक देने के मामले सामने आने लगे. वोट बैंक की राजनीति में यह कुप्रथा फलती फूलती रही. मोदी सरकार के दौर में सामने आई शायरा बानो, जिन्होंने अपनी रिट याचिका में सुप्रीम कोर्ट से तीन प्रथाओं... तलाक-ए-बिद्दत, बहुविवाह, निकाह-हलाला को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की. इस कड़ी में संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25 के उल्लंघन का हवाला देकर मामले दर्ज किए जा रहे थे. सुप्रीम कोर्ट में तमाम तर्क-कुतर्क दिए गए, लेकिन अंततः 18 मई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार दे दिया. इसके बाद मोदी सरकार ने एक अगस्त 2019 को संसद में कांग्रेस, वाम दलों, सपा, बसपा, तृणमूल कांग्रेस सहित तमाम कथित धर्मनिरपेक्ष दलों के विरोध को दरकिनार कर तीन तलाक कुप्रथा को खत्म करने वाले विधेयक को कानूनी रूप दे दिया. इसी के साथ 1 अगस्त देश की मुस्लिम महिलाओं के लिए संवैधानिक, मौलिक, लोकतांत्रिक एवं समानता के अधिकारों का दिन बन गया.

कई इस्लामी देशों ने पहले ही तीन तलाक को खत्म किया
गौरतलब है कि भारत में तीन तलाक रूपी कुप्रथा को खत्म करने में 70 साल से अधिक का समय लग गया. यह तब है जब दुनिया के कई प्रमुख इस्लामी देशों ने बहुत पहले ही तीन तलाक को गैर-कानूनी और गैर-इस्लामी घोषित कर खत्म कर दिया था. मिस्र दुनिया का पहला इस्लामी देश है, जिसने 1929 में ही तीन तलाक को खत्म किया और इसे गैर कानूनी एवं दंडनीय अपराध बनाया. 1929 में सूडान ने भी तीन तलाक पर प्रतिबंध लगाया. 1956 में पाकिस्तान, 1972 में बांग्लादेश, 1959 में इराक, 1953 में सीरिया, 1969 में मलेशिया ने इस पर रोक लगाई. इसके अलावा साइप्रस, जॉर्डन, अल्जीरिया, ईरान, ब्रूनेई, मोरक्को, कतर, यूएई जैसे इस्लामी देशों ने भी तीन तलाक को खत्म किया और इसके खिलाफ कानूनी प्रावधान बनाए.

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तीन तलाक के मामलों में 82 फीसदी की कमी 
एएनआई समाचार एजेंसी के मुताबिक पूर्व केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा था कि तीन तलाक कानून के अस्तित्व में आने के बाद से तलाक के मामलों में 82 फीसदी की कमी आई है. यह कानून महिलाओं की आत्मनिर्भरता, आत्म-सम्मान को बढ़ावा देने का प्रयास करता है क्योंकि यह मुस्लिम महिलाओं के मौलिक और लोकतांत्रिक अधिकारों को मजबूत करता है. इन्हीं कारणों से बीते साल 1 अगस्त को मुस्लिम महिला अधिकार दिवस घोषित किया गया. इस साल भी देश भर में कई कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. इसके पहले तक ट्रिपल तलाक मुख्य रूप से हनफ़ी इस्लामिक स्कूल ऑफ़ लॉ के बाद भारत के मुस्लिम समुदाय में प्रचलित एक प्रथा रही.

मुस्लिम महिला के प्रावधान (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019

  • अधिनियम लिखित या इलेक्ट्रॉनिक रूप में तलाक की सभी घोषणाओं को अमान्य अर्थात कानून में लागू नहीं करने योग्य और अवैध बनाता है
  • यह तलाक को एक संज्ञेय अपराध की घोषणा भी करता है. इसमें तीन साल तक की कैद और जुर्माने का प्रावधान है
  • एक संज्ञेय अपराध है जिसके लिए एक पुलिस अधिकारी किसी आरोपी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकता है
  • मजिस्ट्रेट आरोपी को जमानत दे सकता है, लेकिन उसके पहले तलाक घोषित महिला की भी बात सुनी जाएगी. अगर मजिस्ट्रेट संतुष्ट हुआ और जमानत देने के लिए उचित आधार पाता है तभी जमानत मिल सकेगी
  • तलाकी घोषित महिला के अनुरोध पर मजिस्ट्रेट द्वारा अपराध को कंपाउंड किया जा सकता है. यानी दोनों पक्ष समझौता कर सकते हैं
  • एक मुस्लिम महिला जिसके खिलाफ तलाक घोषित किया गया है, अपने पति से अपने लिए और अपने आश्रित बच्चों के लिए निर्वाह भत्ता लेने की हकदार है.

HIGHLIGHTS

  • मुस्लिम महिला अधिकार दिवस तीन तलाक कानून पर केंद्रित
  • 2017 में तीन तलाक को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया
  • 70 साल से अधिक लग गए मुस्लिम महिलाओं को निजात पाने में
Modi Government jammu-kashmir मोदी सरकार जम्मू कश्मीर Mahatma Gandhi Quit India Movement Triple Talaq महात्मा गांधी August तीन तलाक Muslim Women's Rights Day Non Cooperation Movement मुस्लिम महिलाधिकार दिवस असहयोग आंदोलन अंग्रेज भारत छोड़ो अगस्त
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