नेपाल (Nepal) के वयोवृद्ध इतिहासकार और देश के सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाले साहित्यकार सत्य मोहन जोशी (Satya Mohan Joshi) का रविवार की सुबह केआईएसटी मेडिकल कॉलेज और टीचिंग अस्पताल में निधन हो गया. 'शताब्दी पुरुष' (मैन ऑफ द सेंचुरी) के रूप में सम्मानित सत्य मोहन जोशी अपने निधन के समय 103 वर्ष के थे. द काठमांडू पोस्ट के अनुसार केआईएसटी के निदेशक सूरज बजराचार्य ने बताया कि 'शताब्दी पुरुष' का निधन सुबह 7.09 बजे हुआ. निमोनिया, प्रोस्टेट, दिल से संबंधित और डेंगू की समस्या सामने आने के बाद उनका सितंबर के शुरुआती दिनों से इलाज चल रहा था. उनके बेटे अनु राज जोशी ने अभी तक यह तय नहीं किया है कि मृतक वयोवृद्ध के शरीर का क्या किया जाए, क्योंकि उन्होंने और उनकी पत्नी ने पिछले साल केआईएसटी के साथ मृत्यु के बाद अपने शरीर को अनुसंधान के लिए दान करने के एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.
बतौर सांस्कृतिक विद्वान 'शताब्दी पुरुष' सत्य मोहन जोशी के जीवन में कई निर्णायक क्षण आए, जानें कुछ के बारे में.
- सत्य मोहन जोशी का जन्म 1919 में पाटन में हुआ था. उन्होंने नाटक, संस्कृति, इतिहास और संगीत पर 60 से अधिक पुस्तकें लिखने के साथ कला और संस्कृति के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया. लोक अध्ययन, नेपाली मुद्राशास्त्र और करनाली क्षेत्र की परंपराओं पर गहन काम के लिए उन्हें तीन बार मदन पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 'शताब्दी पुरुष' सत्य मोहन जोशी नेपाल के घर-घर में एक लोकप्रिय नाम था.
- उन्होंने नेपाली संस्कृति और कला को बचाए रखने के अपने प्रयास के तहत राष्ट्रीय नाच घर की स्थापना की थी.
- उन्होंने काठमांडू के कीर्तिपुर में अरानिको व्हाइट डगोबा गैलरी की भी स्थापना की, जो एक नेपाली मूर्तिकार और प्राचीन नेपाल के वास्तुकार अरानिको से जुड़ी ऐतिहासिक कलाकृतियों का ठिकाना है. गौरतलब है कि अरानिको ने ही चीन के सफेद पैगोडा का निर्माण किया था.
- द हिमालयन टाइम्स के मुताबिक सितंबर 2019 में नेपाल राष्ट्र बैंक 100 रुपए, 1,000 रुपए और 2,500 रुपए के मूल्यवर्ग के तीन नए सिक्के जारी किए थे. इन पर सत्य मोहन जोशी का पोट्रेट अंकित था. उन्हें यह सम्मान उनके 100वें जन्मदिन के उपलक्ष्य में दिया गया था.
- पिछले साल 17 नवंबर को 'शताब्दी पुरुष' सत्य मोहन जोशी नेपाल का इलेक्ट्रॉनिक पासपोर्ट प्राप्त करने वाले पहले शख्स थे.
HIGHLIGHTS
- डेंगू, निमोनिया और दिल संबंधी बीमारियों से लंबे समय से जूझ रहे थे
- नाटक, संस्कृति, इतिहास और संगीत पर 60 से अधिक पुस्तकें लिखीं
- लोक कला पर काम के लिए भी तीन बार मदन पुरस्कार से सम्मानित
Source : News Nation Bureau