महाभारत काल में राजा दुष्यंत और रानी शकुंतला के वीर पुत्र भरत के नाम पर देश का नाम भारत रखा गया. वैदिक काल में भारत को आर्याव्रत के नाम से जाना जाता था. इस दौर में भारत की पहचान विराट और वैभवशाली हुआ करती थी. जाहिर है मोहन भागवत वही कह रहे हैं जो 'पुराण'' कहते आए हैं. वेद और पुराणों में भारत शब्द का कई जगहों पर उल्लेख है. मोहन भागवत उसी भारत के पुनर्जारण का साक्षी बनना चाहते हैं. जिस वैभावशाली और विश्वगुरु बनने का जिक्र पीएम मोदी 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर कर चुके हैं. भागवत भारत के नाम को इसलिए भी आगे बढ़ाना चाहते हैं कि यह नाम किसी गुलामी का प्रतीक नहीं है. यह देश का मौलिक नाम है. वैसे भी आज के दौर में जब कई चीजों की विरासत लौटाई जा रही हों. एक नया इतिहास लिखा जा रहा हों. उस दौर में देश के पुरातन नाम को आगे बढ़ाने की चर्चा भी जोरों पर है. भागवत का मानना है कि इस नाम के साथ लोगों का आत्मीय जुड़ाव और लगाव भी है. वह चाहते हैं कि लोग इंडिया के बजाए भारत कहने में ज्यादा विश्वास करते हैं. इसमें कोई दो राय नहीं जो भागवत कह रहे हैं वहीं भारत के जनमानस में बसा हुआ है.. पढ़े लिखे लोग भी जिस रुलर इंडिया की बात करते हैं... वो रुलर इंडिया भारत सुनने और कहने में गर्व महसूस करता है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि ‘इंडिया’ की जगह भारत शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. संघ प्रमुख भागवत ने कहा कि भारत नाम प्राचीन समय से लगातार चला आ रहा है और हम सबको इसे आगे भी जारी रखना चाहिए. हमारे देश का नाम सदियों से भारत ही है. भाषा कोई भी हो, लेकिन नाम एक ही रहता है.
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दुनिया को हमारी जरूरत- भागवत
आजादी के अमृतकाल में भारत के साथ यह संयोग जुड़ता जा रहा है, जिससे की इसकी चर्चा विश्व पटल पर हो रही है. चाहें चांद्रयान पर इतिहास रचने की बात हो या मिशन सूर्य की बात हो. या फिर आर्थिक शक्ति के रूप में ऊभरते भारत की चर्चा हो. ये वो घटनाएं हैं जो भारत को अपने प्राचीनतम वैभव को एक बार फिर से जिंदा कर रहे हैं. संघ प्रमुख भागवत उसी सांस्कृतिक पुनर्जारण की बात कर रहे हैं, जिसमें कि भारत के लोग अपने प्राचीन नाम के साथ गर्व महसूस कर रहे हैं. एकीकरण की अहमियत के बारे में बताते हुए भागवत ने कहा कि भारत एक ऐसा देश है जो सभी को एक साथ लेकर चलना पसंद करता है. आज के समय में दुनिया को हमारी जरूरत है. हमने योग के जरिए पूरे विश्व को जोड़ा है. भारत की संस्कृति सभी संस्कृतियों का सम्मान और आदर करती है. आज पूरा विश्व हमारी ओर उम्मीद और विश्वास से देख रहा है.
इंडिया बनाम भारत के बीच संघ प्रमुख के बयान पर सियासत
संघ प्रमुख के बयान के राजनीतिक निहातार्थ भी हैं. इंडिया नाम भी आज उतना ही चर्चा में है, जितना 2024 आम चुनाव हेडलाइन्स की सुर्खियां बना रहा है. इंडिया गठबंधन बनने के बाद से भारत बनाम इंडिया की बहस सियासत के केंद्र में आ गई है. कांग्रेस और बीजेपी इंडिया और भारत को लेकर आमने सामने है. कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने गठबंधन का नाम इंडिया रखकर एक नया बैटल खड़ा कर दिया है, वहीं, संघ प्रमुख मोहन भागवत की लोगों से इंडिया की जगह भारत शब्द का इस्तेमाल करने की अपील भी कहीं न कहीं 'इंडिया' गठबंधन के प्रभाव को कम करने वाला है. भागवत भले ही भारत नाम के साथ जुड़े देश के स्वाभिमान और वैभव की ओर इशारा कर रहे हैं, लेकिन उनके इस बयान को सियासत से भी जोड़कर देखा जाएगा.
विपक्ष और सत्तापक्ष के बीच जारी है वाक्ययुद्ध
राहुल गांधी के निशाने पर लगातार बीजेपी के साथ-साथ आरएसएस रहा है. ऐसे में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने जिस इंडिया के विरोध की बिगुल फूंकी है उसे भागवत का कांग्रेस को करारा जवाब माना जा रहा है. क्योंकि, 2024 चुनाव को लेकर देश की सियासत उस मुहाने पर खड़ी है, जहां मोदी विरोधी और मोदी समर्थकों के बीच सियासी जंग साफ देखी जा सकती है.
विपक्ष भले ही अपनी एकजुटता को देश और संविधान बचाने के लिए की गई पहल करार दे रहा हों, लेकिन असल लड़ाई मोदी विरोध की ही है और ये बात 'इंडिया' गठबंधन में शामिल दलों के नेताओं के उन बयानों से साफ झलकती है जो मोदी सरकार और बीजेपी को निशाने पर रखकर दी जाती है, लेकिन देश के नाम को लेकर भागवत के बयान को 'इंडिया' बनाम एनडीए की लड़ाई में संघ प्रमुख की एंट्री के तौर पर भी देखा जा रहा है.