बिहार (Bihar) की राजनीति में अप्रत्याशित उलटफेर का संभावित असर लोकसभा चुनाव 2024 (Loksabha Elections 2024) में देखने में आ सकता है. बिहार के मुख्यमंत्री बतौर आठवीं बार शपथ लेने वाले नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने इसको लेकर अपने तेवर शपथ (Oath) ग्रहण के तुरंत बाद दिखा भी दिए हैं. हालांकि जनता टल युनाइटेड (JDU) के बीजेपी से अलगाव का आंशिक असर अभी से राज्य सभा (Rajya Sabha) में देखने को मिल जाएगा. गौरतलब है कि जदयू राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का हिस्सा था. हालांकि उसका साथ छोड़ देने से बीजेपी को राज्यसभा में मामूली अंतर पड़ेगा. फिर भी बीजेपी ने एनडीए के एक सहयोगी को तो खो ही दिया है. नीतीश कुमार ने एनडीए से नाता तोड़ बिहार में राष्ट्रीय जनता दल औऱ कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई है. नीतीश कुमार के पलटवार का राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह (Harivansh Narayan Singh) पर क्या असर पड़ेगा, अभी यह स्थिति भी स्पष्ट नहीं है. हरिवंश नारायण सिंह जदयू के सदस्य हैं और बीजेपी के सहयोग से इस पद पर आसीन हुए थे. हरिवंश नारायण सिंह ने अभी तक कोई संकेत नहीं दिए हैं कि वह राज्य सभा के उप-सभापति बने रहेंगे या इस पद को छोड़ देंगे. वैसे राज्य सभा में बीजेपी को किसी प्रस्ताव को पारित कराने में पांच जदयू सदस्यों का नुकसान उठाना पड़ेगा.
राज्यसभा में बहुमत से दूर है बीजेपी
अगर आंकड़ों की भाषा में बात करें तो बीजेपी के लोक सभा में 303 सदस्य हैं. लोकसभा में बीजेपी बहुमत के लिए जरूरी 272 की संख्या से कहीं आगे खड़ी है. यही वजह है कि उसे किसी विधेयक को पारित कराने के लिए एनडीए के घटक दलों का मुंह ताकने की दरकार तक नहीं पड़ती. इसके उलट बीजेपी 237 राज्य सभा में बहुमत से थोड़ा दूर है. इस कारण उसे एनडीए के घटक दलों समेत अन्य क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों पर किसी विधेयक को पारित कराने के लिए निर्भर रहना पड़ता है. हालांकि 91 सांसदों के साथ बीजेपी राज्य सभा में सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है. फिर भी उसे राज्य सभा में अन्नाद्रमुक के 4 बीजद और वायएसआर कांग्रेस के 18 सांसदों की सहयोग की दरकार रहती है. राज्य सभा में जदयू के पांच सांसद हैं, तो लोकसभा में उसके सांसदों की संख्या 16 है.
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बीजेपी का राज्यसभा में बेहद मजबूत है फ्लोर मैनेजमेंट
राज्य सभा में संख्या बल नहीं होने के बावजूद बीजेपी विवादास्पद विधेयकों को भी पारित कराने में सफल रही है. 2019 में बीएसपी और आप सरीखी विपक्षी पार्टियों के बल पर बीजेपी राज्य सभा में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पास कराने में सफल रही थी. इसके बल पर अनुच्छेद 370 हटा जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित राज्यों में बांट दिया था. यही नहीं, अपने फ्लोर मैनेजमेंट के जरिये ही बीजेपी ने तीन तलाक विधेयक भी राज्य सभा में पारित करा लिया था, जबकि जदयू इसके विरोध में था. अब बीजेपी से राहें जुदा हो जाने के बाद राज्य सभा की बदली सूरत में जदयू कांग्रेस नीत विपक्षी दलों साथ बैठेगा.
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हरिवंश नारायण सिंह का क्या होगा
जदयू के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक बीजेपी ने भी अभी तक हरिवंश नारायण सिंह का मसला नहीं उठाया है, लेकिन यह भी सच है कि हरिवंश नारायण सिंह को सिर्फ बीजेपी नहीं, बल्कि कई अन्य दलों के समर्थन से राज्य सभा का उप-सभापति चुना गया था. इनमें कई ऐसे दल भी थे, जो एनडीए का हिस्सा नहीं थे. उदाहरण के तौर पर शिवसेना और बीजद का नाम लिया जा सकता है. हालांकि यह एक सच्चाई है कि हरिवंश नारायण सिंह के नाम का प्रस्ताव बीजेपी ने रखा था. एनडीए की बदौलत ही हरिवंश नारायण सिंह ने सितबंर 2020 में राज्य भा के उप-सभापति का चुनाव दूसरी बार जीता था. हरिवंश नारायण सिंह ने राजद प्रत्याशी मनोज झा को हराया था.
HIGHLIGHTS
- अब बीजेपी को राज्य सभा में जदयू के पांच सांसदों का साथ नहीं मिलेगा
- जदयू सदस्य उप सभापति हरिवंश नारायण सिंह की स्थिति भी स्पष्ट नहीं है
- हालांकि बीजेपी को राज्य सभा में विधेयक पास कराने नहीं आती दिक्कत