दशकों से दर्शकों को प्रफुल्लित और आनंदित करने वाली, कभी-कभी दुखी और सोचने पर मजबूर कर देने वाली कहानियां रुपहले पर्दे पर दिखाने वाला हिंदी फिल्म उद्योग आज एक संक्रमण प्वाइंट पर आ पहुंचा है. लोकप्रिय शब्दों में बॉलीवुड (Bollywood) के नाम से पहचाने जाने वाले हिंदी फिल्म उद्योग के लिए यह समय एक ऐसी चुनौती (Challenges) लेकर आया है, जिसका सामना उसने इससे पहले कभी नहीं किया. बॉलीवुड के इस संकट पर एसबीआई रिसर्च टीम ने एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है. समूह की मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्या कांति घोष के नेतृत्व में तैयार की गई रिपोर्ट में संकट के पीछे के कारणों को बताते हुए कुछ सुझाव दिए गए हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत एक विचार को 'सॉफ्ट पावर' देने वाले बॉलीवुड के लिए इन सुझावों पर अमल करना आज कहीं ज्यादा जरूरी है. इस रिपोर्ट को शीर्षक दिया गया है 'रेमिनिसिंग द डेज़ ऑफ फ्राइडे ब्लॉकबस्टर बॉलीवुड रिलीजेसः आर वी विटनेसिंग ए बिहेवियरल शिफ्ट इन व्यूअर्स'. यानी 'शुक्रवार को ब्लॉबस्टर बॉलीवुड फिल्मों के प्रदर्शन के दिनों की यादेंः आज हम नए भारतीय दर्शकों की मानसिकता में आए बदलाव के साक्षी बन रहे हैं' शीर्षक से यह रिपोर्ट जारी की गई है. इस रिपोर्ट में चार प्रमुख मसलों पर चर्चा की गई, जो समग्र तौर पर पूरे हिंदी फिल्म उद्योग को नुकसान पहुंचा रहे हैं.
कोरोना काल के बाद अधिसंख्य एकल सिनेमाघर हो गए बंद
रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंदी फिल्मों की विषयवस्तु कोरोना महामारी (Corona Epidemic) के बाद दो धारी तलवार हो गई है, जो बॉक्स ऑफिस पर उनकी कमाई को प्रभावित कर रही है. रिपोर्ट के मुताबिक, 'जो काम दो-दो विश्व युद्ध नहीं कर सके, ऐसा कुछ कोविड-19 ने कर दिया यानी तमाम सिनेमाघर बंद हो गए.' कोरोना काल से पहले हिंदी भाषा में औसतन 70 से 80 फिल्में हर साल प्रदर्शित होती थी. इन सभी का समग्र बॉक्स ऑफिस कलेक्शन 3 हजार से 5,500 करोड़ रुपए तक होता था. हालांकि जनवरी 2021 से अगस्त 2022 तक महज 61 फिल्मों का प्रदर्शन हुआ. इनमें मूल हिंदी के साथ दक्षिण और अंग्रेजी भाषा की डब फिल्में भी शामिल हैं. और तो और, ये सभी फिल्में 3,200 करोड़ रुपए का बिजनेस कर सकी हैं. इनमें भी 48 फीसदी कलेक्शन 18 डब की हुई फिल्मों का रहा है. रिपोर्ट साफ तौर पर कहती है, 'मूल हिंदी फिल्मों की स्थिति कतई संतोषजनक नहीं है'.
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हिंदी फिल्मों की रेटिंग में आई जबर्दस्त कमी
रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने कहा है कि जनवरी 2021 से 42 हिंदी फिल्मों की औसत रेटिंग 5.9 रही है, जो हिंदी में डब (Dub Films) की गई फिल्मों की औसत रेटिंग 7.3 से कहीं कम है. किसी फिल्म की रेटिंग उसकी विषयवस्तु की लोकप्रियता को मापने का बेहतरीन जरिया माना जाता है. इस क्रम में आमतौर पर सभी 'अच्छी' फिल्में 'अच्छी' रेटिंग हासिल करती हैं और बॉक्स ऑफिस पर भी 'अच्छा' कलेक्शन करती हैं. अगर सांख्यिकीय समीकरणों पर देखें तो आईएमडीबी पर रेटिंग में एक अतिरिक्त प्वाइंट बॉक्स ऑफिस कलेक्शन में अतिरिक्त 17 करोड़ रुपए जोड़ सकता है.
दक्षिण भारतीय फिल्मों की कमाई में एकल सिनेमाघरों का योगदान
इस शोधपरक रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि एकल सिनेमाघरों (Sigle Screens) की कमी और इसी दौरान मल्टीप्लेक्स की संख्या में वृद्धि ने भी हिंदी फिल्म उद्योग के समक्ष विद्यमान समस्याओं को बढ़ाने का काम किया है. मल्टीप्लेक्स में किसी फिल्म के टिकट की कीमत एकल सिनेमाघर के टिकट की कीमत की तुलना में तीन से चार गुना अधिक होती है. हिंदी भाषी फिल्मों पर मनोरंजन कर की ज्यादा मात्रा भी टिकट की कीमतों में वृद्धि का एक बड़ा कारण है. रोचक बात यह है कि देश के 62 फीसद एकल सिनेमाघर दक्षिण भारत में हैं, जबकि उत्तर भारत की एकल सिनेमाघरों में हिस्सेदारी 16 फीसद है. इसके बाद पश्चिमी भारत के एकल सिनेमाघरों का नंबर आता है, जहां उनकी भागीदारी 10 प्रतिशत है. रिपोर्ट में कहा गया है कि यही वजह है कि बॉलीवुड फिल्मों की तुलना में दक्षिण भारत की फिल्मों की बॉक्स ऑफिस कमाई कहीं अधिक होने का यह भी एक कारण हो सकता है.
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ओटीटी प्लेटफॉर्म्स दे रहे मनोरंजन के ढेरों विकल्प
रिपोर्ट एक अन्य पहलू को भी सामने लाती है. इसके मुताबिक अलग-अलग राज्यों की जनसांख्यिकीय प्रोफाइल भी फिल्म देखने वालों पर असर छोड़ रही है. इनके लिए ओटीटी (OTT) प्लेटफॉर्म्स फिल्मों और वेब सीरीज लेकर आ पहुंचे हैं. लगभग सभी ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर एक्शन, हॉरर, थ्रिलर, कॉमेडी समेत अन्य जॉनर का केंटेंट उपलब्ध है. रिपोर्ट के मुताबिक 'मिलेनियल्स' इन ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के कंटेंट का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते हैं. 'मिलेनियल्स' यानी 21वीं सदी में वयस्क होने वाली आबादी के लिए ओटीटी पर उनके पसंदीदा जॉनर की फिल्मों से लेकर वेब सीरीज तक आसानी से मिल जाती है. हालांकि उत्तर भारत की तुलना में दक्षिण भारत में उम्रदराज लोगों की बड़ी संख्या है, जो ओटीटी के बजाय सिनेमाघरों या मल्टीप्लेक्स के बड़े परदे पर फिल्म देखना पसंद करते हैं. इस लिहाज से कह सकते हैं कि भारतीय मनोरंजन उद्योग के लिए ओटीटी का आगमन एक बड़ी चुनौती बन कर उभरा है. हाल-फिलहाल मनोरंजन उद्योग में ओटीटी की भागीदारी 7 से 9 फीसदी है. यह भागीदारी लगातार और तेजी से बढ़ रही है. ओटीटी के लिए 40 से अधिक कंपनियां अलग-अलग स्थानीय भाषा में अलग-अलग जॉनर का केंटेंट उपलब्ध करा रही हैं.
ओटीटी घर पर दे रहा सिनेमाघर का अनुभव
कुछ स्रोतों के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में ओटीटी के 45 करोड़ सब्सक्राइबर हैं और 2023 तक यह संख्या 50 करोड़ पहुंच जाने की उम्मीद है. जाहिर है ओटीटी की बढ़ती मांग भी सिनेमाघरों के दर्शकों की संख्या को कम रही है, जिससे बॉक्स ऑफिस (Box Office) की कमाई पर भी असर पड़ रहा है. आंकड़ों की भाषा में कहें तो ओटीटी के जरिये मनोरंजन करने वाले 50 फीसदी से अधिक लोग महीने में 5 घंटों से ज्यादा वक्त इन पर दे रहे हैं. ओटीटी के अलावा स्मार्ट टीवी, क्रोम कास्ट के भी आ जाने से परंपरागत तरीके से मनोरंजन के माध्यम को गहरी चोट पहुंचाई है. इनके जरिये सिनेमाघरों में फिल्म देखने का अनुभव अब घर पर ही लिया जा सकता है. वह भी विकल्प के ढेरों अवसर के साथ. हालांकि समय के साथ साथ तकनीक और माध्यम भी बदलते रहते हैं, तो इसमें कोई बुराई भी नहीं है.
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36 फीसदी की दर से बढ़ रहा ओटीटी बाजार
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि 1980 के दशक में किराये पर वीडियो कैसेट की मांग बहुत तेजी से बढ़ी थी. वीसीआर के आगमन के साथ वीडियो कैसेट किराये पर लेने के चलन ने मनोरजंन के परंपरागत माध्यम यानी सिनेमाघरों को पहली बार चुनौती दी थी. यहां यह भी गौर करने वाली बात है कि सन् 2000 से मल्टीप्लेक्स की महानगरों और शहरों में बढ़ती संख्या ने डीवीडी उद्योग और एकल सिनेमाघरों को खत्म सा कर दिया. अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि ओटीटी एक बार फिर मनोरंजन के शौकीनों को डीवीडी दौर में वापस ले गया है, जहां घर पर बैठ कर फिल्मों और वेब सीरीज का आनंद लिया जा सकता है. वह भी सामने उपलब्ध ढेरों विकल्पों में से. भारत में 2023 तक ओटीटी बाजार 11,944 करोड़ हो जाएगा. यह 2018 के 2,590 करोड़ से कहीं अधिक है. ओटीटी बाजार 36 फीसदी की दर से बढ़ रहा है.
HIGHLIGHTS
- हिंदी फिल्मों की कमाई कम कर रही अंग्रेजी या दक्षिण भारत की डब फिल्में
- उस पर ओटीटी ने उपलब्ध विकल्पों से दे दी समग्र बॉलीवुड को बड़ी चुनौती
- भारत में 36 फीसदी वार्षिक दर से बढ़ रहा है ओटीटी का उभरता बाजार