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बाढ़ ने पाकिस्तान की कंगाली का आटा कर दिया और गीला, क्या होगा अब

सबसे बड़ी चिंता तो ऊर्जा और भोजन के आयात के भुगतान करने की पाकिस्तान की क्षमता से जुड़ी है. उस पर विदेशों से लिए गए ऋण को चुकाने की जिम्मेदारियां हैं.

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Nihar Saxena
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बाढ़ से कंगाल पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति हुई और पतली.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की पाकिस्तान को आर्थिक मदद महीनों से खराब चल रही उसकी अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए थी. तेल, गैस और अन्य जरूरी वस्तुओं के लिए भारी आयात पर निर्भर यह परमाणु संपन्न देश किसी अन्य विकासशील देश की तरह बाहरी झटकों से उबर नहीं पा रहा है. अगस्त में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के आर्थिक पैकेज के बावजूद विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Reserve) के रसातल में जाने, स्थानीय मुद्रा में लगातार गिरावट आने और आसमान छूती मंहगाई ने पाकिस्तान (Pakistan) की अर्थव्यवस्था को लेकर फिर से गंभीर चिंता को जन्म दे दिया है. मानों यही काफी नहीं था अगस्त में आई बाढ़ (Floods) ने न सिर्फ 1500 लोगों को लील लिया, बल्कि अरबों रुपए का नुकसान अलग से कर दिया. इससे उसकी वित्तीय स्थिति पर और भी ज्यादा दबाव आ गया है. 

आखिर मूल चिंताएं क्या हैं
सबसे बड़ी चिंता तो ऊर्जा और भोजन के आयात के भुगतान करने की पाकिस्तान की क्षमता से जुड़ी है. उस पर विदेशों से लिए गए ऋण को चुकाने की जिम्मेदारियां हैं. पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक के अनुसार बाढ़ के कहर से पहले वित्तीय वर्ष 2022-2023 (जुलाई-जून) के लिए बाहरी वित्त पोषण से जुड़ी जरूरतों का अनुमान 33.5 बिलियन डॉलर का था. यह चुनौतीपूर्ण आंकड़ा चालू खाता के घाटे समेत मित्र देशों से लिए ऋण रोल ओवर को लगभग आधा कर पूरा किया जाना था. यह अलग बात है कि बाढ़ ने पूरे के पूरे हालात बदल दिए. अब बाढ़ से लाखों हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि पर खड़ी जरूरी फसलों के नष्ट हो जाने के बाद निर्यात में गिरावट और आयात बढ़ने की पूरी उम्मीद है. पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक के पास 8 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बचा है, तो वाणिज्यिक बैंकों के पास 5.7 बिलियन डॉलर का अतिरिक्त विदेशी मुद्रा भंडार है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आर्थिक पैकेज के बावजूद इससे हद से हद एक माह आयात किया जा सकेगा. इस साल की शुरुआत के साथ ही पाकिस्तानी रुपये 20 फीसदी कमजोर हो चुका है और अगस्त में तो निचले स्तर पर था. यह न सिर्फ पाकिस्तान की दयनीय आर्थिक स्थिति को सामने लाता है, बल्कि बताता है कि डॉलर की मजबूती के आगे वह कब तक टिका रहेगा. पाकिस्तान के रुपये की गिरावट आयात,  उधार और ऋण की लागत बढ़ा रही है. इसके साथ ही यह स्थिति विगत कई दशकों के उच्च स्तर पर चल रही 27.3 फीसदी महंगाई को भी और बढ़ाने का काम करेगी. 

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इसलिए घबराया हुआ है बाजार 
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आर्थिक पैकेज ने घाटे की तमाम आशंकाओं को कुछ हद तक कम किया था, लेकिन अब वे नए सिरे से उबर आई हैं. शुरुआती स्तर पर बाढ़ से 30 बिलियन डॉलर के नुकसान का अनुमान लगाया गया है. यानी अब पाकिस्तान की वित्तीय जरूरतें और भी बढ़ गई हैं. फाइनेंशियल टाइम्स के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने सुझाव दिया था कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय ऋण चुकाना फिलवक्त निलंबित कर दे और लेनदारों के साथ लिए गए ऋण अदायगी के तंत्र को नए सिरे से पुनर्गठित करे. इस खबर पर ही वैश्विक बांड बाजार ने तेजी से प्रतिक्रिया दी. इस पर सरकार ने सफाई देते हुए कहा कि वह सिर्फ राहत पाने की सोच रहा था और निजी ऋण के दायित्वों का निर्वाह करेगी. पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति ही सिर्फ चिंता का सबब नहीं है, बल्कि पाकिस्तान राजनीतिक अस्थिरता के चंगुल में भी फंसा हुआ है. शहबाज शरीफ सरकार को पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की ओर से तगड़ी चुनौती मिल रही है. लगभग एक साल के भीतर पाकिस्तान में आम चुनाव होने हैं. 

वित्त मंत्री पर उठ रहे हैं प्रश्न
पाकिस्तान के भी खेल निराले हैं. अच्छा-भला एक सुधार समर्थक वित्त मंत्री की जिम्मेदारी निभा रहा था, लेकिन उसे हटाकर इशाक डार जैसे दखलंदाजी पसंद शख्स को वित्त मंत्री बना दिया गया.  इशाक डार ने वित्त मंत्री पद की शपथ लेते ही ब्याज दरों में कटौती करने, महंगाई में कमी लाने और रुपये को मजबूती देने वाले उपाय अपनाने की घोषणा कर दी. नतीजा यह निकला कि मुख्य नीतिगत ब्याज दर 15 फीसदी है, जो मुद्रास्फीति की 27 फीसदी दर से काफी नीचे है. इसके साथ ही वर्ष के लिए 20 फीसदी औसत का अनुमान लगाया गया है. जाहिर है डार की लोकलुभावन टिप्पणियों ने ऋण बाजार को एक बार फिर से झकझोर कर रख दिया है. 

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पाकिस्तान के पास विकल्प क्या है
त्वरित समाधान की बात करें तो आयात के लिए वित्त के साथ-साथ मांग में कमी लाना, लेकिन बाढ़ के बाद जरूरतें बढ़ चुकी हैं. हालांकि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय पूंजी बाजारों से बाहर है, क्योंकि निवेशक यूएस कोषागारों सरीखे सुरक्षित पनाहगाहों से पाकिस्तान के बांड्स को ऊपर रखने के लिए 26 फीसदी प्वाइंट प्रीमियम की मांग कर रहे हैं. कुछ संकेत मिले हैं कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का अगला आर्थिक पैकेज बाढ़ की विभीषिका से मुकाबला करने के लिए पाकिस्तान को जल्द मिल जाए. सरकार का कहना है कि उसे अन्य बहुपक्षीय ऋणदाताओं से वित्तपोषण में वृद्धि की उम्मीद है. सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और कतर ने 5 बिलियन डॉलर के निवेश का वादा किया है. इससे वित्तीय स्थिति के साथ-साथ पाकिस्तान के आत्मविश्वास में भी वृद्धि होगी. रियाद और दोहा से ऊर्जा भुगतान की सुविधा मिलने की उम्मीद है, जिनसे पाकिस्तान तरल गैस खरीदता है. इससे भी पाकिस्तान के चालू खाते का दबाव कम होगा. ऋण भुगतान के लिए पाकिस्तान पेरिस क्लब समेत द्विपक्षीय ऋण धारकों से बात कर रहा है. हालांकि पेंच फंसेगा चीन के साथ जिससे पाकिस्तान ने 30 बिलियन डॉलर का ऋण लिया हुआ है. इनमें चीन के सरकारी बैंक भी शामिल हैं.

पाकिस्तान इस गति को प्राप्त कैसे हुआ
आंतरिक राजनीतिक उथल-पुथल और वैश्विक कमोडिटी संकट सरीखे बाहरी झटकों से पाकिस्तान के आर्थिक संकट को बढ़ावा मिला. सामान्यतः पाकिस्तान के आयात का एक-तिहाई हिस्सा ऊर्जा से जुड़ा हुआ है. पिछले वित्तीय वर्ष तरल नाइट्रोजन गैस समेत अन्य पेट्रोलियम पदार्थों के आयात का खर्च दोगुना होकर 23.3 बिलियन डॉलर से अधिक रहा. पाकिस्तान तरल नाइट्रोजन गैस के इस्तेमाल से ही अधिसंख्य बिजली का उत्पादन करता है. बिजली की दरों में भारी इजाफा किया गया है और सर्दी के आने के साथ ही आपूर्ति में कमी आना तय है. बीते वित्तीय वर्ष में बिजली की उच्च दरों से पाकिस्तान का चालू खाता घाटा 17 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया है, जो उसकी जीडीपी के 5 फीसदी के लगभग बैठता है. 2020-21 की तुलना में यह छह गुना अधिक है, वह भी तब जब विदेशों से रिकॉर्ड स्तर पर जबर्दस्त छूट दी गई. अत्यधिक कमजोर होती अर्थव्यवस्था ने भी घाटे को बढ़ाने का काम किया. बीते वित्त वर्ष में ही आयात 42 फीसदी वृद्धि के साथ 80 बिलियन डॉलर का हो गया. साथ ही 32 बिलियन डॉलर का निर्यात भी हुआ लेकिन यह वृद्धि महज 25 फीसदी ही रही. 

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संकटग्रस्त इतिहास
2 अरब 20 करोड़ की आबादी वाले देश पाकिस्तान की 350 बिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था है. पाकिस्तान शुरुआत से ही बाहरी ऋण खातों से संघर्ष करता आ रहा है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने 1958 से अब तक 20 बार आर्थिक पैकेज जारी कर उसे संकट से उबारा है. 1947 में भारत से विभाजन के बाद अस्तित्व में आने के सात सैन्य तख्तापलट, भारत के साथ युद्ध, इस्लामिक आतंकवाद, अफगानिस्तान से करोड़ों की संख्या में शरणार्थियों का आना और कुशासन ने दीर्घकालिक नीतियों को प्रभावित किया है. पाकिस्तान का औद्योगिक उत्पादन सीमित है और आयात का स्थान लेने वाली विकासपरक नीतियां बनाने में असफल रहा है. नतीजतन वह बाहरी झटकों के प्रति हद से ज्यादा संवेदनशील है और नतीजा सामने है.

HIGHLIGHTS

  • बाढ़ ने पाकिस्तान की कंगाली को खतरे के निशान के पार पहुंचाया
  • आईएमएफ का आर्थिक पैकेज भी पाकिस्तान को राहत देने में बेअसर
  • अगर वित्तीय संस्थाओं और निवेशकों से नहीं मिली मदद तो फिर...
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