जनरल असीम मुनीर (Asim Munir) की पाकिस्तान के नए सेना प्रमुख और जनरल शमशाद मिर्जा की ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी (जेसीएससी) के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति को राष्ट्रपति आरिफ अल्वी (Arif Alvi) ने भी हरी झंडी दे दी है. अपने जन्म से पहले ही भारत को शत्रु मान चुके पाकिस्तान के इस घटनाक्रम पर भारत (India) की भी पैनी नजर है. हालांकि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े रणनीतिकारों ने फिलहाल इन दो नई नियुक्तियों का उनके अतीत पर पूर्व आकलन करने के बजाय पाकिस्तान (Pakistan) की सीमाओं पर भविष्य में कार्रवाई और भारत को निशाना बनाने वाले आतंकी समूहों के खिलाफ उनके रवैये पर नए सिरे से आकलन करने का फैसला किया है. वह भी तब जब 14 फरवरी 2019 को पुलवामा (Pulwama Atack) में सीआरपीएफ काफिले पर आतंकी हमले के दौरान जनरल मुनीर आईएसआई के डीजी थे.
विंग कमांडर अभिनंदन प्रकरण से वाकिफ हैं जनरल मुनीर
जनरल असीम मुनीर भारतीय सैन्य क्षमता को जानते हैं, क्योंकि उन्होंने ही आईएसआई के डीजी रहते हुए बालाकोट में 26 फरवरी को सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनंदन को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सख्त संदेश को तत्कालीन वजीर-ए-आजम इमरान खान तक प्रेषित किया था. उस वक्त विंग कमांडर अभिनंदन रावलपिंडी में पाक सेना की हिरासत में थे और पीएम मोदी ने उन्हें किसी तरह के नुकसान पर सख्त सैन्य कार्रवाई की चेतावनी दी थी. तत्कालीन रॉ प्रमुख अनिल धसमाना ने ही आईएसआई के डीजी असीम मुनीर को पीएम मोदी का संदेश नियाजी खान तक पहुंचाने को कहा था. इस बीच भारत ने राजस्थान में पृथ्वी बैलिस्टिक मिसाइलों को तैयार कर लिया था, ताकि बताया जा सके कि प्रधान मंत्री मोदी की चेतावनी असली थी ना कि गीदड़भभकी. इसका ही असर था कि इमरान खान ने उसी शाम पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में विंग कमांडर अभिनंदन की रिहाई की घोषणा कर दी थी.
नए जेसीएससी भारत की युद्ध क्षमता से वाकिफ
पाकिस्तान के नए जेसीएससी जनरल शमशाद मिर्ज़ा भी भारत की युद्ध क्षमता के बारे में किसी मुगालते में नहीं हैं. वे पूर्व में कश्मीर मामलों को देखने वाली एक्स कॉर्प्स के प्रभारी रहे हैं, जिसके अधिकार क्षेत्र में संपूर्ण नियंत्रण रेखा आती है. उन्होंने डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस रहते हुए फिलवक्त भारत के दूसरे सीडीएस जनरल अनिल चौहान के साथ कई बार बातचीत की हुई है, जब अनिल चौहान भारत के डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस हुआ करते थे. निवर्तमान पाक सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा के निर्देश पर भारत के साथ नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम समझौता फिर से सुनिश्चित करने में जनरल मिर्जा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. वे भली-भांति जानते हैं कि भारत एलओसी या पश्चिमी सीमाओं पर पाकिस्तानी सेना की किसी भी कार्रवाई से निपटने में अच्छे से सक्षम है.
जनरल मुनीर के लिए घरेलू चुनौतियां हैं 'असीम'
ऐसे में भारत की क्षमता से वाकिफ जनरल असीम मुनीर के लिए फिलहाल असली मुद्दा घरेलू स्थितियों से निपटना होगा. खासकर जब अपदस्थ पीएम इमरान नियाजी देश पर जल्द से जल्द मध्यावधि चुनाव थोपने के लिए बेकरार हैं. नियाजी खान के पहले के कदम बताते हैं कि वह एक निर्लज्ज राजनीतिज्ञ हैं, जिन्होंने करिश्माई तरीके से अस्तित्वहीन कूटनीतिक समीकरण गढ़ अमेरिका पर आरोप लगा दिया कि पाकिस्तान सेना से मिलीभगत कर उसने उन्हें सत्ता से बेदखल किया. ऐसे में पाकिस्तान में राजनीतिक उथल-पुथल तब तक जारी रहेगी, जब तक चुनाव नहीं हो जाते. इसकी वजह यह है कि इमरान नियाजी पूरी तरह से आश्वस्त हैं कि पाकिस्तान की सेना समेत शरीफ-जरदारी और उनके परिजनों को हर चीज के लिए कोसने से वह राजनीतिक वैतरणी फिर से पार कर लेंगे.
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दूसरी चुनौती है तालिबान
जनरल असीम मुनीर जिस दूसरी चुनौती का सामना कर रहे हैं वह है तालिबान शासित अफगानिस्तान के साथ सीमा विवाद. तालिबान ने डूरंड रेखा को मान्यता देने से इनकार कर दिया है, जिसका इस्तेमाल धूर्त अंग्रेजों ने पश्तून समुदाय को बांटने के लिए किया था. पाकिस्तान के राष्ट्रीय हित के मामलों पर रावलपिंडी की सलाह का पालन करने में तालिबान शासन की दिलचस्पी नहीं होने से सीमा पार से गोलीबारी आए दिन का मसला बन गया है.
आतंकी समूह भी दे रहे तीसरी चुनौती
जनरल मुनीर की तीसरी चुनौती आतंकी समूहों से जुड़ी हुई है. उनके सामने पाकिस्तान में टीटीपी, बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी और सिंध समूह सरीखे कम से कम 40 आतंकवादी समूहों को नियंत्रण में रखना है, जो इस्लामाबाद के खिलाफ खड़े होने की अपनी क्षमता बढ़ा रहे हैं. इन आतंकी समूहों के बढ़ते हौसलों के बीच चीन लगातार पाकिस्तान पर बेल्ट रोड परियोजना के विस्तार पर दबाव डाल रहा है, जिस पर बलूच और सिंध स्थित समूह आगे नहीं बढ़ने दे रहे हैं. इन समूहों ने अब अपने क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने के लिए चीनी नागरिकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है.
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पाकिस्तानी सेना की विश्वसनीयता बहाल करना भी बड़ा मसला
जनरल असीम मुनीर के सामने चौथी बड़ी चुनौती पाकिस्तान सेना की विश्वसनीयता को बहाल करना है, जिस पर एक जमाने में पाक सेना के अपने ही शागिर्द रहे इमरान नियाजी ने फिलवक्त लगातार हमला बोल रखा है. निवर्तमान सेना प्रमुख जनरल बाजवा की अकूत संपत्तियों को सार्वजनिक करना स्पष्ट रूप से पाकिस्तान सेना और उसके कोर कमांडरों की छवि को ध्वस्त करने की साजिश थी, जो पीटीआई योजना का हिस्सा बनी. जनरल मुनीर इमरान नियाज़ी की साजिशों से अच्छी तरह वाकिफ होंगे क्योंकि उन्हें सबसे संक्षिप्त कार्यकाल के बाद आईएसआई मुख्यालय से बाहर निकाल दिया गया. इसके बाद इमरान नियाजी अपने विश्वस्त और समर्थक जनरल फैज हमीद को आईएसआई डीजी के पद पर लेकर आए थे.
अमेरिका से संबंध भी सुधारने हैं जनरल मुनीर को
जनरल असीम मुनीर के समक्ष पेंटागन और जो बाइडन से संबंधों को सुधारने की भी एक बड़ी चुनौती है. अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों को अपदस्थ पीएम इमरान नियाजी ने अस्तित्वहीन कूटनीतिक संकेत गढ़ रसातल में पहुंचा दिया है. इमरान आज भी कोई अमेरिका पर हमले का एक भी मौका नहीं छोड़ रहे कि किस तरह उसने पाकिस्तानी सेना से मिलकर साजिशन उन्हें अपदस्थ कर दिया. गौर करने वाली बात यह है कि भले ही अमेरिकी सेना अफगानिस्तान छोड़ कर चली गई हो, लेकिन पेंटागन पाकिस्तान के भीतर और बाहरी सीमा पर हमले करने की क्षमता रखता है और ऐसा कभी भी कर सकता है. जाहिर है इतने मसलों के होते हुए फिलवक्त जनरल असीम मुनीर भारत की सीमा पर निगाह डालने से कतरएंगे.
HIGHLIGHTS
- पाक के नए सेना प्रमुख जनरल मुनीर के लिए फिलवक्त एलओसी नहीं है पहली प्राथमिकता
- उन्हें सबसे पहले घरेलू मोर्चे पर विद्यमान तमाम बड़ी चुनौतियों से एक साथ पड़ेगा जूझना
- इनमें भी इमरान नियाजी खान की कुटिल चालें है, जो पाक सेना को कठघरे में कर रही खड़ा