पिछले कई हफ्तों से पाकिस्तान (Pakistan) में गेहूं के आटे (Wheat Flour) की कीमत बेहद ऊंचे स्तर पर मंडरा रही है. रोटी और नान देश के प्रमुख खाद्य पदार्थों में से हैं और आटे की कीमतों में भारी बढ़ोतरी ने लोगों को खासी मुश्किल में डाल दिया है. सरकारी सब्सिडी वाले आटे को हासिल करने के लिए अवाम की लंबी-लंबी कतारें देखी जा सकती हैं. सिंध (Sindh) के मीरपुर खास में ऐसे ही एक वितरण कार्यक्रम के दौरान मची भगदड़ (Stampede) ने 7 जनवरी को एक 35 वर्षीय व्यक्ति की जान ले ली. खैबर पख्तूनख्वा में गेहूं के आटे की ऊंची कीमतों ने लोगों को आंदोलन के लिए मजबूर कर दिया. केंद्र और प्रांतीय सरकारों ने संकट के लिए एक-दूसरे को दोषी ठहराया है. विशेषज्ञों का कहना है कि लंबे समय से चले आ रहे इस संकट को रूस यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine War) ने और गहरा दिया. उस पर 2022 की विनाशकारी बाढ़ (Floods) समेत खराब वितरण व्यवस्था और अफगानिस्तान को गेहूं की तस्करी (Smuggling) ने कोढ़ में खाज वाला काम किया है. हालांकि रूस से गेहूं की एक खेप अब पाकिस्तान पहुंच गई है और इससे आने वाले हफ्तों में कुछ राहत मिलने की उम्मीद है.
आटे की कीमतों का संकट कितना बुरा?
दो गेहूं उत्पादक राज्यों पंजाब और सिंध में आटा 145 से 160 पाकिस्तानी रुपये प्रति किग्रा के आसपास बिक रहा है, जबकि खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में भी कीमतें अधिक हैं. गल्फ न्यूज के एक लेख के अनुसार पाकिस्तान में 5 किलो और 10 किलो आटे के बैग की कीमतें एक साल पहले की तुलना में लगभग दोगुनी हो गई हैं. इसी लेख में कहा गया है कि इस्लामाबाद और रावलपिंडी में एक नान 30 पाकिस्तानी रुपये में बिक रही है जबकि एक रोटी 25 पाकिस्तानी रुपये में बिक रही है. 1 पाकिस्तानी रुपया भारतीय रुपये के आगे महज 35 पैसे की वकत रखता है.
यह भी पढ़ेंः Budget 2023: बढ़ सकता है 20 फीसदी रेल बजट, जानें क्या संभव है आम जनता के लिए चुनावी बजट में
किस वजह से आया संकट?
पाकिस्तान अपनी खपत से जुड़ी जरूरतों को पूरा करने के लिए गेहूं का आयात करता है, जिसका बड़ा हिस्सा रूस और यूक्रेन से आता है. ऑब्जर्वेटरी ऑफ इकोनॉमिक कॉम्प्लेक्सिटी के आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 में पाकिस्तान ने 1.01 बिलियन डॉलर मूल्य का गेहूं आयात किया, जिसमें से सबसे अधिक 496 मिलियन डॉलर यूक्रेन से आया. इसके बाद 394 मिलियन डॉलर पर रूस का नंबर था. इस वर्ष रूस-यूक्रेन युद्ध ने इस आपूर्ति को बाधित कर दिया, जबकि पिछले वर्ष की बाढ़ ने घरेलू उपज को कहीं कम कर दिया या नष्ट कर दिया. रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में समस्या अपर्याप्त स्टॉक की तुलना में वितरण की कहीं ज्यादा है. वित्तीय समावेशी को बढ़ावा देने वाले करंदाज पाकिस्तान से जुड़े एक अर्थव्यवस्था विशेषज्ञ अम्मार खान के मुताबिक सिंध और बलूचिस्तान में गेहूं की कीमतों में बड़े पैमाने पर वृद्धि हुई. इसकी बजह बीते साल आई विनाशकारी बाढ़ रही, जिसमें गेहूं के महत्वपूर्ण भंडार नष्ट हो गए. अफगानिस्तान में गेहूं की तस्करी भी एक कारण है, जिसकी वजह से गेहूं की स्थानीय स्तर पर कमी होती है और कीमतें बढ़ जाती हैं. हालांकि सरकारी गोदामों में गेहूं का पर्याप्त स्टॉक मौजूद है. वितरण में देरी से बाजार में गेहूं की कमी होती है और इसके फलस्वरूप गेहूं की मूल्य वृद्धि हुई. हालांकि अब इस समस्या को दूर करने के प्रयास किए जा रहे हैं.
ये वितरण मुद्दे आखिरकार हैं क्या?
भारत की राज्य सरकारों के समकक्ष पाकिस्तान की प्रांतीय सरकारें मिलों को गेहूं प्रदान करती हैं. मिलें फिर खुदरा बाजारों में आटा उपलब्ध कराती हैं. जो प्रांत गेहूं की कमी का अनुमान लगाते हैं, वह और अधिक स्टॉक के लिए केंद्रीय पाकिस्तान कृषि भंडारण और सेवा निगम गोदामों से अनुरोध कर सकते हैं. ग्रामीण इलाकों में छोटी चक्कियां गेहूं की खरीद सीधे किसानों से करती हैं. पाकिस्तान के दो प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्य पंजाब और सिंध हैं. अमेरिकी कृषि विभाग के अनुसार पंजाब पाकिस्तान के गेहूं उत्पादन में 77 प्रतिशत, सिंध 15 प्रतिशत, खैबर पख्तूनख्वा 5 प्रतिशत, जबकि बलूचिस्तान 3.5 प्रतिशत का हिस्सा रखता है. खैबर पख्तूनख्वा अफगानिस्तान के साथ अत्यधिक असुरक्षित सीमा साझा करता है और पड़ोसी देश में आकर्षक कीमतों को प्राप्त करने के लिए बहुत सारे गेहूं की तस्करी की जाती है. सिंध को बीते साल की बाढ़ से भारी नुकसान हुआ, जिससे खरीफ फसल भी प्रभावित हुई. द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट में पाकिस्तान के योजना आयोग को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि बाढ़ ने कृषि और इसके उप-क्षेत्रों को 800 अरब रुपये या 3.725 अरब डॉलर का नुकसान पहुंचाया है. इस क्षति का 72 प्रतिशत सिंध द्वारा वहन किया गया था.
गेहूं के आटे की कमी के पीछे राजनति भी
केंद्र सरकार सहित कुछ विशेषज्ञों ने दावा किया है कि आटे की कमी इसलिए हुई क्योंकि पंजाब और सिंध ने मिलों को समय पर गेहूं जारी नहीं किया. दूसरों का कहना है कि मिल मालिकों ने स्टॉक जमा कर रखा था, जिससे कीमतें बढ़ गईं और सरकार ने उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की क्योंकि कई प्रभावशाली राजनेता ग्रामीण कृषि पृष्ठभूमि से आते हैं. स्थानीय लोगों का यह भी दावा है कि मिल मालिक भुगतान करने के इच्छुक लोगों को उच्च कीमतों पर आटा बेच रहे हैं. इस कारण खुदरा दुकानों और रियायती बिक्री केंद्रों के लिए पर्याप्त मात्रा में आटा उपलब्ध नहीं है. लाहौर के एक व्यापारी रब्बी बशीर के मुताबिक केंद्र की सत्ता में पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) है, जबकि पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा दोनों में खान साहब (इमरान खान) की सरकार है. मिलों को गेहूं देना प्रांतीय सरकार की जिम्मेदारी है. ऐसे में गेहूं की कमी के बहुत सारे दावे सिर्फ केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा करने के लिए किया गया प्रचार है. पाकिस्तान के पास पर्याप्त गेहूं का स्टॉक है, लेकिन इसकी खरीद, मिलों को वितरण और जमाखोरी की रोकथाम पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है.
लंबे समय से चली आ रही समस्याएं
इस साल पाकिस्तान सरकार ने घोषणा की है कि वह 2.6 मिलियन मीट्रिक टन गेहूं का आयात करेगी. इस कड़ी में पहले 13 लाख मीट्रिक टन की खेप आ चुकी है, जिससे आटे की कीमतों में गिरावट की उम्मीद जगी है. हालांकि गेहूं का यह आयात बिल गंभीर रूप से कम विदेशी भंडार से जूझ रहे देश पर एक बड़ा दबाव भी है. इस महीने की शुरुआत में रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक में विदेशी मुद्रा भंडार 5 अरब डॉलर से कम रह गया है, जो मुश्किल से तीन महीने के आयात के लिए पर्याप्त है. पंजाब के झांग जिले के एक किसान कल्ब-ए-अब्बास ने कहा, 'भारत में, पंजाब और हरियाणा को रोटी की टोकरी माना जाता है. अगर क्षेत्रफल के हिसाब से देखें तो हमारे पास कम से कम एक ब्रेड का टोकरा होना चाहिए था. ऐसे में हमें बिल्कुल भी आयात नहीं करना पड़ता.' अब्बास आगे कहते हैं, 'हालांकि पाकिस्तान में गेहूं की प्रति एकड़ उपज ज्यादा नहीं है. इसके अनेक कारण हैं. वर्षों से कृषि में कोई तकनीकी प्रगति नहीं हुई है, कोई उच्च उपज देने वाली गेहूं की प्रजातियों का विकास नहीं हुआ है. भूमि सुधार भी नहीं है. इस बीच नहरें सूख रही हैं, जल स्तर गिर रहा है. डीजल बहुत महंगा है, बिजली के बिल अधिक हैं, जबकि आपूर्ति बाधित है. किसान को कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता है. उर्वरक महंगा है, क्योंकि यूरिया के अलावा अन्य का आयात किया जाता है और हमारी मुद्रा का अत्यधिक अवमूल्यन हो चुका है.' पाकिस्तान की कृषि पर विश्व बैंक की 2022 की एक रिपोर्ट में कहा गया है, 'विकास भागीदारों के समर्थन से काफी सार्वजनिक खर्च के बावजूद कृषि विकास 1970-2000 के बीच प्रति वर्ष 4 फीसदी से अधिक के औसत से घटकर 3 फीसद से नीचे आ गया.'
अन्य खाद्य पदार्थ
गेहूं के विपरीत, चावल पाकिस्तान के प्रमुख निर्यातों में से एक है. इस साल आटे की किल्लत से चावल की मांग घरेलू स्तर पर बढ़ी है. लाहौर में सिद्दीकिया राइस मिल्स के निदेशक और पाकिस्तान के राइस एक्सपोर्ट एसोसिएशन के सदस्य मुहम्मद जुबैर लतीफ चौधरी नेबताया, 'पाकिस्तानी चावल दुनिया भर में निर्यात किया जाता है. सच तो यह है कि सुपर बासमती चावल का उल्लेख वारिस शाह की कृति हीर रांझा में भी मिलता है. इस साल बाढ़ ने चावल के कुल उत्पादन को प्रभावित किया, खासकर दक्षिणी पंजाब और पश्चिमी बलूचिस्तान में. ऊपर से गेहूं की कमी आई, जिसके कारण टूटे हुए बासमती चावल की मांग कई गुना बढ़ गई है, जिससे कीमतें बढ़ गई हैं.' डॉन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दालों की कीमत भी बढ़ रही है. 13 जनवरी के लेख में कहा गया है कि चना दाल की कीमत 1 जनवरी 2023 को 180 पाकिस्तानी रुपये से बढ़कर 1 दिसंबर 2022 को 170 रुपए प्रति किलोग्राम हो गई थी, जबकि मसूर दिसंबर में 200 पीकेआर से 225 पर आ गई. यह बैंकों द्वारा प्रासंगिक दस्तावेजों के अनुमोदन में देरी के कारण बंदरगाह पर आयातित खेप की गैर-मंजूरी के कारण हो रहा है.
HIGHLIGHTS
- पंजाब-सिंध में आटा 145 से 160 पाकिस्तानी रुपये प्रति किग्रा के आसपास बिक रहा
- इस्लामाबाद और रावलपिंडी में एक नान 30 पाकिस्तानी रुपये, तो एक रोटी 25 रुपये की
- गेहूं की कमी के दावे सिर्फ केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा करने के लिए किया गया प्रचार