पाकिस्तान को इस महीने के अंत तक एक नया सेना प्रमुख मिल जाएगा. मौजूदा जनरल क़मर जावेद बाजवा (Qamar Javed Bajwa) का उथल-पुथल भरा छह साल का कार्यकाल 29 नवंबर को खत्म हो रहा है. किसी भी अन्य देश के लिए सेना प्रमुख (Army Chief) की नियुक्ति एक आम प्रक्रिया होती है, लेकिन ये पाकिस्तान (Pakistan) है जहां शायद सेना प्रमुख की नियुक्ति आम चुनाव जितनी ही अहम है. यह सब अकारण नहीं है. पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के 75 सालों में सेना ने कम से कम 36 वर्षों तक इस देश पर प्रत्यक्ष रूप से शासन किया है. यह भी माना जाता है कि जब पाकिस्तान सेना सत्ता में नहीं होती है, तो पर्दे के पीछे से निर्वाचित सरकार के मुखिया को दिशा-निर्देश दे रही होती है. एक वजह यह भी है कि 1997 के बाद सिर्फ एक सेना प्रमुख जनरल राहिल शरीफ अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा कर चुपचाप चले गए. अन्यथा बाकी सेवा विस्तार पाकर पद पर बने रहे या सैन्य तख्तापलट कर सत्ता पर काबिज हो गए. इसीलिए पाकिस्तान सेना को 'डीप स्टेट' भी कहा जाता है, जिसके आशीर्वाद के बगैर कोई भी सरकार कार्यकाल पूरा करना तो दूर एक दिन नहीं चल सकती.
सेवा विस्तार के लिए संविधान संशोधन हुआ पाकिस्तान में
निवर्तमान सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा को भी नवंबर 2019 में सेना से विदाई लेनी थी, लेकिन उन्हें भी सेवा विस्तार दे दिया गया या उन्होंने उसे हासिल कर लिया. वास्तव में यह मामला सर्वोच्च न्यायालय की चौखट तक पहुंचा था. हालांकि इसने वास्तव में भविष्य के सेना प्रमुख का काम आसान कर दिया. खासकर यदि वह कार्यकाल पूरा होने के बाद भी पद पर बने रहना चाहता हों. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर संसद को सेना प्रमुख की सेवाओं में विस्तार को वैध बनाने के लिए संविधान संशोधन करना पड़ा. इस पृष्ठभूमि में नए सेना प्रमुख की नियुक्ति और भी महत्वपूर्ण हो गई है. सभी की निगाहें प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ पर हैं कि वह इस महत्वपूर्ण पद के लिए किसे चुनेंगे. इतना तय है कि जिसे भी चुना जाएगा उसको लेकर घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा और कयासबाजी का बाजार जरूर गर्म होगा.
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सैन्य प्रमुख चुने जाने की प्रक्रिया
नए सेना प्रमुख की नियुक्ति की प्रक्रिया पाकिस्तान के संविधान में सुस्पष्ट है. रक्षा मंत्रालय शीर्ष पद के लिए पात्र वरिष्ठ जनरलों के नामों की सूची प्रधान मंत्री कार्यालय को भेजता है. इस कड़ी में यह परंपरा बन चुकी है कि पांच सबसे वरिष्ठ जनरलों की सूची प्रधानमंत्री को भेजी जाती है. फिर प्रधानमंत्री उनमें से दो को चार स्टार पदोन्नति देकर ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी और चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ नियुक्त करता है. गौरतलब है कि सेना प्रमुख की सेवानिवृत्ति से एक दिन पहले ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी का पद भी खाली हो जाएगा. गौरतलब है कि ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी का पद एक अनौपचारिक पद है. ऐसे में इसमें किसी की कोई खास रुचि नहीं रहती. सभी का ध्यान सैन्य प्रमुख की नियुक्ति पर रहता है. किसी अपवाद को छोड़ दें तो यह माना जा सकता है कि नया सेना प्रमुख वरिष्ठता सूची में शीर्ष के पांच जनरलों में से ही होगा. पाकिस्तान का सेना प्रमुख पर्दे के पीछे से कठपुतली सरकार चलाने के लिए कुख्यात रहे हैं. रक्षा और विदेश नीतियां बनाने के क्रम में उनकी राय और सुझावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. ऐसे में नया सेना प्रमुख भारत, अफगानिस्तान में तालिबान के साथ संबंधों को लेकर नजरिया तय करेगा. साथ ही यह भी तय करेगा कि पाकिस्तान को चीन की तरफ अधिक झुकना है या अमेरिका की ओर.
पाकिस्तान सेना प्रमुख के शीर्ष दावेदार
लेफ्टिनेंट जनरल असीम मुनीर
रावलपिंडी मुख्यालय में तैनात लेफ्टिनेंट जनरल असीम मुनीर वरिष्ठता की सूची में शीर्ष पर हैं. उनका मामला बेहद दिलचस्प है कि सितंबर 2018 में थ्री स्टार पद पर पदोन्नत अन्य सभी जनरल सेवानिवृत्त हो चुके हैं. इस कड़ी में लेफ्टिनेंट जनरल असीम मुनीर के रिटायरमेंट की तारीख शीर्ष कमान परिवर्तन के महज दो दिन पहले यानी 27 नवंबर को है. असीम मुनीर का मामला दिलचस्प ऐसे हो गया कि उनके प्रमोशन बैज थ्री स्टार जनरल पर पदोन्नति के दो महीने बाद लगाए गए. पाकिस्तान में बैज लगाए जाने के हिसाब से सेवानिवृत्त की तारीख तय होती है. ऐसे में अगर इन्हें सेना प्रमुख बनाया जाता है, तो इसे 'कुदरत का निजाम' करार दिया जाएगा. ठीक वैसे ही जैसे पाकिस्तान क्रिकेट टीम टी20 वर्ल्डकप के नॉकआउट दौर पर 'चमत्कारिक' ढंग से पहुंची थी. जनरल असीम के पास सेना के विविध अनुभव हैं. उन्होंने गुजरांवाला में कोर कमांडर के रूप में काम किया है. वह अक्टूबर 2018 से जून 2019 तक खुफिया एजेंसी आईएसआई में डीजी भी रहे. खुफिया एजेंसी के प्रमुख के रूप में उनके छोटे कार्यकाल पर कई सवालिया निशान लगे. कहा जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान उनसे खुश नहीं थे क्योंकि वह उनकी पत्नी के कथित भ्रष्टाचार को उनके सामने लाए थे. ऐसा भी माना जाता है कि जनरल असीम के नियम-कायदों के अनुसार चलने से भी इमरान चिढ़ गए थे. हालांकि जनरल असीम ने डीजी मिलिट्री इंटेलिजेंस के रूप में भी काम किया है. उन्हें दावेदारों में सबसे आगे इसलिए माना जा रहा है क्योंकि सरकार ने संकेत दिया है कि इस बार नए प्रमुख की नियुक्ति में वरिष्ठता को ही प्राथमिकता दी जाएगी.
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लेफ्टिनेंट जनरल साहिर शमशाद मिर्जा
वरिष्ठता सूची में लेफ्टिनेंट जनरल साहिर शमशाद मिर्जा दूसरे नंबर पर आते हैं. ये भी रावलपिंडी में कोर कमांडर रहे हैं. उन्होंने अतीत के अधिकांश सेना प्रमुखों की तरह चीफ ऑफ जनरल स्टाफ जैसे महत्वपूर्ण पद पर भी काम किया है. चीफ ऑफ जनरल स्टाफ को वास्तविक सेना प्रमुख के रूप में जाना जाता है क्योंकि वह सेना में परिचालन और खुफिया निदेशालय दोनों का प्रमुख होता है. सरल शब्दों में कहें तो सेना की हर फाइल उसकी मेज से होकर गुजरती है. इससे पहले उन्होंने डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस के तौर पर भी काम किया था. जनरल साहिर की व्यक्तिगत पृष्ठभूमि भी काफी दिलचस्प है. उन्होंने कम उम्र में ही अपने माता-पिता को खो दिया था. वह कड़ी मेहनत और संघर्ष से इस मुकाम तक पहुंचे हैं. कहा जाता है कि उन्होंने माता-पिता के कॉलम में अपनी यूनिट का उल्लेख किया था. जनरल साहिर को जानने वाले कहते हैं कि पाकिस्तान सेना में उनका बहुत सम्मान और प्रतिष्ठा है. वह किसी भी विवाद में नहीं पड़े हैं और उनकी दावेदारी को लेकर बहस की ज्यादा गुंजाइश नहीं है. माना जा रहा है कि यदि उन्हें सेना प्रमुख नहीं बनाया जाता है, तो वह निश्चित तौर पर ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी बनाया जाएगा.
लेफ्टिनेंट जनरल अजहर अब्बास
लेफ्टिनेंट जनरल अजहर अब्बास वरिष्ठता सूची में तीसरे नंबर पर खड़े हैं. वह वर्तमान में सीजीएस हैं, जिसे सेना पदानुक्रम के भीतर एक महत्वपूर्ण पद माना जाता है. उन्होंने रावलपिंडी में कोर कमांडर बतौर भी काम किया है. सीजीएस के रूप में उन्होंने निवर्तमान सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा के साथ बेहद नजदीकी के साथ मिलकर काम किया है. वह भारत और उससे जुड़े मामलों के विशेषज्ञ होने बतौर भी पहचाने जाते हैं. वह अगले सेना प्रमुख बनाए जाने की सभी आहृताओं को पूरा करते हैं. इन्होंने रावलपिंडी में एक्स कोर का भी नेतृत्व किया है, जो कश्मीर केंद्रित और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण पद है. एक्स कोर के कमांडर रहने के दौरान ही भारत-पाकिस्तान 2003 के संघर्ष विराम को फिर से मानने के लिए राजी हुए थे.
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लेफ्टिनेंट जनरल नुमान महमूद
लेफ्टिनेंट जनरल नुमान महमूद वरिष्ठता सूची में चौथे स्थान पर आते हैं. वह फिलवक्त राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय के अध्यक्ष हैं. नवंबर 2021 में लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद के पदभार संभालने से पहले वह पेशावर में कोर कमांडर के रूप में कार्यरत थे. सेना प्रमुख पद के लिए जनरल नुमान की उम्मीदवारी की सबसे कम चर्चा है. शायद ही उन्हें इस शीर्ष पद पर पहुंचने का मौका दिया जाए. हालांकि 2013 में जनरल राहिल शरीफ़ और 2016 में जनरल क़मर जावेद बाजवा दोनों को ही खारिज कर दिया गया था, लेकिन वह सेना प्रमुख बनने में सफल रहे थे.
लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद
वरिष्ठता सूची में पांचवें सबसे चर्चित थ्री स्टार जनरल हैं लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद, जो वर्तमान में बहावलपुर के कोर कमांडर के पद पर तैनात हैं. पहले उन्होंने पेशावर में कोर कमांडर बतौर कार्य किया है. उनका पहले-पहल डीजी काउंटर-इंटेलिजेंस और फिर डीजी आईएसआई के रूप में आईएसआई में लंबा कार्यकाल रहा है. उन्हें जनरल बाजवा का भी काफी करीबी माना जाता है. संभवतः इसीलिए उन्हें सभी प्रमुख पद दिए गए थे. वह आईएसआई में डीजी-सी के रूप में पहली बार चर्चा में तब आए, जब उन्होंने नाम तहरीक-ए-लबैक को इस्लामाबाद में तीन हफ्ते से चल रहे लंबे धरने को खत्म करने पर राजी किया. वह एक बार फिर सुर्खियों में आए जब उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने उन पर जुलाई 2018 के चुनावों से पहले अपदस्थ प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को कोई राहत नहीं देने के लिए न्यायपालिका पर दबाव बनाने का आरोप लगाया. वह एक और विवाद के केंद्र में आए जब पता चला कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान चाहते थे कि वह आईएसआई के महानिदेशक के पद पर बने रहें. हालांकि इस मामले में अंतत: सेना प्रमुख की जीत हुई थी. उस वक्त ऐसी अफवाहें भी थीं कि इमरान जनरल फैज को नए सेना प्रमुख के रूप में नियुक्त करना चाहते हैं. हालांकि अपदस्थ प्रधान मंत्री इमरान खान ने हमेशा इन दावों का खंडन किया. ऐसे में इतने विवादों को देखते हुए जनरल फैज को सेना प्रमुख का पद मिलने की संभावना बेहद कम है.
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पाकिस्तान सेना प्रमुख की दौड़ के 'डार्क हॉर्स'
गुजरांवाला में वर्तमान कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल मुहम्मद आमिर भी सेना प्रमुख के लिए दौड़ में हैं. उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के सैन्य सचिव के रूप में कार्य किया है. कुछ लोगों का अनुमान है कि पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी चाहती है कि जनरल आमिर को सेना प्रमुख बनाया जाए. पाकिस्तान के सेना प्रमुख की नियुक्ति के क्रम में एक रोचक संयोग पर चर्चा करना दिलचस्प रहेगा. 2013 में जनरल राहिल वरिष्ठता सूची में तीसरे नंबर पर थे, तो 2016 में जनरल बाजवा चौथे नंबर पर थे. इस क्रम से सौभाग्यशाली नंबर पांच लगता है, लेकिन यह सेना प्रमुख का पद है न कि लकी ड्रॉ. ऐसे में पाकिस्तान में सेना प्रमुख बनने के लिए आपको भाग्य से कहीं अधिक की जरूरत पड़ती है.
HIGHLIGHTS
- जनरल बाजवा का उथल-पुथल भरा कार्यकाल 29 नवंबर को खत्म हो रहा
- लेफ्टिनेंट जनरल असीम मुनीर नए सेना प्रमुख के दावेदारों में हैं शीर्ष पर
- पाकिस्तान के 75 साल के इतिहास में 36 साल रहा है सैन्य शासन