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PFI पर पांच साल का प्रतिबंध, अब क्या होगी आगे की कानूनी प्रक्रिया

गृह मंत्रालय ने पीएफआई और उसके आठ अन्य आनुषांगिक संगठनों को पांच साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया है. UAPA के अनुच्छेद 3 के तहत अब मामला न्यायाधिकरण (ट्रिब्युनल) के पास जाएगा, जो तय करेगा कि उस पर गैरकानूनी संगठन का लगा आरोप सही हैं या नहीं.

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Nihar Saxena
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यूएपीए न्यायाधिकरण तय करेगा पीएफआई पर प्रतिबंध सही या नहीं!( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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गृह मंत्रालय ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) और उसके आठ अन्य संगठनों को गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (UAPA) यानी देश की सुरक्षा के लिहाज से गंभीर खतरा बताते हुए पांच साल के लिए प्रतिबंधित (Ban) कर दिया है. यूएपीए  के अनुच्छेद 3 के तहत अब मामला न्यायाधिकरण के पास जाएगा. न्यायाधिकरण यह तय करेगा कि क्या पीएफआई के खिलाफ पर्याप्त कारण मौजूद हैं, जो उसे गैरकानूनी संगठन करार देकर प्रतिबंधित किया जा सके.  यूएपीए के कानूनी प्रावधानों से परिचित विशेषज्ञों की मानें तो अनुच्छेद 4 के तहत केंद्र सरकार को गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम अधिसूचना को न्यायाधिकरण के समक्ष 30 दिन के भीतर प्रस्तुत करनी होगी. न्यायाधिकरण के समक्ष पेश करते वक्त राष्ट्रीय जांच एजेंसी, प्रवर्तन निदेशालय और अन्य राज्यों की पुलिस द्वारा पीएफआई और उसके कार्यकर्ताओं पर दायर किए गए मुकदमों की विस्तृत जानकारी भी संलग्न रहेगी. 

गृह मंत्रालय न्यायाधिकरण को उपलब्ध कराएगा आरोप और उसके साक्ष्य
प्रतिबंध की अधिसूचना के बाद अब गृह मंत्रालय राष्ट्रीय जांच एजेंसी, प्रवर्तन निदेशालय और अन्य राज्यों की पुलिस द्वारा पीएफआई की संलग्नता वाले मामलों और उसके समर्थन में जुटाए गए सबूतों का पूरा ब्योरा तैयार करेगा. फिर यह पूरा डोजियर न्यायाधिकरण में रखा जाएगा ताकि यूएपीए के अनुच्छेद 4 के तहत न्यायाधिकरण आगे की प्रक्रिया अपना सके. इसके साथ ही गृह मंत्रालय पीएफआई पर एक विस्तृत नोट यानी जानकारी भी देगा कि संगठन किस तरह भारत विरोधी गतिविधियों में संलिप्त रहते हुए देश में असंतोष फैलाकर परस्पर सौहार्द्र को बिगाड़ रहा है. गृह मंत्रालय से यह भी अपेक्षा की जाती है कि वह पीएफआई  के अंतरराष्ट्रीय गठजोड़, अवैध क्रियाकलाप औऱ देश की कानून व्यवस्था के उल्लंघन से जुड़ी घटनाओं का ब्योरा भी न्यायाधिकरण को उपलब्ध कराए. 

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न्यायाधिकरण जारी करेगा पीएफआई को कारण बताओ नोटिस
फिर जब यह सारी जानकारी न्यायाधिकरण को मिल जाएगी, तो इसके आधार पर वह पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया को कारण बताओ नोटिस जारी करेगा. कारण बताओ नोटिस में पीएफआई से लिखित जवाब मांगा जाएगा कि उस पर क्यों प्रतिबंध नहीं लगाया जाए! इसके बाद पीएफआई की तरफ से विस्तृत लिखित जवाब न्यायाधिकरण में पेश किया जाएगा. पीएफए का जवाब आ जाने के बाद न्यायाधिकरण दोनों पक्षों से पूछताछ करेगा. इसके आधार पर वह तय करेगा कि पीएफआई को गैरकानूनी संगठन घोषित करने के लिए पेश किए सबूत पर्याप्त हैं या नहीं. यानी पीएफआई की लीगल टीम को अपना बचाव करने का अवसर दिया जाएगा. इसके बाद पीएफआई के वकील न्यायाधिकरण से गृह मंत्रालय द्वारा पेश किए गए ब्योरे की मांग कर सकते हैं. न्यायाधिकरण की ओर से यह जानकारी मिलने के बाद पीएफआई की लीगल टीम उन्हें क्रॉस एग्जामिन करेगी.

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न्यायाधिकरण का फैसला ही तय करेगा प्रतिबंध लागू रहे या जाए
हालांकि सरकार पीएफआई तक उसका ब्योरा नहीं पहुंचे इसके लिए न्यायाधिकरण से गवाहों की पहचान छिपाए रखने का अनुरोध कर सकती है. इसके साथ ही वह पहले ही अपनी ओर से उपलब्ध कराई गई जानकारियों में कुछ संवेदनशील दस्तावेज सील कवर में पेश कर सकती है. सरकार का मकसद सिर्फ यही होगा कि उसके गवाह सुरक्षित रहें और संवेदनशील जानकारियां बतौर सबूत अकाट्य रहें. इस पूरी प्रक्रिया में कम से कम छह महीने लग जाएंगे. न्यायाधिकरण इस समय में दोनों पक्षों से पूछताछ कर चुका होगा. इसके आधार पर वह गृह मंत्रालय की पीएफआई की गैरकानूनी संगठन घोषित करने से जुड़ी अधिसूचना को सही ठहराएगा या फिर उसे खारिज कर देगा. 

HIGHLIGHTS

  • अब गृह मंत्रालय अधिसूचना से जुड़ी पूरी जानकारी यूएपीए न्यायाधिकरण में पेश करेगा
  • फिर न्यायाधिकरण पीएफआई को कारण बताओ नोटिस जारी कर मांगेगा लिखित जवाब
  • इसके आधार पर दोनों पक्षों से होंगे तर्क-वितर्क. फिर तय होगा प्रतिबंध सही है या नहीं
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