PROBA 3 Mission: अतंरिक्ष में अभी बहुत कुछ खोजना बाकी है. अब वैज्ञानिक असंभव को संभव करने जा रहे हैं. वे सूरज के कई रहस्य से पर्दा उठाएंगे. यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ESA) ने प्रोबा-3 मिशन बनाया है, जिसे भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो पीएसएलवी के जरिए 4 दिसंबर को श्रीहरीकोटा से लॉन्च करने जा रहा है. ये अबतक लॉन्च किए गए स्पेस मिशनों से बेहद अलग है, क्योंकि इसमें एक साथ दो सैटेलाइट (जुडवां सैटेलाइट) लॉन्च किए गए जाएंगे. ये सैटेलाइट एक-दूसरे के तालमेल से काम करेंगे. आइए जानते हैं कि प्रोबा-3 मिशन क्या है और इससे क्या हासिल होगा.
क्या है प्रोबा-3 मिशन?
प्रोबा-3 मिशन कई देशों के वैज्ञानिकों की एक साथ मिलकर की कड़ी मेहनत का नतीजा है. प्रोबा (PROBA) का मतलब प्रोजेक्ट फॉर ऑनबोर्ड ऑटोनॉमी है. यह एक लैटिन वर्ड है, जिसका अर्थ ‘आओ कोशिश करें’ है. इस मिशन में एक नहीं बल्कि दो उपग्रह लॉन्च किए जाएंगे. ये दुनिया पहला Precision Formation Flying mission है यानी इसमें सैटेलाइट एक खास स्थिति में उड़ान भरेंगे. इस मिशन में स्पेन, पोलैंड, बेल्जियम, इटली, और स्वीट्जरलैंड के वैज्ञानिक शामिल है. प्रोबा-3 मिशन अगले दो सालों तक संचालित होगा. बता दें कि इससे पहले इसरो प्रोबा-1 और प्रोबा-2 की लॉन्चिंग में बड़ी भूमिका निभा चुका है.
📽️Follow the double-satellite Proba-3's mission to view the Sun's corona by making artificial eclipses in orbit - an @ESA mission being launched by @ISRO from India https://t.co/vG3mzpdY32 pic.twitter.com/yPmKn7g7IB
— ESA Technology (@ESA_Tech) November 19, 2024
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प्रोबा-3 मिशन का मकसद
सूर्य के वायुमंडल की बाहरी परत यानी कोरोना का अध्ययन करना है. कोरोना के बारे में कहा जाता है कि ये सूर्य की सतह की तुलना में कई गुना अधिक गर्म है. इससे निकलने वाली सौर हवाएं उपग्रहों और पृथ्वी को प्रभावित करती है. हालांकि, इंसानों को ये तभी दिखाई देती है, जब पूर्ण सूर्यग्रहण होता है.
The Proba-3 team are in place at @ISRO's Satish Dhawan Space Centre (SHAR) in India, along with their two eclipse-making spacecraft. You can follow their launch preparations in our mission blog: https://t.co/SNx00lov4i pic.twitter.com/MRVCQvDaWr
— ESA Technology (@ESA_Tech) November 11, 2024
कैसे काम करेंगे सैटेलाइट
प्रोबा-3 मिशन में लॉन्च सैटेलाइट आर्टिफिशियल सूर्यग्रहण बनाएंगे ताकि सूर्य के कोरोना का अध्ययन किया जा सके. इन जुड़वां सैटेलाइट में से एक पर कोरोनाग्राफ होगा जबकि दूसरे पर ऑल्टर होगा. इनमें एक सैटेलाइट सूर्य को छिपाएगा जबकि दूसरा सैटेलाइट सूर्य के कोरोना का निरीक्षण करेगा. ऐसा साल में 50 बार किया जाएगा और हर राउंड की अवधि 6 घंटे की होगी. इस तरह सूरज के उस हिस्से यानी कोरोना की स्टडी कर पाएंगे जो आसानी से नहीं दिखाता है और उसके बारे में ज्यादा कुछ पता भी नहीं है.
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