गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 (Gujarat Election 2022) में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने लगभग एकतरफा ऐतिहासिक जीत हासिल की, तो कांग्रेस (Congress) को ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा. परंपरा के अनुरूप शर्मनाक हार के बाद गुजरात कांग्रेस प्रभारी और अध्यक्ष ने आलाकमान को इस्तीफा सौंप दिया. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकाजुर्न खड़गे समेत अन्य ने हार के कारणों की समीक्षा करने का आश्वासन दोहराया. इस बीच दबे-छिपे सुर में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) समेत कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की गुजरात (Gujarat) के चुनाव प्रचार में नामौजूदगी पर सवाल उठने लगे. राहुल गांधी गुजरात में चुनाव प्रचार के बजाय पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) कर रहे थे. राहुल सिर्फ एक दिन दो रैलियों को संबोधित करने पहुंचे थे. इस विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक हार के बाद तमाम उम्मीदवार और राज्य कांग्रेस के नेता मान रहे हैं कि अगर भारत जोड़ो यात्रा गुजरात खासकर कांग्रेस के प्रभाव वाले सौराष्ट्र सरीखे इलाकों से भी निकलती, तो परिणाम कुछ अलग हो सकता था. इस यात्रा में साथ चल रहे लोगों के हुजूम से परंपरागत कांग्रेस वोटर तन-मन से जुड़ता और नतीजतन परिणामों में उलटफेर सामने आते.
फिर सामने आया कि दो कांग्रेस हैं देश में
गुजरात में शर्मनाक चुनावी हार ने वास्तव में फिर से दो कांग्रेस का वजूद सामने लाने का काम किया है. एक वह है जो जमीनी राजनीति से कट चुनावी परिणामों से बेरपरवाह हो भारत जोड़ो यात्रा के साथ चल रही है. दूसरी कांग्रेस वह है जो दिल्ली के एमसीडी चुनाव के बाद गुजरात चुनाव में ऐतिहासिक हार के बाद इस सोच-विचार में पड़ गई है कि अब आगे क्या होगा. गुजरात के 2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 77 सीटों पर जीत हासिल की थी. अपने जुझारूपन और आक्रामक प्रचार के बलबूते राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस वास्तव में बीजेपी को पहली बार गुजरात में दहाई के अंकों तक रोकने में सफल रही थी. 2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को पहली बार 99 सीटों से संतोष करना पड़ा था. कांग्रेस ने सौराष्ट्र के आदिवासी और ग्रामीण इलाकों में अपना आधार मजबूत किया था. यह अलग बात है कि इस बढ़त को बरकरार न रखते हुए कांग्रेस के मौन चुनाव प्रचार से बीजेपी इस बार अपना ही पिछला रिकॉर्ड तोड़ने में सफल रही है. कांग्रेस गुजरात में औंधे मुंह गिरी पड़ी है. इसके कारणों पर किसी को कोई आश्चचर्य नहीं होगा.
गुजरात में चुनाव प्रचार से उदासीन रहा कांग्रेस आलाकमान
कांग्रेस आलाकमान गुजरात में शुरुआत से ही प्रचार अभियान से अलग-थलग और उदासीन दिखा. इस सच्चाई को जानते हुए भी कि कांग्रेस की हर चुनाव में खोती जमीन पर अपना जनाधार मजबूत कर रही आम आदमी पार्टी देश की सबसे पुरानी पार्टी के पारंपरिक वोट बैंक पर ध्यान केंद्रित कर रही है. अधिकांश कांग्रेस उम्मीदवारों ने दबे-छिपे सुर में फंड से लेकर मार्गदर्शन की कमी का रोना रोया. वे केंद्रीय नेतृत्व के नाममात्र के समर्थन पर वास्तव में अपने दम पर पूरा चुनाव लड़ रहे थे और चुनाव प्रचार को अंजाम दे रहे थे. मिसाल के तौर पर इंद्रनील राज्यगुरु, जो राजकोट में मजबूत कद-काठी के नेता हैं. वह उदासीनता से आजिज आकर आप में शामिल होने के लिए कांग्रेस छोड़ कर गए. हालांकि फिर वापस आ गए. चुनावों से ठीक पहले उन्होंने कार्यालय में एक शानदार बैठक की और सोशल मीडिया पर आक्रामक दिखे, लेकिन वास्तव में वह अपने दम पर प्रचार अभियान चला रहे थे. उनकी बेटी उनका चुनाव प्रचार देख रही थी. उन्हें केंद्रीय नेतृत्व की एकमात्र मदद तब मिली जब राहुल गांधी राजकोट में एक रैली के लिए भारत जोड़ो यात्रा छोड़कर आए.
केंद्रीय नेता भी कांग्रेस भवन में पड़े रहे, नहीं गए प्रचार करने
ऐसा भी नहीं है कि कांग्रेस आलाकमान ने अपने स्टार प्रचारकों को अहमदाबाद नहीं भेजा था. समस्या यह रही कि सूरत में पवन खेड़ा जैसे कुछ नेताओं को छोड़कर अधिकांश अहमदाबाद के कांग्रेस भवन में पड़े रहे. मुख्यालय में जुटे कांग्रेस कार्यकर्ताओं से इन केंद्रीय नेताओं की कोई बातचीत नहीं हुई. छिटपुट इनपुट के साथ कांग्रेस का सोशल मीडिया अभियान भी बेहद सुस्त था. यहां तक कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे प्रचार के अंतिम समय पहुंचे. वह अपने भाषण से कुछ लोगों को आकर्षित करने में सफल भी रहे, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. उलटे वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना 'रावण' से कर सेल्फ गोल और कर बैठे. इसने मतदान में कांग्रेस की मुखालफत की रही सही कसर पूरी कर दी. खराब रणनीति का यह भी एक बेहतरीन उदाहरण रहेगा. खड़गे की प्रेस कांफ्रेस मध्य प्रदेश में राहुल गांधी की यात्रा के दौरान हने वाली प्रेस कांफ्रेंस से महज एक घंटे पहले आयोजित की गई थी.
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भारत जोड़ो यात्रा से गुजरात क्यों छूटा
इतना ही नहीं सवाल यह भी उठता है कि पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश से निकाली जा रही भारत जोड़ो यात्रा से गुजरात क्यों छूटा? कई उम्मीदवारों और राज्य के पार्टी कार्यकर्ताओं ने महसूस किया कि अगर राहुल गांधी की यात्रा कम से कम सौराष्ट्र जैसे कांग्रेस के गढ़ों से होकर गुजरती, तो जुटने वाली भीड़ और भाषणों से कांग्रेस उम्मीदवारों को चुनाव में मदद मिल सकती थी. गौरतलब है कि कांग्रेस के गढ़ों से ही पीएम मोदी ने अपना चुनाव अभियान शुरू किया था. दूसरे कांग्रेस आलाकमान ने स्थानीय नेताओं और रणनीतिकारों को तवज्जो न देकर बाहर से चेहरे प्रचार और रणनीति के लिए उतारे, जो चुनावों में कभी काम नहीं आते. बीजेपी भी केंद्रीय नेताओं को प्रचार के लिए लाती है, लेकिन यह राज्य के नेताओं की कीमत पर कभी नहीं होता है. कांग्रेस से वर्षों से जुड़े लोगों से शायद ही कभी पूछा जाता हो कि वे क्या चाहते हैं या सोचते हैं. गौरतलब है कि यही बात असम के सीएम हिमंत बिस्व सरमा ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन पकड़ते वक्त की थी. मध्य प्रदेश के ज्योतिरादित्य सिंधिया समेत कांग्रेस के युवा नेताओं की लंबी फेहरिस्त है, जो उदासीनता से कांग्रेस से विमुख हुए.
भारत जोड़ो यात्रा पर उठ रहे सवाल
एक बड़ा सवाल यह उठता है, जो कांग्रेस का असंतुष्ट खेमा बार-बार उठाता रहा है कि क्या कांग्रेस वास्तव में सुधार लाना चाहती है. कपिल सिब्बल ने इंडियन एक्सप्रेस अखबार से लोकसभा चुनाव 2019 में करारी हार के बाद कहा था कि आम लोगों ने अब कांग्रेस को विकल्प मानना ही बंद कर दिया है. भले ही हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन रही है, लेकिन गुजरात की ऐतिहासिक शर्मनाक हार नए पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को आने वाले समय में सालती रहेगी. खासकर इस आलोक में कि अगले ही साल राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने हैं. राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस खेमों में बंटी हुई है, तो छत्तीसगढ़ में गठबंधन की बैसाखी पर सरकार चला रही है. कर्नाटक में बीजेपी सत्तारूढ़ है. जाहिर है मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए आगे की राह और कांटों भरी होगी. हालांकि यह सवाल फिर रह जाता है कि राहुल गांधी जैसा नेता चुनाव प्रचार से दूर रह गुजरात चुनाव से उदासीनता बरत भारत जोड़ो यात्रा निकालने को कैसे तर्कसंगत ठहरा सकता है. खासकर जब अगले साल कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव 2024 लोकसभा चुनाव की तस्वीर साफ करने वाले हों.
HIGHLIGHTS
- गुजरात चुनाव प्रचार से अलग-थलग और उदासीन रहे बड़े कांग्रेसी नेता
- गुजरात चुनाव के मद्देनजर भारत जोड़ो यात्रा से राज्य कैसे और क्यों छूटा
- केंद्रीय नेतृत्व की नाममात्र मदद से परे उम्मीदवारों ने अकेले लड़ा चुनाव