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Rajasthan Election: यूं आसान नहीं है पायलट को पार्टी से अलविदा कह देना, कांग्रेस भी कंफ्यूज

सचिन पायलट और मुख्यमंत्री गहलोत की अदावत किसी से छिपी नहीं है. दोनों के बीच तल्ख रिश्ते कई बार सामने आ चुके हैं. वह चाहे 11 जून, 2020 की बात हो या उसके बाद लगातार दोनों के बीच चले आ रहे सियासी घमासान की.

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Prashant Jha
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rajasthan election( Photo Credit : सोशल मीडिया)

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Rajasthan Congress Politics: राजस्थान में इसी साल विधानसभा चुनाव हैं. कांग्रेस सरकार पर अबतक दो बार आए सियासी संकट और पार्टी के भीतर चल रही कलह ने सरकार और पार्टी संगठन में आपसी खींचतान की सारी पोल खोलकर रख दी है. पार्टी इस चुनाव में फिर से सत्ता में वापसी करने की तैयारी में जुटी है, लेकिन गहलोत और पायलट के बीच जारी खींचतान थमने का नाम नहीं ले रही है. चुनाव से पहले दोनों नेता आर-पार के मूड में नजर आ रहे हैं. वैसे तो पायलट कई बार मुख्यमंत्री गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं, लेकिन इस बार पायलट ने गहलोत के खिलाफ खुलकर बगावत शुरू कर दी है. जिसे हर कोई देख और समझ रहा है. हाल ही में सचिन पायलट ने पदयात्रा निकालकर यह संदेश देने की कोशिश की कि अगर उन्हें पार्टी आलाकमान की ओर से पॉजिटिव रिस्पॉन्स नहीं मिलता तो वह अलग रास्ते पर चलने से भी नहीं गुरेज नहीं करेंगे.

सियासी गलियारों में अफवाहें चल रही थी कि सचिन पायलट कांग्रेस छोड़कर नई पार्टी का ऐलान कर सकते हैं. दिल्ली से लेकर जयपुर तक चर्चा थी कि सचिन अपने दिवंगत पिता राजेश पायलट की पुण्यतिथि (11 जून) पर ही नई पार्टी का ऐलान करने वाले थे, लेकिन 11 जून बीत गई और पायलट ने किसी नई पार्टी की घोषणा नहीं की. लेकिन इतना जरूर है कि पायलट मुख्यमंत्री गहलोत की अदावत किसी से छिपी नहीं है. दोनों के बीच तल्ख रिश्ते कई बार सामने आ चुके हैं. वह चाहे 11 जून, 2020 की बात हो या उसके बाद लगातार पायलट और गहलोत के बीच चले आ रहे सियासी घमासान की.

अपनी ही सरकार के खिलाफ आवाज उठा चुके हैं पायलट

हालांकि, नई पार्टी के ऐलान को लेकर  पायलट ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन सचिन पायलट भ्रष्टाचार और पेपर लीक मामले पर अपने ही सरकार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं. 11 अप्रैल  2023 को सचिन पायलट ने अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन किया और 11 मई को पदयात्रा भी निकाली. इससे पहले 2020 में पायलट ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से नाराज होकर और अपने विधायकों को इकट्ठा कर राज्य सरकार के अल्पमत में होने का दावा किया था.  वहीं, उनके समर्थकों का कहना है कि सचिन पायलट को अगर इस बार नेतृत्व करने का मौका नहीं दिया गया तो आने वाले समय में कांग्रेस राजस्थान में रिपीट नहीं होगी. 

..तो इसलिए पार्टी नहीं बनाना चाहते हैं पायलट

वरिष्ठ पत्राकर ओम सैनी का कहना है कि सचिन पायलट मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ काफी उलझ चुके हैं. वह असमंजस की स्थिति में हैं. इस समय उनके पास बेहद मुश्किल राजनीतिक हालात हैं.  नई पार्टी बनाना उनके लिए ज्यादा बड़ा जोखिम है. 2018 में ज्यादातर विधायक कांग्रेस के कैडर वोट और पायलट के समर्थक वोटों के दम पर जीत कर आए थे, ऐसे में विधायक जानते हैं कि अगर पायलट कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनाते हैं तो कांग्रेस के कैडर वोट के बिना उनका जीतना मुश्किल होगा. क्योंकि पिछले 20-25 सालों में राजस्थान की राजनीति में जो भी मुख्य पार्टी (कांग्रेस और बीजेपी) से निकले हैं वह सफल नहीं हुए हैं. आप किरोड़ीलाल मीणा को देख लें, या फिर घनश्याम तिवाड़ी को देख सकते हैं. अपनी पार्टी से नाराज होकर इन लोगों ने भी दूसरी पार्टी का दामन थामा था, लेकिन कुछ दिन बाद ही इन्हें समझ में आ गई कि यहां पर उनकी दाल गलने वाली नहीं है. वह फिर से भाजपा में शामिल हो गए. आज किरोड़ी लाल मीणा और घनश्याम तिवाड़ी दोनों भाजपा से राज्यसभा सांसद हैं. ऐसे में सचिन पायलट के सामने ये सब उदाहरण हैं. वरिष्ठ पत्रकार सैनी यह भी बता रहे हैं कि यह सच है कि हनुमान बेनिवाल ने दूसरी पार्टी बनाई, लेकिन आप देखिए कि वह कितने लंबे समय से कांग्रेस और बीजेपी को खुली चुनौती दे रहे हैं, लेकिन वह कभी किंगमेकर की भूमिका में नहीं रहे हैं. यानी बेनिवाल आजतक सत्ता का स्वाद नहीं चख पाए. सचिन पायलट ऐसी कोई गलती नहीं करेंगे. जिससे उन्हें कांग्रेस में वापसी करने में परेशानी हों.  

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 निर्णायक भूमिका में है गुर्जर समुदाय

राजस्थान की राजनीति में गुर्जर समुदाय की निर्णायक भूमिका के सवाल पर ओम सैनी कहते हैं कि गुर्जर कम्युनिटी को पलड़ा राजस्थान में हमेशा से भारी रहा है. इस समुदाय को नाराज करना कांग्रेस पार्टी के लिए जोखिम भरा कदम होगा. क्योंकि 30 सीटों पर इस समुदाय का दबदबा है. यह सच है कि सचिन पायलट नौजवानों में लोकप्रिय हैं. इसके पीछे उनके दिवंगत पिता राजेश पायलट की भूमिका अहम है. सचिन अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं, लेकिन गुर्जर समाज का अगुवा अब सचिन पायलट अकेले नहीं है. बल्कि कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला की लिगैसी को आगे बढ़ाने के लिए अब उनके बेटे विजय बैंसला भी मैदान में आ चुके हैं. साथ ही गुर्जर समुदाय से आने वाले नेताओं की भी राजस्थान में अपनी पहचान है. ऐसे में सचिन पायलट के पार्टी से निकलने से कांग्रेस को भारी नुकसान होगा यह कहना सही नहीं है. पार्टी में आज भी गहलोत का कद मजबूत है. 2018 में गहलोत ने जिन्हें टिकट दिलाई थी वही जीत पाए हैं. ज्यादातर लोग गहलोत के पक्ष में थे. 

2018 में सचिन पायलट के नेतृत्व में कांग्रेस ने राजस्थान में मजबूती से उभरी थी. पार्टी ने अधिकांश सीटों पर जीत दर्ज की थीं. ऐसे में सचिन को दरकिनार करना पार्टी आलाकमान के लिए भी टेढ़ी खीर साबित हो सकती है. ऐसे में कांग्रेस आलाकमान के लिए जितना जरूरी गहलोत हैं. उतना ही सचिन पायलट हैं. विधानसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के जरिए राजस्थान की जमीन हकीकत भी टटोल चुके हैं. वह सियासी नब्ज को भी अच्छी तरह से भांप चुके हैं. पायलट के गढ़ दौसा या पूर्वी उत्तरी राजस्थान में सचिन पायलट को लेकर लोगों में एक तरह की दीवानगी है. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा राजस्थान में 500 किलोमीटर तय की थी. इस दौरान दोनों नेताओं के बीच बनी तल्खी किसी से बची नहीं थी. उस दौरान भी दोनों एक दूसरे के खिलाफ चल रहे थे, लेकिन उस दौरान एक तस्वीर वायरल हुई थी, जिसमें राहुल गांधी ने दोनों नेताओं के साथ खडे़ हैं और यह कह रहे हैं कि ये दोनों हमारे एस्टेस हैं. हालांकि, राहुल गांधी भले ही पायलट और गहलोत को अपना एस्सेट्स मानते हैं, लेकिन पायलट चुनाव से पहले ही तय करवाना चाह रहे हैं कि जबतक सीएम पद का चेहरा उन्हें घोषित नहीं किया जाता तबतक वह मानने वाले नहीं हैं. 

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गुर्जर समाज भी पायलट को सीएम पद के लिए मांग कर चुका है. वहीं,  कांग्रेस चुनाव से पहले किसी तरह का जोखिम नहीं उठाना चाहती है. कांग्रेस का कहना है कि चुनाव के लिए सभी नेता एक साथ काम करें.पार्टी की मजबूती के लिए आलाकमान ने चेतावनी भी जारी की है. हाल ही में राजस्थान प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने साफ कर दिया है कि सभी नेताओं को आपसी मनमूटाव खत्म कर चुनाव पर फोकस करना जरूरी है. बयानबाजी करने वाले नेताओं पर कार्रवाई की जाएगी. कांग्रेस में किसी तरह की फूट नहीं है. हालांकि, दिल्ली में आलाकमान से दोनों नेताओं के बीच मुलाकात के बाद पायलट और गहलोत में सुलह की कवायद शुरू हो गई है, लेकिन आलाकमान भी यह साफ नहीं कर पा रहा है कि 2023 का विधानसभा चुनाव किसके नेतृत्व में लड़ा जाएगा. सचिन पायलट या अशोक गहलोत?

पायलट गद्दार और निक्कमा है- गहलोत

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच अब बंद कमरे से बाहर निकल चुका है. अशोक गहलोत कई मंचों से पायलट को निक्कमा, गद्दार तक कह चुके हैं. 2018 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद ठीक दो साल बाद आए सियासी संकट को लेकर मुख्यमंत्री गहलोत ने पायलट पर पार्टी के साथ गद्दारी करने का आरोप भी लगा चुके हैं. पूर्वी राजस्थान में एक सभा को संबोधित करते हुए गहलोत ने कहा था कि पायलट की वजह से 34 दिन होटलों में रहना पड़ा था. पार्टी की किरकिरी हुई थी. पार्टी को बचाने के लिए हमने पूरी जान लगा दी थी.

पायलट का पलटवार

सीएम अशोक गहलोत के बयान पर पायलट ने पलटवार किया. सचिन पायलट ने कहा कि गहलोत हमें निक्कमा, गद्दार कहते हैं, क्या एक अनुभवी और वरिष्ठ नेता के द्वारा इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करना ठीक है. पायलट ने कहा कि जो तीन-तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं. केंद्र भी काम कर चुके हैं. ऐसे में उन्हें इस तरह की बयानबाजी से बचाना चाहिए. हाल ही में पायलट ने कहा था कि हर गलती सजा मांगती है. 

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