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यूरोप के सबसे बड़े न्यूक्लियर प्लांट पर रूसी बमबारी, खतरा बहुत बड़ा

यूक्रेन का जेपोरिजिया न्यूक्लियर प्लांट चेर्नोबिल की तुलना में अधिक सुरक्षित है. रूस के चेर्नोबिल प्लांट में हुआ हादसा दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु हादसा करार दिया जाता है. रूसी सेना के न्यूक्लियर प्लांट के आसपास बमबारी खतरे को बढ़ा रही है.

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Nihar Saxena
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Zaporizhzhia

रूस लगातार जेपोरिजिया न्यूक्लियर प्लांट पर कर रहा बमबाजी.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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यूक्रेन से युद्ध के दौरान रूस नियंत्रित जेपोरिजिया न्यूक्लियर प्लांट पर बमबारी में हाल ही में तेजी आई है, जिसने वैश्विक स्तर पर चिंताओं को बढ़ा दिया है. हालांकि इस विशालकाय न्यूक्लियर प्लांट की जिम्मेदारी संभाल रहे यूक्रेन (Ukraine) के कर्मचारी सख्त नियंत्रण के साथ दबाव वाली स्थितियों में काम कर रहे हैं. यूक्रेन का यह प्लांट एनरहोदार शहर में स्थित है. हालांकि इस बात की आशंका कम ही है कि रूस (Russia) या यूक्रेन इसे तहस-नहस करने का जोखिम उठाने को तैयार हैं, जिसकी वजह से रेडियोधर्मी (Radioactive) पदार्थों का रिसाव बड़ी आबादी को संकट में ढकेल सकता है. यह अलग बात है कि जेपोरिजिया प्लांट चेर्नोबिल की तरह नहीं है. चेर्नोबिल वास्तव में पुराने रिएक्टर की तरह था, जिसकी डिजाइन पर तमाम प्रश्नचिन्ह लगाए जा सकते हैं. जेपोरिजिया (Zaporizhzhia) की तरह ही चेर्नोबिल (Chernobyl) को ठंडा रखने के लिए पानी का इस्तेमाल किया जाता था. हालांकि चेर्नोबिल में बड़ी मात्रा में ग्रेफाइट मौजूद था, जिसकी मदद से न्यूट्रॉन मॉडरेशन की प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता था. किसी रिएक्टर को चलाने के लिए यह प्रक्रिया बेहद जरूरी है. 

तकनीकी तौर पर कहें तो चेर्नोबिल प्लांट सीमा से अधिक गर्म हो गया, तो उसे ठंडा करने वाली पानी भी खौलने लगा. पानी के खौल जाने से वह प्लांट को ठंडा रखने में नाकाम रहा. फिर भी रिएक्टर को ऊर्जा पहुंचाने के लिए न्यूट्रॉन को मॉडरेट करने की ग्रेफाइट प्रक्रिया जारी रही, इससे तापमान का उच्च स्तर नियंत्रण से बाहर हो गया. यही नहीं, चेर्नोबिल का शटडाउन सिस्टम भी गलत डिजाइन का था, जिसने हादसे में अहम भूमिका निभाई. इसकी तुलना में वर्तमान के अन्य रिएक्टर की तर्ज पर जेपोरिजिया के रिएक्टर भी यदि सीमा से अधिक गर्म हो जाते हैं, तो उसे ठंडा रखने और मॉडरेशन की प्रक्रिया भी स्वतः कम होती जाएगी. इसके साथ ही रिएक्टर की पॉवर भी कम होगी. हाल के दौर में इस प्रक्रिया को रिएक्टर डिजाइन में हर हाल में अमल में लाया जाता है. 

चेर्नोबिल से सुरक्षित हैं जेपोरिजिया के रिएक्टर?
ईंधन का रिसाव होने से खतरनाक रेडियोधर्मी पदार्थ या सुरक्षा उपकरणों में जरा सी चूक से ऑपरेटिंग रिएक्टर भयंकर तबाही ला सकता है. ऐसी स्थिति में बड़ी मात्रा में खतरनाक परमाणु सामग्री हवा में फैल जाएगी, जो जमीन और जल आपूर्ति के विशाल क्षेत्रों को भी दूषित करेगी. हालांकि रिएक्टर बेहद शक्तिशाली केंटेनमेंट इमारत से घिरे होते हैं. इन्हें इस तरह डिजाइन किया जाता है कि ये अंदरूनी धमाकों और बाहर से पड़ने वाले किसी भी दबाव को आसानी से झेल सके. आधुनिक न्यूक्लियर प्लांट तो हवाई हमले को भी एकबारगी झेल सकते हैं. हालांकि यह बहस का विषय हो सकता है कि क्या वे लगातार और निशाना बनाकर की जा रही बमबाजी को भी झेल सकते हैं या नहीं. रिएक्टर की इमारत कई मीटर की कांक्रीट से बनी होती हैं, जिनके बीच मजबूती के लिए स्टील का ढांचा भी होता है. फिर भी घातक हथियार से किए गए हमले से उन्हें भी भेदा जा सकता है. यूं कहें कि रिएक्टर के बजाय बाहर इस्तेमाल में लाए गए ईंधन को ठंडा करने वाले पूल कहीं अधिक चिंता की बात है. इन पूल में पानी के भीतर बेहद उच्च रेडियोर्धमिता वाला नाभिकीय ईंधन स्टोर किया जाता है. इन पर किया गया कोई भी सीधा हमला वातावरण में घातक रेडियोधर्मी पदार्थ बड़े पैमाने पर फैला देने में सक्षम होगा. इसकी वजह यह है कि ईंधन हवाई हमले की दशा में असुरक्षित है.  

गौर करने वाली बात यह कि परमाणु पॉवर प्लांट को बंद करने के बावजूद पंप और पाइप जैसे गंभीर उपकरण होते हैं. जेपोरिजिया के आधा दर्जन में से तीन रिएक्टर फिलवक्त शटडाउन स्थिति में हैं. यह जानना भी जरूरी है कि रिएक्टर के भीतर का ईंधन और इस्तेमाल में लाया गया ईंधन शटडाउन के बावजूद कई सालों तक बेहद गर्म रहता है. जेपोरिजिया जैसे न्यूक्लियर प्लांट में जब तक ईंधन को लगातार ठंडा नहीं किया जाता, वह और ज्यादा गर्म हो सकता है. साथ ही वह विस्फोटक गैसें पैदा कर सकता है. पिघल सकता है या आग भी पकड़ सकता है. ऐसी किसी भी स्थिति से रेडियोधर्मी तत्व का फैलाव होगा. जेपोरिजिया जैसे परमाणु संयंत्रों में ईंधन की अतिरिक्त गर्मी को दूर करने के लिए लगातार ठंडे पानी के प्रवाह की जरूरत होती है. किसी पाइप, पूल या रिएक्टर के क्षतिग्रस्त होने या पंप के निष्क्रिय होने पर खतरनाक नतीजे सामने आने से पहले बहुत ही कम समय मिलेगा. हालांकि अभी तक दावा किया जा रहा है कि हमलों में बिजली की लाइनों, रेडियोधर्मिता पर निगाह रखने वाले उपकरणों और ट्रेनिंग फैसिलिटीज सरीखी गैर नाभिकीय इमारतों को ही निशाना बनाया गया है. इस आलोक में बिजली के तारों को निशाना बनाया जाना भी कम चिंता की बात नहीं है, क्योंकि पानी के पंप को ठंडा रखने के लिए बिजली के सतत प्रवाह की जरूरत पड़ती है. जब प्लांट चल रहा होता है तो वह खुद बिजली का उत्पादन करने में सक्षम होता है. इसके अलावा इसी काम के लिए डीजल जैनरेटर का बैकअप भी उपलब्ध रहता है. ऐसी स्थिति में बमबाजी में अगर बिजली की लाइनें क्षतिग्रस्त होती है, तो भी इसके घातक परिणाम सामने आ सकते हैं. 

रेडियोधर्मी सामग्री फैलने से जुड़े जोखिम 
यदि रिएक्टर से रेडियोधर्मी सामग्री का रिसाव होता है, तो अधिकारियों को खतरे का आकलन करने और उसके अनुरूप उचित प्रतिक्रिया देने के लिए जल्द से जल्द काम करना होगा. रेडियोधर्मिता का जोखिम कई कारकों पर निर्भर करेगा मसलन कितनी सामग्री का रिसाव हुआ और वह हवा और मौसम के प्रभाव से कितनी दूर फैली. विकिरण का स्तर संयंत्र के सबसे करीब होगा और जैसे-जैसे यह फैलता जाएगा वैसे-वैसे कम होता जाएगा. फिर भी इसकी चपेट में आने वालों को गंभीर रूप से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नकारात्मक असर का सामना करना पड़ेगा. जो लोग विकिरण के उच्च स्तर पर संपर्क में आएंगे, उन्हें विकिरण सिंड्रोम का सामना करना पड़ सकता है. कई मामलों में यह जानलेवा भी साबित हो सकता है. कम स्तर पर विकिरण के संपर्क में आने वालों को लंबे समय बाद कैंसर का खतरा बना रहेगा. बेहतर तो यही रहेगा कि रेडियोधर्मी तत्वों का रिसाव होते ही किसी इमारत में शरण ली जाए. सभी खिड़की-दरवाजे बंद कर लिए जाएं और आधिकारिक स्तर पर सावधानी बरतने के दिशा-निर्देशों का अक्षरशः पालन किया जाए. 

हालांकि हमले के समय प्लांट लो पावर मोड पर काम कर रहा था. ऐसे में किसी रिसाव का सीमित प्रभाव ही पड़ेगा. वैकल्पिक स्तर पर देखें यूक्रेन पर हमले के बाद कब्जे में लिए गए क्षेत्रों को वैधानिकता का जामा पहनाने के लिए रूस जेपोरिजिया प्लांट पर हमले को राजनैतिक स्तर पर सौदेबाजी का माध्यम बना रहा है या प्रोपेगंडा की तरह हमले का इस्तेमाल कर रहा हो. कई मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि रूस ने प्लांट पर अपनी सेना और उपकरण तैनात कर दिए हैं. इस तरह रूस जेपोरिजिया को अभेद किले और मिसाइल लांच साइट की तरह इस्तेमाल करेगा, जिस पर हमला करने का साहस यूक्रेन नहीं दिखाएगा. गौरतलब है कि जेनेवा कंवेशन में 1977 में किए गए संशोधन में नाभिकीय संयंत्रों के आसपास सैन्य आक्रमण वर्जित किया जा चुका है. इसके बावजूद जेपोरिजिया पर रूसी हमले पर वैश्विक बिरादरी की आपत्ति पर भी मॉस्कों के कानों पर जूं नहीं रेंगी है. इंटरनेशनल अटॉमिक एनर्जी एजेंसी को जेपोरिजिया को पहुंचे नुकसान और परमाणु पदार्थों की जांच के लिए रूस से मांगी गई स्वीकृति का अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है. संयुक्त राष्ट्र ने भी रूस से न्यूक्लियर साइट से सेना को हटाने को कहा है. इसके जवाब में रूस का कहना है कि ऐसे में परमाणु आतंकवाद की तरह जेपोरिजिया प्लांट के इस्तेमाल की आशंका बढ़ जाएगी. इस कड़ी में किसी तटस्थ तीसरे पक्ष को प्लांट की सुरक्षा का दायित्व सौंपना बेहतर विकल्प हो सकता है. हालांकि छद्म सेना उस पर आक्रमण कर सकती है, जैसा कि यूक्रेनी आतंकी समूह पर हमले का आरोप रूस लगाता आ रहा है. खैर, जो भी हो जेपोरिजिया प्लांट की सुरक्षा फिलवक्त बेहद जरूरी है, ताकि लोगों, पर्यावरण और अधोभूत संरचना की सुरक्षा की जा सके. 

HIGHLIGHTS

  • चेर्नोबिल की तुलना में जेपोरिजिया प्लांट कहीं अधिक सुरक्षित
  • फिर भी लगातार बमबाजी से प्लांट हो सकता है क्षतिग्रस्त
  • रेडियोधर्मी पदार्थों का रिसाव खड़ा कर सकते हैं गंभीर खतरा
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