यूक्रेन (Ukraine) पर हमले के बाद अमेरिका (America) समेत अन्य पश्चिमी देशों के रूस (Russia) पर प्रतिबंधों का असर भारत पर नहीं पड़ा. दूसरे शब्दों में कहें तो भारत ने अपने परंपरागत मित्र रूस के खिलाफ कोई कड़वी बात नहीं की, तो सामरिक-रणनीतिक साझेदार अमेरिका को भी साधे रखा. संभवतः यही वजह रही कि रूस से कच्चे तेल और ईंधन की खरीद पर जहां अमेरिका ने अन्य देशों पर प्रतिबंध (Sanctions) की तलवार लटकाई, भारत ने रूस से रियायती दरों पर कच्चा तेल हासिल किया. हालांकि चीन-पाकिस्तान से विद्यमान खतरे और तनाव के बीच भारत को रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine War) से एक नुकसान भी हुआ है. यह नुकसान है एके 47 श्रेणी के आधुनिक संस्करण एके 203 (AK-203) के भारत में उत्पादन शुरू करने में हो रही देरी के रूप में. इसके लिए अमेठी में राइफल फैक्ट्री स्थापित की गई थी, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण बीते साल जुलाई में एके-203 राइफल को लेकर रूस के साथ हुआ सौदा अमल में लाने में कई महीने की देरी हो रही है. इन सभी राइफल्स का उत्पादन अमेठी (Amethi) फैक्ट्री में होना था, लेकिन फरवरी में रूस में असॉल्ट राइफल बनाने वाली कंपनी के साथ रि-ट्रायल टल गए. नतीजतन एके-203 का उत्पादन भी पीछे चला गया. इस एके-203 राइफल के साथ भारतीय सेना (Indian Army) को चीन (China) और पाकिस्तान (pakistan) पर काफी बढ़त मिलेगी. हालांकि सौदे के पहले चरण के तहत रूस ने एके-203 की पहले खेप रेडी टू यूज स्थिति में इसी साल फरवरी में भारत को सौंप दी थी, जिसे एलओसी, एलएसी और जम्मू-कश्मीर में सीमा पर तैनात जवानों को सौंपा जा चुका है. इसका भी पिछले साल तत्काल जरूरत के लिए 70000 एके-203 राइफलों की खरीद पर समझौता हुआ था.
एके-203 हर मौसम में सदाबहार
गौरतलब है कि भारत-रूस के बीच पांच हजार करोड़ के समझौते के तहत यूपी के अमेठी में अगले दस वर्षों तक एके-203 असाल्ट राइफल का निर्माण होगा, जिसमें कुछ महीने की देरी हो रही है. भारत में इसके पौने सात लाख पीस बनाए जाने हैं, जिसकी पहली खेप 70 हजार राइफलों की होगी. एके-203 की सबसे बड़ी खासियत हर मौसम के लिहाज से इसका सदाबहार होना है. भारतीय जवान हिमालय में बेहद ठंडे मौसम में तैनात रहते हैं. सियाचिन में तो तापमान -45 डिग्री तक गिर जाता है. इस लिहाज से एके-203 -5 से लेकर -50 डिग्री सेल्सियस तक के बेहद ठंडे तापमान में भी बगैर किसी ग्लिच के चलती है. अभी तक इस तापमान में इसके धोखा देने की एक भी शिकायत सामने नहीं आई है. ऐसे में उम्मीद है कि जवानों के लिए यह खासी उपयोगी रहेगी. सिर्फ बेहद ठंडे तापमान में ही नहीं एके-203 पर न तो रेगिस्तान की धूल भरी आंधी का असर पड़ता है और ना ही समुद्र के खारे पानी का.
यह भी पढ़ेंः बुलेट प्रूफ जैकेट भी इसके आगे फेल, J&K में आतंकी दाग रहे स्टील बुलेट
इंसास राइफल की जगह लेंगी एके-203
गौरतलब है कि एके-203 राइफल तीन दशक पहले भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा इस्तेमाल में लाई जा रहीं इंसास राइफल की जगह लेंगी. इसे दुनिया की शीर्ष घातक राइफल में शुमार किया जाता है. वास्तव में एके-203 एक7.62 X 39 मिलीमीटर कैलिबर गन है. यह असॉल्ट राइफल्स 300 मीटर की प्रभावी रेंज के साथ, हल्के वजन, मजबूत और बेहतरीन टेक्नोलॉजी से लैस है. एके-203 को मैनुअली और ऑटोमैटिक दोनों तरह से चलाया जा सकता है. इसका वजन 3.80 किग्रा और लंबाई 38 इंच है. बट फोल्ड हो जाने के बाद इसकी लंबाई 27 इंच की हो जाती है. इसमें 7.62×39 की कार्टेज लगती है यानी इसकी गोली 7.62 एमएम की है. एक मिनट में यह कम से कम 800 गोलियां दागती है. इसके जरिये वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों का आसानी से सामना किया जा सकेगा. साथ ही काउंटर इंसर्जेंसी और काउंटर टेररिज्म ऑपरेशन में भारतीय सेना की क्षमता को बढ़ाएगी. यह चीन की QBZ-95 और पाकिस्तान की द हेकलर एंड नॉक जी-3 से कहीं मारक और खतरनाक है. भारतीय सेना के जवान जब इसे सीमा पर लेकर खड़े होंगे, तो दुश्मन एक बार सोचने पर मजबूर जरूर हो जाएगा.
चीन की QBZ-95 का युद्ध में परीक्षण नहीं हुआ
चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी पिछले कई दशकों से सर्विस राइफल के तौर पर QBZ-95 का इस्तेमाल कर रही है. पूरी तरह से ऑटोमैटिक इस राइफल का पिस्टन चलते वक्त घूमता रहता है, जो इसे ऑटोमैटिक श्रेणी की राइफल में ले आता है. 3.25 किग्रा वजनी यह राइफल 29.3 इंच की है, जो एक मिनट में साढ़े छह सौ राउंड फायर करती है. इसका कार्टेज 5.8×42 एमएम का है. अब जरा फिर गौर कर लें भारत में बनने वाली एके-203 एक मिनट में 800 राउंड फायर करती है, जिसका कार्टेज 7.62×39 है. यानी पीएलए जवानों को दूर से ही गिराया जा सकेगा. दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि चीन की QBZ-95 की मारक क्षमता का व्यावहारिक परीक्षण यानी किसी युद्ध में नहीं हुआ है.
यह भी पढ़ेंः Al Qaeda चीफ जवाहिरी को मारने वाले MQ-9 Reaper Drone लेगी भारतीय नेवी, जानें खास बातें
पाकिस्तान इस्तेमाल कर रहा जी-3 का
चीन के बाद अब बात करते हैं उसके सदाबहार दोस्त पाकिस्तान की. उसके जवानों के पास द हेकलर एंड नॉक जी-3 है, जिसे उसने 1965, 1971 समेत कारगिल युद्ध में भी भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया था. 1950 में जर्मनी में बनी यह राइफल पाकिस्तान में 1959 में आई और अब वहीं बनती है. 4.38 किलो की यह राइफल 40.4 इंच लंबी है. 7.62 एमएम की यह राइफल मिनट भर में पांच से छह सौ गोलियां चार से पांच सौ मीटर की रेंज में दाग सकती है. पिछले कुछ सालों से पाकिस्तान भी इसे बदलने की फिराक में है. शायद भारत में एके-203 आने का सुनकर. ध्यान रहे कि चीन और पाकिस्तान की ये दोनों बंदूकें सर्विस राइफल हैं यानी यही उसके पास बड़ी मात्रा में हैं.
HIGHLIGHTS
- रूस-यूक्रेन युद्ध से अमेठी में एक-203 राइफल का उत्पादन कई महीने पीछे
- रेडी टू यूज पहली खेप के बाद एके-203 का निर्माण अब भारत में ही होना है
- इसके आगे चीन और पाकिस्तान की राइफल की फायर पॉवर कुछ भी नहीं