भारत (India) को उसकी जरूरतों के लिए रूसी सैन्य साज-ओ-सामान की आपूर्ति रुक गई है. इसकी एक बड़ी वजह यह है कि मोदी सरकार (Modi Government) रूसी आपूर्ति के बदले एक ऐसा भुगतान तंत्र खोजने की जद्दोजेहद में है, जो अमेरिकी प्रतिबंधों (US Sanctions) का उल्लंघन नहीं करता हो. सूत्रों के मुताबिक 2 बिलियन डॉलर से अधिक राशि के रूसी हथियारों के लिए भारतीय भुगतान बीते लगभग एक साल से अटका हुआ है. इधर रूस ने भी पाइपलाइन के लिए क्रेडिट बंद करते हुए लगभग 10 बिलियन डॉलर मूल्य के स्पेयर पार्ट्स के साथ-साथ दो एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम (S 400 Missile Defence System) बैटरियों की आपूर्ति रोक दी है. रूस पाकिस्तान और चीन को युद्ध छेड़ने से रोकने के लिए भारत के लिए जरूरी हथियारों (Weapons) का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है. हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन (Joe Biden) प्रशासन ने रूस से विभिन्न सौदों को लेकर भारत पर जुर्माना ठोंकने से काफी हद तक परहेज किया है. इसमें एस-400 (S 400) एयर डिफेंस सिस्टम सौदे के लिए दंड पर रोक लगाना भी शामिल है. फिर भी बाइडन प्रशासन ने सांकेतिक कार्रवाई की है. बताते हैं कि पिछले सितंबर में मुंबई स्थित एक पेट्रोकेमिकल फर्म तिबालाजी पेट्रोकेम को ईरान से पेट्रोलियम उत्पाद खरीदने के लिए अमेरिकी वित्त विभाग ने प्रतिबंधित सूची में डाल दिया था.
भारत अमेरिकी डॉलर में रूस को भुगतान करने में असमर्थ
सूत्रों के मुताबिक सेकेंडरी प्रतिबंधों की चिंताओं की वजह से भारत अमेरिकी डॉलर में रूस को भुगतान करने में असमर्थ है. रूस भी विनिमय दरों में उतार-चढ़ाव से भारतीय मुद्रा रुपये में भुगतान स्वीकार करने को तैयार नहीं है. सरकार भी खुले बाजार से उचित दर पर पर्याप्त खरीद करने में सक्षम होने की चिंताओं से रूसी मुद्रा रूबल में सौदा पूरा नहीं करना चाहती है. ऐसे में मोदी सरकार ने रूस को हथियारों की बिक्री सौदों में रुपये का इस्तेमाल भारतीय ऋण और पूंजी बाजार में निवेश करने का प्रस्ताव दिया है. बताते हैं कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मोदी सरकार का यह प्रस्ताव आकर्षक नहीं लगा है. ऐसे में मोदी सरकार के लिए एक संभावित समाधान यूरो और दिरहम मुद्रा का उपयोग करना होगा. ये मुद्राएं रियायती रूसी कच्चे तेल के भारतीय आयात के लिए भुगतान करने में उपयोग में लाई जाती हैं. हालांकि हथियारों के सौदों के भुगतान के लिए इन मुद्राओं का उपयोग तेल की तुलना में अमेरिकी प्रतिबंधों का जोखिम बढ़ा सकता है. इसके साथ ही भारत के लिए प्रतिकूल विनिमय दरों के कारण लागत भी कहीं ज्यादा बढ़ सकती है.
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बीते साल रूस से भारत का ट्रेड सरप्लस 37 बिलियन डॉलर रहा
सूत्रों के मुताबिक हथियारों की कीमत के मुकाबले एक और विकल्प रूस के लिए भारतीय आयात की खरीद को ऑफसेट करने का एक तंत्र है, लेकिन यह आसान नहीं है. आंकड़ों के अनुसार रूस के पास पिछले साल भारत के साथ 37 बिलियन डॉलर का व्यापार सरप्लस था, जो चीन और तुर्की के बाद तीसरा सबसे बड़ा सरप्लस है. बताते हैं कि हथियारों के भुगतान का मुद्दा विलंबित होने से अब और अधिक जरूरी हो गया है. भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की जनवरी में मास्को यात्रा के दौरान भी इस मसले को उठाया गया था. यही नहीं, इस सप्ताह दिल्ली में रूसी उप प्रधान मंत्री डेनिस मंटुरोव और भारतीय विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर के बीच हुई बातचीत में भी यह मसला प्रमुखता से उठा. इस बातचीत में तय हुआ था कि रुपये के निपटान के लिए और अधिक काम करने की आवश्यकता है. गौरतलब है कि इस सप्ताह हुई बैठक के बाद जयशंकर ने संवाददाताओं से कहा था, 'दोनों पक्षों की व्यापार असंतुलन पर चिंता समझी जा सकती है. हमें अपने रूसी दोस्तों के साथ मिलकर इस असंतुलन को दूर करने के लिए तत्काल आधार पर काम करने की आवश्यकता है.' भारत वर्तमान में 250 से अधिक रूसी-निर्मित लड़ाकू जेट एसयू-30 एमकेआई, किलो-श्रेणी की सात पनडुब्बियां और 1,200 से अधिक रूसी-निर्मित टी-90 टैंकों का संचालन कर रहा है. ये सभी एक दशक से चालू हालत में हैं और अब इनके स्पेयर पार्ट्स की महती जरूरत है. इसके अलावा पांच में से तीन एस-400 मिसाइल रक्षा सिस्टम पहले ही भारत को रूस की ओर से मिल चुके हैं.
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भारतीय वायु सेना इस अड़चन से सबसे ज्यादा प्रभावित
सूत्रों के मुताबिक लड़ाकू विमानों और हेलीकॉप्टरों के लिए रूस पर निर्भर भारतीय वायु सेना पर इस अवरोध का सबसे ज्यादा असर पड़ा है. हाल फिलहाल की स्थिति में अभी यह भी अनिश्चित है कि रूस इनका नियमित रखरखाव कर सकेगा. चीन और पाकिस्तान के साथ भारत की सीमाओं पर तनाव के मद्देनजर यह काम सर्वोच्च प्राथमिकता का है. भारत-रूस संबंधों पर अमेरिका समेत अन्य देशों की निगाहें सितंबर में भी सबसे अधिक केंद्रित होंगी, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी 20 नेताओं के समूह की मेजबानी करेंगे. इस दौरान रूस-यूक्रेन युद्ध पर प्रमुखता से चर्चा की उम्मीद जताई जा रही है. यह बैठक भारत को रूस के साथ हथियारों के एवज में भुगतान तंत्र को कोई कदम उठाने से भी रोक रही है. रूस सैन्य हार्डवेयर का भारत का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है. हालांकि अमेरिकी प्रतिबंधों और अन्य देशों से सैन्य सौदों की बढ़ती प्रतिस्पर्धा से पिछले पांच वर्षों में रूसी खरीद में 19 फीसदी की कमी आई है. गौरतलब है कि भारत ने यूक्रेन पर रूसी आक्रमण की निंदा करने वाले संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों पर मतदान से परहेज करते हुए युद्धविराम का आह्वान कर अपनी प्रतिक्रिया को सावधानीपूर्वक व्यक्त किया था. पीएम मोदी अगले कुछ हफ्तों में अमेरिका और अन्य औद्योगिक देशों के समकक्षों के साथ बैठक करने वाले हैं. ये देश भारत को चीन की बढ़ती सैन्य और आर्थिक मुखरता से मुकाबिल एक सशक्त साझेदार के रूप में देखते हैं. इन देशों ने भी भारत को रक्षा उपकरण देने की पेशकश की है. इसके बावजूद एक विश्वसनीय रक्षा पंक्ति बनाए रखने के लिए भारत को रूसी हथियार सौदौं से दूर करने में वर्षों लग जाएंगे.
HIGHLIGHTS
- मोदी सरकार रूसी आपूर्ति के बदले भुगतान तंत्र खोजने की जद्दोजेहद में
- एक ऐसा तंत्र जो रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच अमेरिकी प्रतिबंधों से बचा सके
- 2 बिलियन डॉलर से अधिक राशि का भुगतान बीते एक साल से है अटका