Sharad Pawar Resignation Reject: महाराष्ट्र की सियासत की बात की जाए तो शरद पवार का नाम दिग्गजों की गिनती में शुमार होता है. शरद पवार का राजनीति में कद वैसे तो राष्ट्रीय सत्र का है. क्योंकि विपक्षी नेता भी उन्हें एक मजबूत स्तंभ के रूप में ही देखते हैं. लेकिन महाराष्ट्र की पॉलिटिक्स में शरद पवार को पितामह कहा जाए तो गलत नहीं होगा. क्योंकि उन्होंने अपने चाणक्य दिमाग से प्रदेश के साथ-साथ देश की राजनीति में भी अपना सिक्का जमवा दिया है. बहरहाल शरद पवार को लेकर चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि उन्होंने अपने एक और दांव से महाराष्ट्र में सियासी हलचलें तेज कर दी हैं.
हाल में शरद पवार ने अपनी पद से इस्तीफा देते हुए मानों राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में भूचाल ला दिया. इस भूचाल का असर ये हुआ है कि, प्रदेश के साथ-साथ देशभर के राजनीतिक दलों की ध्यान एक बार फिर शरद पवार पर केंद्रित हो गया. शरद पवार के इस्तीफे को लेकर तीन दिन तक घटनाक्रम चलता रहा. नया अध्यक्ष ढूंढने के लिए एक कमेटी बनाई गई है और इस कमेटी ने कुछ और ही निर्णय ले लिया.
कमेटी ने फैसला लिया कि शरद पवार ही पार्टी के अध्यक्ष बने रहेंगे. उन्होंने 2024 तक अपना कार्यकाल हर काल में पूरा करना होगा. अब सवाल उठता है कि अगर इस पूरे घटनाक्रम का पटाक्षेप ऐसा ही होना था, तो इसकी जरूरत क्या थी? दरअसल इस पूरी पटकथा के पीछे शरद पवार का मास्टरस्ट्रोक था. आइए जानते हैं क्यों उन्होंने अपने इस्तीफे का दांव चला और इससे उन्हें क्या फायदा हुआ?
शरद पवार के मास्टरस्ट्रोक की ये हैं 3 बड़ी वजह
1. NCP का राष्ट्रीय स्तर का दर्जा छिनना
शरद पवार को इस्तीफे वाला मास्टरस्ट्रोक चलने के पीछे कई कारण हैं. लेकिन बड़ी वजहों को तलाशने की कोशिश करें तो इसमें सबसे बड़ी वजह थी पार्टी का राष्ट्रीय स्तर का दर्जा चुनाव आयोग ने छीन लिया. ऐसे में पार्टी में किसी तरह की हताशा ना हो, शरद पवार के कद पर आंच ना आए या उनकी स्तिथि भी शिवसेना के उद्धव ठाकरे जैसी ना हो जाए. इन सब वजहों को दबाना बहुत जरूरी था. लिहाजा शरद पवार चाहते थे कि उनका कद पार्टी में पहले की तरह बना रहे और पार्टी में कोई सिर ना उठा सके.
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2. अजित पवार को जमीन दिखाना
शरद पवार पिछले लंबे समय से अजित पवार से भी परेशान हैं. 2019 के विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद जिस तरह अजित पवार ने फडणवीस के साथ रातों रात सरकार बनाकर महाविकास अघाड़ी को झटका दिया था. इसमें शरद पवार की बड़ी किरकिरी भी हुई थी. इतना ही नहीं अजित पवार भी लगातार पार्टी में अपना कद बढ़ाने में जुटे थे. ऐसे में शरद पवार के लिए जरूरी था कि उन्हें भी जमीन दिखा दें. हाल में ये खबरें खूब उड़ीं कि अजीत पवार कुछ विधायकों के साथ बीजेपी जॉइन कर सकते हैं. ऐसे में शरद पवार ने उन पर इतना दबाव बनाया कि उन्हें खुले मंच पर ये कहना पड़ा कि वे जिंदगीभर एनसीपी में ही रहेंगे.
3. असंतोष को भी खत्म करना
राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिनने और अजित पवार की ओर से मतभेद के बीच पार्टी में असंतोष बढ़ने का खतरा भी लगातार बढ़ने लगा था. ऐसे में जरूरी था कि, इस पर लगाम लगाई जाए. शरद पवार ने अपने मास्टरस्ट्रोक से इस तरह के सभी गतिरोधों को साधने का काम किया. उन्होंने पार्टी नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं के जरिए अपनी जरूरत और इज्जत दोनों को बखूबी कायम रखा.
HIGHLIGHTS
- शरद पवार ही रहेंगे NCP के अध्यक्ष
- इस्तीफा देने और रिजेक्ट होने के पीछे है बड़ा दांव
- शरद पवार को ऐसे ही नहीं कहा जाता राजनीति का चाणक्य