कांग्रेस (Congress) के दो क्षेत्रीय क्षत्रपों क्रमशः राजस्थान के सचिन पायलट (Sachin Pilot) और कर्नाटक के डीके शिवकुमार (DK Shivkumar) की भविष्य की राजनीति को लेकर तमाम अटकलें लगाई जा रही हैं. राजनीतिक गलियारों में यह प्रश्न तैर रहा है कि क्या वे हिमंत बिस्वा सरमा (Himanta Biswa Sarma), ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) और 48 अन्य नेताओं के रास्ते पर चल कांग्रेस से किनारा कर लेंगे या राजस्थान-कर्नाटक सरीखे चुनावी राज्यों में वफादार कांग्रेसी के रूप में बने रहेंगे? हालांकि फौरी तौर पर इन दिग्गज नेताओं के कांग्रेस छोड़ने की संभावना नहीं है, क्योंकि पायलट और शिवकुमार दोनों खुद को अनुभवी मानते हैं और अभी भी कांग्रेस पार्टी में अपने अवसरों या कहें कि भविष्य को देखते हैं. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने गांधी परिवार (Gandhi Family) से 'न्याय' मिलने की आस नहीं छोड़ी है. ऐसे में अब एक बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या राहुल, सोनिया और प्रियंका गांधी शिवकुमार और पायलट को निराश तो नहीं करेंगे?
कांग्रेस आलाकमान का ध्यान खींचना पायलट का पहला लक्ष्य
हालांकि इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि मंगलवार को एक दिन के उपवास पर बैठने के पायलट के कदम से कांग्रेस के भीतर भी काफी बेचैनी है. ऐसे समय जब कांग्रेस का पूरा नेतृत्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की 'स्वास्थ्य के अधिकार' की पहल का गुणगान कर रहा हो, तब पायलट पूर्व वसुंधरा राजे सरकार द्वारा आबकारी, खनन और भू-माफिया के खिलाफ कार्रवाई का आह्वान और कथित भ्रष्टाचार और घोटालों की जांच करने में गहलोत की कथित विफलता की शायद ही कोई सुध ले. ऐसा लगता है कि पायलट को गहलोत की प्रतिक्रिया की कोई परवाह नहीं है, क्योंकि वे मुख्यमंत्री के ताने सुनने के आदी हो चुके हैं. इस लिहाज से पायलट की चाल का उद्देश्य राजस्थान गतिरोध को हल करने के लिए कांग्रेस आलाकमान का सिर्फ ध्यान आकर्षित करना ही है.
यह भी पढ़ेंः 5.5 घंटे में दिल्ली पहुंचेगी राजस्थान की पहली वंदे भारत, जानें इसकी और विशेषताएं
खड़गे के आश्वासन से थक चुके हैं पायलट
यह भी उतना ही सच है कि सचिन पायलट अब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बार-बार के आश्वासनों से थक चुके हैं. मार्च 2023 में खड़गे कथित तौर पर पायलट को राज्य पार्टी प्रमुख बनाने की सोच रहे थे. जाहिर है इस सोच मात्र ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की रातों की नींदें उड़ा दी होंगी. गौरतलब है कि सचिन पायलट 2014 से 2020 तक राजस्थान पीसीसी का नेतृत्व कर चुके हैं. ऐसे में राज्य कांग्रेस प्रमुख बतौर उनकी ताजपोशी नवंबर 2023 के राज्य विधानसभा चुनावों के महत्वपूर्ण टिकट वितरण में गहलोत की बराबरी पर ला देती. इस कड़ी में लाख टके का सवाल यह भी उठता है कि क्या खड़गे के तेवर ठंडे पड़ गए हैं? हालांकि पायलट का उपवास आलाकमान को दिया गया एक संकेत और कांग्रेस नेतृत्व के लिए छिपी हुई धमकी है कि पार्टी के प्रति उनकी वफादारी को कमजोरी के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.
पवार-ममता की राह चुनेंगे पायलट
सचिन पायलट के आम आदमी पार्टी में शामिल होने या राजस्थान में अरविंद केजरीवाल के लिए भगवंत मान बनने के बारे में भी तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. इस कड़ी में भी राजनीति में कुछ भी पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता है. फिर भी पायलट के लिए अरविंद केजरीवाल या किसी क्षेत्रीय क्षत्रप के लिए दूसरी भूमिका निभाने की संभावना नहीं है. कांग्रेस से मोह भंग होने की स्थिति या पूरी तरह से धैर्य चुक जाने की स्थिति सचिन पायलट के समक्ष जब जब भी आएगी, तो वह जगन मोहन रेड्डी या ममता बनर्जी के रास्ते का अनुसरण करना श्रेयस्कर समझेंगे. यानी कांग्रेस के रूप में दूसरा क्षेत्रीय संगठन बनाकर.
यह भी पढ़ेंः Keshub Mahindra Death: नहीं रहे अरबपति केशब महिंद्रा, फोर्ब्स की सूची में मिली थी 16वीं पोजिशन
पायलट का उपवास आकार लेते भविष्य का सूचक
संक्षेप में सचिन पायलट के इस कदम को भविष्य में आकार लेने वाले घटनाक्रम के संकत के रूप में अधिक देखा जाना चाहिए. इस उपवास को खड़गे की तुलना में गांधी परिवार से उनके मोहभंग की बढ़ती भावना और जमीनी स्तर पर अंदाजा लगाने के प्रयास के तौर पर अधिक लेना चाहिए. यह गांधी परिवार पर है कि वह खड़गे को तेजी से कार्य करने के लिए प्रेरित करे, क्योंकि कांग्रेस प्रमुख 13 मई तक कर्नाटक का चुनावी फैसला आने तक सब कुछ टाल रहे हैं. यह भी कह सकते हैं कि कांग्रेस के 88वें अध्यक्ष खड़गे कर्नाटक चुनावी परिणाम पक्ष में आने की सूरत में कहीं ज्यादा शक्ति की स्थिति में कार्य करने का अवसर मिलेगा.
HIGHLIGHTS
- क्या सचिन पायलट हिमंता बिस्व सरमा और ज्योतिरादित्या सिंधिया के रास्ते पर चलेंगे
- या सचिन पायलट अपनी ताकत को पहचान शरद पवार-ममता बनर्जी के रास्ते जाएंगे
- सचिन पायलट की भविष्य की राजनीति को लेकर तमाम अटकलें लगाई जा रही हैं