सुप्रीम कोर्ट ने 'तलाक-ए-हसन' को बताया तीन तलाक से अलग, क्या है 'खुला'

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि 'तलाक-ए-हसन' के माध्यम से शौहर तीन महीने की अवधि में हर महीने एक-एक बार तलाक का उच्चारण करता है. यह 'तीन तलाक' के समान नहीं है.

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Keshav Kumar
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मुस्लिम महिला 'खुला' के जरिए अपना पक्ष रख सकती है( Photo Credit : News Nation)

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मुसलमानों में तलाक की प्रथा 'तलाक-ए-हसन' ( Talaq e Hasan) का इस्तेमाल अवैध घोषित 'तीन तलाक' (Triple Talaq) के इस्तेमाल के बराबर नहीं है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि 'तलाक-ए-हसन' के माध्यम से शौहर तीन महीने की अवधि में हर महीने एक-एक बार तलाक का उच्चारण करता है. यह 'तीन तलाक' के समान नहीं है और मुस्लिम महिलाओं (Muslim Women) के पास 'खुला' (Khula) का विकल्प भी है. कोर्ट ने कहा कि इस्लाम में एक पुरुष 'तलाक' ले सकता है, जबकि एक महिला 'खुला' के माध्यम से अपना पक्ष रख सकती है. 

सुप्रीम कोर्ट 'तलाक-ए-हसन' और "एकतरफा अतिरिक्त न्यायिक तलाक के अन्य सभी रूपों को शून्य और असंवैधानिक" घोषित करने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी. याचिका में दावा किया गया था कि 'तलाक-ए-हसन' भी मनमाना, तर्कहीन और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. आइए, जानते हैं कि तलाक का यह रूप यानी 'तलाक-ए-हसन' विवाद का विषय क्यों है और यह अब अवैध घोषित 'तीन तलाक' से कैसे अलग है? इसके अलावा महिलाओं के लिए 'खुला' का मजहबी विकल्प क्या है?

तलाक-ए-हसन और तीन तलाक में अंतर 

बीते कई दिनों से तलाक-ए-हसन का मुद्दा भी सुर्खियों में बना हुआ है. तलाक-ए-हसन भी तीन तलाक की तरह ही मुस्लिम समुदाय से जुड़ी तलाक की एक प्रक्रिया है. इमुस्लिम महिलाओं  के एक समूह की ओर से कोर्ट में तीन तलाक की तरह ही तलाक-ए-हसन को भी भेदभाव करने वाला बताया जा रहा है. तीन तलाक या तलाक-ए-बिद्दत को इंस्टेंट तलाक को गैरकानूनी घोषित किया जा चुका है. तलाक-ए-हसन को भी इसकी तरह ही शादीशुदा मुस्लिम मर्दों को मिला एकतरफा और विशेष मजहबी अधिकार बताया जा रहा है. 

तीन तलाक गैरकानूनी घोषित

ट्रिपल या तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत को शायरा बानो बनाम भारत संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साल 2017 में असंवैधानिक घोषित कर दिया था. इसमें मुस्लिम पुरुष अपनी बीवी को एक बार में तीन तलाक बोलता था और शादी खत्म हो जाती थी. इसे असंवैधानिक घोषित किए जाने के बाद मुस्लिम महिलाओं ने राहत की सांस ली थी. अब तीन तलाक की तरह ही तलाक-ए-हसन का मामला भी सामने आया है. इसके खिलाफ भी कई याचिकाएं दायर की जा रही हैं.  

तलाक-ए-हसन क्या है

मुस्लिम समुदाय में मजहबी तौर पर प्रचलित प्रथा तलाक-ए-हसन में शादीशुदा मर्द लगातार तीन महीने में एक-एक कर तीन बार तलाक बोलकर औपचारिक तौर से अपनी शादी तोड़ सकता है. इस मजहबी प्रक्रिया में शौहर एक महीने में एक बार तलाक बोलता है. फिर दूसरे महीने में दूसरी बार तलाक बोलता है. इसके बाद तीसरे महीने में तीसरी बार यानी फाइनली तलाक बोलता है. इन तीन महीनों के दौरान निकाह कायम रहती है.  इन तीन महीनों के दौरान अगरमियां-बीवी में सुलह हो जाती है तो तलाक नहीं होता. दोनों में सुलह नहीं होने की सूरत में अगर शौहर तीन महीने में नियमित तौर पर तीन बार तलाक बोल देता है तब औपचारिक तौर पर तलाक होना मान लिया जाता है. 

तलाक-ए-हसन की पूरी प्रक्रिया

इस्लाम के जानकारों के मुताबिक तलाक-ए-हसन का इस्तेमाल उस समय किया जाना चाहिए जब बीवी को मासिक धर्म नहीं हो रहा हो. वहीं तीनों तलाक के ऐलान में हरेक के बीच एक महीने का अंतराल होना चाहिए. इस तरह से दोनों के बीच परहेज या शारीरिक दूरी की अवधि इन तीन लगातार तलाक के बीच की समय सीमा में होनी चाहिए. संयम या ‘इद्दत’ 90 दिनों यानी तीन मासिक चक्र या तीन चंद्र महीनों के लिए तय होता है. इस अवधि के दौरान, अगर शौहर या बीवी अंतरंग संबंधों में सहवास करना या साथ रहना शुरू कर देते हैं, तो तलाक को रद्द कर दिया जाता है. इस प्रकार के तलाक को स्थापित करने का मजहबी मकसद तात्कालिक तलाक की बुराई को रोकना था. हालांकि अब इसके साइड इफेक्ट भी सामने आने लगे हैं.

'खुला' और मुबारत क्या है 

इस्लाम में शादीशुदा महिलाओं के लिए 'खुला' तलाक की एक प्रक्रिया है. इसके जरिए बीवी अपने शौहर से तलाक ले सकती है. कुरान और हदीस में तलाक की तरह ही खुला का जिक्र भी किया गया है.. खुला में की प्रक्रिया में बीवी को बदले में शौहर को कुछ संपत्ति लौटानी पड़ती है. इसमें भी दोनों की रजामंदी जरूरी बताई गई है. इस्लाम के नियमों के मुताबिक मुबारत के जरिए भी शादी तोड़ी जा सकती है. मुबारत का शाब्दिक मतलब पारस्परिक छुटकारा होता है. मियां- बीवी की रजामंदी से ही मुबारत तलाक होता है. दोनों में से कोई भी मुबारत कर सकता है. वहीं, खुला की पेशकश केवल बीवी ही कर सकती है.

ये भी पढ़ें - क्या है तलाक-ए-हसन ? क्यों खत्म करने की मांग कर रहीं मुस्लिम महिलाएं

सुप्रीम कोर्ट में पहले भी याचिका

इस्लामी तलाक प्रक्रिया का हिस्सा तलाक-ए-हसन को जनहित याचिका दायर कर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. पहले भी एक और मुस्लिम महिला ने याचिका दायर कर  केंद्र से “सभी नागरिकों के लिए तलाक के लिंग तटस्थ धर्म तटस्थ समान आधार और तलाक की समान प्रक्रिया” के लिए दिशानिर्देश तैयार करने की मांग की थी. याचिका में “तलाक-ए-हसन और एकतरफा अतिरिक्त-न्यायिक तलाक के अन्य सभी रूपों” की प्रथा को मनमाना, तर्कहीन और अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करने के लिए शून्य और असंवैधानिक घोषित करने के लिए निर्देश जारी करने की मांग की गई थी.  सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई गई थी कि मुसलमानों को एकतरफा तलाक घोषित करने की अनुमति देने वाली मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 की धारा- दो को खत्म कर देना चाहिए.

HIGHLIGHTS

  • मुस्लिम महिलाओं के पास 'खुला' का विकल्प भी है
  • तलाक-ए-हसन तुरंत तीन तलाक के समान नहीं है
  • ट्रिपल या तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत गैरकानूनी
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