China drills around Taiwan ended: ताइवान के चारों ओर चीनी सेना का युद्धाभ्यास खत्म हो गया. चीनी सैन्य बेड़ा ताइवान के आसपास से वापस लौट गया, लेकिन जाते-जाते ड्रैगन ताइवान को आंखें दिखा गया है. चीन ने ताइवान को लेकर 'युद्ध' की धमकी दी है और कहा कि जब तक 'पूर्ण एकीकरण' नहीं हो जाता. तब तक वह जवाबी कार्रवाई तेज करता रहेगा. एक अंग्रेजी समाचार एजेंसी ने इस बारे में जानकारी दी है. ऐसा पहली बार नहीं है जब चीन ने ताइवान को घेरकर युद्धाभ्यास किया हो, उसे डराया हो और धमकाया हो. पिछले चार सालों में, चीन ने नियमित रूप से ताइवान के आसपास सैन्य गतिविधियां की हैं, जिसमें 2022 और 2023 के युद्भाभ्यास भी शामिल हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कभी चीन के चंगुल से ताइवान निकल पाएगा और इस विवाद में भारत के पास क्या विकल्प मौजूद हैं.
#UPDATE China warned on Friday of "a perilous situation of war and danger" over Taiwan and said it would ramp up countermeasures until "complete reunification" was achieved, as Chinese forces conducted military drills around the self-ruled island ➡️ https://t.co/fKhNJqI5ce pic.twitter.com/SUzqwjVSHC
— AFP News Agency (@AFP) May 24, 2024
चीन के युद्धाभ्यास की वजह
चीन का ताइवान के चारों ओर यह युद्घाभ्यास चीन विरोधी नेता लाई चिंग ते के ताइवानी राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण के कुछ दिनों बाद किया. दरअसल चिंग-ते ने अपने भाषण में चीन को करारा जवाब दिया. उन्होंने कहा था कि वह चीन के साथ शांति चाहते हैं और उन्होंने चीन से सैन्य धमकियां बंद करने को कहा था. उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि ताइवान 'चीन से घुसपैठ के कई खतरों और प्रयासों का सामना' करते हुए खुद का बचाव करने के लिए दृढ़ है. वह ताइवान की रक्षा के लिए अग्रमि पंक्ति में खड़े रहेंगे. बता दें कि लाई की पार्टी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी ताइवान को एक संप्रभु राष्ट्र बताती है.
लाई के इसी भाषण को लेकर चीन भड़का हुआ है. उसने कड़ें शब्दों लाई के भाषण की निंदा की है. चीन ने बार-बार लाई को अलगाववादी करार दिया है, जो द्वीप पर युद्ध और पतन लाएगा, इसलिए चीन ने लाई और उनके समर्थकों को कड़ा संदेश देने के लिए यह युद्धाभ्यास किया था. चीन ने कहा कि उसका ये सैन्य अभ्यास द्वीप पर कब्जा करने की उसकी क्षमता का परीक्षण था. उसने कसम खाई कि द्वीप पर ताइवान की स्वतंत्रता की बात करने वाले अलवावादियों का खून बहा देगा.
वहीं, बीजिंग की डिफेंस मिनिस्ट्री के प्रवक्ता वू कियान (Wu Qian) ने कहा कि लाई जिंग-ते ने वन चाइना प्रिसिंपल को चुनौती दी है. उन्होंने द्वीप में हमारे देशवासियों को युद्ध और खतरे की खतरनाक स्थिति में धकेल दिया है. जब-जब 'ताइवान की स्वतंत्रता' की बात होगी, तब-तब हमें उकसाएगी और हम अपने जवाबी उपायों को एक कदम आगे बढ़ाएंगे, जब तक कि ताइवान का मैनलैंड में पूर्ण एकीकरण नहीं हो जाता है.
क्या चीन के चंगुल से निकल पाएगा ताइवान?
यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब चीन-ताइवान विवाद के समाधान में छिपा हुआ है. ताइवान सालों से इस दिशा में लगा हुआ है. वह अपनी सैन्य, आर्थिक और राजनीतिक ताकतों को लगातार बढ़ा रहा है. बीते कुछ सालों में उसकी अमेरिका के साथ नजदीकियां बढ़ी हैं. ताइवान ने अमेरिका से एफ-16 लड़ाकू जेट, सशस्त्र ड्रोन, रॉकेट सिस्टम और हार्पून मिसाइलों सहित अमेरिकी हथियारों खरीदे हैं. वहीं, अमेरिका ने भी चीन से टकराव के हालत में ताइवान का साथ देने का ऐलान भी किया.
आर्थिक मोर्च पर भी ताइवान खुद को मजूबत करने में लगा हुआ है. वह ग्लोबल मार्केट में एक प्रमुख आर्थिक खिलाड़ी है. सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री में उसकी जबरदस्त पकड़ है. ताइवान दुनिया के 60 फीसदी से अधिक सेमीकंडक्टर और 90 फीसदी से अधिक सबसे उन्नत सेमीकंडक्टर का उत्पादन करता है. कहा जाता है कि ताइवान की ताकत उसकी सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री हैं. यह देश पूरी दुनिया को सेमीकंडर चिप्स की आपूर्ति करता है. अगर ताइवान का सेमीकंडक्टर चिप्स उत्पादन बंद गया तो पूरी दुनिया की रफ्तार थम जाएगी.
आपको यह जानकारी हैरानी होगी कि मोबाइल, कंप्यूटर, लैपटॉप, टीवी, सेट-टॉप बॉक्स, ई-व्हीकल, मेडिकल मशीनें, इलेक्ट्रिक प्रिंटर, फिंगर प्रिंट, फेस रीडर मशीन सभी में ताइवान में बनी सेमीकंडक्टर चिप्स का यूज होता है. ताइवान की सिंचू सिटी इसका केंद्र है, यहां के साइंस पार्क में लगभग 180 सेमीकंडक्टर चिप कंपनियां और उनके प्लांट हैं. ताइवान की सबसे बड़ी कंपनी टीएसएमसी भी यहीं स्थित है. ताइवान की इकॉनोमी रिजनल और ग्लोबल सप्लाई चैन्स के साथ स्ट्रॉन्ग तरीके से जुड़ी हुई है, जो इसकी क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक सुरक्षा के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाती है.
अब ताइवान को लेकर चीन के रूख पर बात कर लेते हैं. चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है, लेकिन ताइवान खुद को एक अलग देश मानता है. यह बात अलग है कि ताइवान को अलग देश के रूप में अब तक मान्यता नहीं मिली है. केवल 12 छोटे देश ही ताइवान को एक अलग देश के रूप में मान्यता देते हैं. ऐसे में ताइवान अपनी सैन्य, आर्थिक और विदेशी देशों के साथ कूटनीतिक संबंधों के जरिए चीन पर भारी पड़ सकता है. हालांकि उसके ये प्रयास चीन के सामने कितने सार्थक साबित होंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता है.
भारत के पास क्या हैं विकल्प?
भारत के ताइवान के साथ आर्थिक रिश्ते बढ़े हैं. उसे अपने राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए ताइवान के मामले में यथास्थिति का रूख अपनाना चाहिए. भारत के आर्थिक और सुरक्षा हितों के कारण ताइवान पर उसके किसी भी विवाद में शामिल होने की संभावना बहुत कम है. वो इसलिए कि ऐसा करना देश की अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी होगा. इस तरह के हालात को रोकने के लिए भारत अंतर्राष्ट्रीय कानून तर्क, कूटनीतिक संदेश, आर्थिक रणनीति, सूचना संचालन और हिंद महासागर में अमेरिका को सैन्य सहायता करने जैसे विकल्पों पर विचार कर सकता है.
Source : News Nation Bureau