ताइवान इस समय पूरी दुनिया के लिए चर्चा का विषय बना हुआ है. खासकर अमेरिकी व्हाइट हाउस की प्रवक्ता नैंसी पेलोसी के दौरे के बाद तो ताइवान अचानक सुर्खियों में आ गया है. पेलोसी के दौरे से भड़के चीन ने ताइवान पर घेरा डाल दिया है और मिसाइलें दागनी शुरू कर दी हैं. हालांकि ये मिसाइलें ताइवान को निशाना बनाकर नहीं छोड़ी जा रही हैं और न ही यह कोई युद्ध है...यह तो केवल वो युद्धाभ्यास है जो पेलोसी के जाने के बाद चीन ने ताइवान पर दबाव बढ़ाने के लिए शुरू किया है. लेकिन इन हालातों में दोनों देशों के बीच युद्ध की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता. लेकिन क्या चीन की आक्रामकता की वजह केवल नैंसी पेलोसी का ताइवान दौरा है या उसकी वन चाइना नीति में होने वाली घुसपैठ. समझने वाली बात यह भी है कि अमेरिका क्यों ताइवान का इतना हमदर्द बना हुआ है...क्या वह वास्तव में ताइवान की मदद करना चाहता है या मामला कुछ और है-
दरअसल, यह मसला चीन के लिए केवल लैंड और अमेरिका के लिए चीन के काउंटर तक सीमित नहीं है. इस विवाद की जड़ ताइवान के सबसे बड़े कारोबार सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग तक फैली हुई हैं. दरअसल, ताइवान दुनिया में सेमीकंडक्टर का सबसे बड़ा एक्सपोर्टर है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि माइक्रोसॉफ्ट, एप्पल, पैनासोनिक, यामाहा और सोनीजैसी दिग्गज कंपनी भी अपनी जरूरत के सेमीकंडक्टर ताइवान से ही खरीदती हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले कुछ सालों तक दुनिया में ताइवान के सेमीकंडक्टर का शेयर प्रतिशत 92 तक था. हालांकि यह कोरोनाकाल में थोड़ा प्रभावित जरूर हुआ. लेकिन सेमीकंडक्टर के निर्यात में ताइवान आज भी पहले पायदान पर है.
नैन्सी पेलोसी के दौरे से ताइवान को क्या हुआ हासिल... नुकसान या फायदा?
ताइवान के सेमीकंडक्टर पर चीन की नजर
विदेशी मामलों के जानकारों के अनुसार लैंड ही नहीं चीन की नजर ताइवान के सेमीकंडक्टर पर भी है. पूरी दुनिया में प्रोडक्शन और मैन्युफैक्चर की फैक्ट्री कहा जाने वाला चीन सेमीकंडक्टर के मामले में अभी तक ताइवान का तोड़ नहीं तलाश पाया है. यही वजह है कि ताइवान पर कब्जा कर उसके सेमीकंडक्टर प्रोडक्शन पर अपना आधिपत्य करना चाहता है. इससे न केवल चीन की कारोबार में इजाफा होगा, बल्कि ताइवान के सेमीकंडक्टर पर कब्जा जमाकर चीन पूरी दुनिया को कंट्रोल कर सकता है.
क्या है अमेरिका का दर्द
पूरी दुनिया में ताइवान के सेमीकंडक्टर का सबसे बड़ा आयातक अमेरिका है. माइक्रोसॉफ्ट जैसी अमेरिका की कई बड़ी कंपनियां ताइवान से ही सेमीकंडक्टर का आयात करती हैं. ऐसे में अमेरिका की ऑटोमोबाइल कंपनियां, इलेक्ट्रोनिक्स कंपनियां और मोबाइल कंपनियां अपने उत्पादों में उसी चिप का यूज करती हैं. ऐसे में अगर ताइवान पर चीन का कब्जा हो जाता है तो वह अमेरिका की चिप सप्लाई बंद कर सकता है. इसके साथ ही अमेरिका की सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है. यही वजह है कि ताइवान को लेकर चीन और अमेरिका के बीच टकराव की स्थित बनी हुई है.
क्या है सेमीकंडक्टर
दरअसल, सेमीकंडक्टर का काम बिजली के प्रवाह को नियंत्रित करना है. इसके निर्माण में सिलीकॉन का इस्तेमाल किया जाता है. इसका प्रयोग टेलिकॉम, ऑटोमोबाइल व बिजली के उपकरण बनाने में किया जाता है. सेमीकंडक्टर का दिमाग भी कहा जाता है. यह डाटा को प्रोसेस करता है.
जानें क्या है चीन और ताइवान के बीच का विवाद? अतीत में छिपा है काला सच
सेमीकंडक्टर से इतनी है कमाई
रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में सेमीकंडक्टर से होने वाली कमाई का 54 प्रतिशत हिस्सा ताइवान की कंपनियों के पास है. पिछले साल ताइवान ने 118 अरब डॉलर का एक्सपोर्ट केवल सेमीकंडक्टर से ही किया. वहीं, दक्षिण कोरिया की कंपनी सैमसंग की हिस्सेदारी केवल 8 प्रतिशत थी.
टीएसएमसी सबसे बड़ी कंपनी
ताइवान स्थित टीएसएमसी सेमीकडक्टर के मामले में दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है. दुनिया की अधिकांश बड़ी कंपनियां टीएसएमसी से ही सेमीकंडक्टर खरीदती हैं. रायटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक टीएसएमसी कुछ समय पहले तक दुनिया की 92 प्रतिशत चिक की मांग को पूरा कर रही थी.
Source : Mohit Sharma