गंभीर श्वसन सिंड्रोम सॉर्स कॉव-2 (Corona) संक्रमण वास्तव में एक गंभीर श्वसन बीमारी मानी जाती है. हालांकि अब हाल में हुए अध्ययन में बताया गया है कि कोविड-19 वास्तव में एक ऐसी हाइपरकॉएग्युलेबल स्थिति की ओर ले जाता है, जिससे शिराओं और धमनियों में थ्रोम्बोम्बोलिज्म भी हो सकता है. हाइपरकॉएग्युलेबल उस स्थिति को कहते हैं जब शिराओ में रक्त के थक्के बनने की प्रक्रिया तेज हो जाती है. इस अध्ययन में पाया गया कि अस्पताल में कोरोना उपचार के लिए भर्ती हुए 30 फीसदी मरीजों को थ्रोम्बोम्बोलिज्म हुआ. यद्यपि यह भी पाया गया कि ऐसी कोविड-19 से होने वाले थ्रोम्बोम्बोलिज्म से जुड़ी घटनाओं, जोखिम और परिणाम पर अभी भी व्यापक शोध की जरूरत है.
कोरोना और इंफ्लुएंजा मरीजों पर अध्ययन
हालिया अध्ययन में शोधकर्ताओं के मुताबिक अस्पताल में भर्ती इंफ्लुएंजा से पीड़ित मरीजों की तुलना में कोविड-19 संक्रमित मरीजों में शिराओं और धमनियों में थ्रोम्बोम्बोलिज्म की आशंका 90 दिनों तक रहती है. शोधकर्ताओं ने मरीजों के एक समूह का अध्ययन किया. शोधकर्ताओं ने अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के सेंटीनल सिस्टम से इसके लिए डेटा एकत्र किया. कोविड-19 मरीजों के समूह में ऐसे लोगों को शामिल किया गया, जिन्हें एक अप्रैल 2020 से 31 मई 2021 के बीच कोविड-19 के लिए पॉजिटिव न्यूक्लिक एसिड टेस्ट कराया था. इसमें भी उन मरीजों का चयन किया गया, जिन्हें कोविड-19 डिसीज-10 (आईसीडी-10) हुआ था. इसके अलावा कोविड-19 पॉजिटिव पाए जाने के समय जिनकी उम्र 18 या इससे अधिक वय की थी, उन्हें शोध के लिए समूह में शामिल किया गया. इसके साथ ही ऐसे मरीजों को चुना गया जिन्होंने कोरोना संक्रमण का पूरा इलाज लिए हुए एक साल या उससे अधिक हो चुका था. इंफ्लुएंजा से पीड़ित समूह के लिए 1 अक्टूबर 2019 से 30 अप्रैल 2019 के ऐसे मरीजों को चुना गया जिन्हें न्यूक्लिक एसिड टेस्ट में इंफ्लुएंजा पॉजिटिव पाया गया था. ऐसे मरीजों को तरजीह दी गई जिनकी उम्र 18 या इससे अधिक वय की थी. इसके अलावा ऐसे मरीजों को चुना गया जिन्होंने इंफ्लुएंजा का पूरा इलाज लिए हुए एक साल या उससे अधिक हो चुका था. इंफ्लुएंजा शोध के लिए चुने गए समूह में इस बात का भी खास ख्याल रखा गया था कि उन्हें कभी कोविड-19 संक्रमण नहीं हुआ था.
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शोध के परिणाम
शोध के प्रारंभिक परिणामों में निम्न बातें सामने आईं. इस्केमिक स्ट्रोक या मायोकॉर्डियल इंफार्क्शन के नाम से भी जानी जाने वाली धमनियों के थ्रोम्बोम्बोलिज्म हुआ. इस स्थिति में खून का प्रवाह कम हो जाता है. शिराओं के थ्रोम्बोम्बोलिज्म में शिराओं में गहरे तक थ्रोम्बोसिस पाई गई. दूसरे माध्यमिक परिणाम में एक विस्तारित धमनी थ्रोम्बोम्बोलिज्म एंडपॉइंट और एक विस्तारित शिरापरक थ्रोम्बोम्बोलिज्म एंड-पॉइंट शामिल था. थ्रोम्बोटिक स्थितियों के प्रारंभिक और माध्यमिक परिणामों में इंफ्लुएंजा मरीजों के समूह का 29 जुलाई 2019 और कोविड-19 मरीजों के समूह का 29 अगस्त 2019 का आकलन किया गया. शोध के परिणाम बताते हैं कि सॉस-कोव-2 वैक्सीन की उपलब्धता से पहले 41,443 कोवोड-19 संक्रमित मरीजों का इलाज अस्पताल में हुआ था. वैक्सीन की उपलब्धता के बाद 44,194 मरीजों का कोरोना संक्रमण का उपचार अस्पताल में हुआ. इसके विपरीत इंफ्लुएंजा पीड़ित 8269 मरीजों को ही अस्तपाल में भर्ती कराने की नौबत आई. इंफ्लुएंजा पीड़ित समूह की तुलना में कोविड-19 समूह में ऐसे मरीजों की संख्या अधिक रही, जो उम्रदराज थे. इसके साथ ही उनमें एक समय में एक से अधिक बीमारियां थी. कोविड-19 मरीजों की तुलना में इंफ्लुएंजा मरीजों में अस्थमा, दिल की बीमारी वालों की संख्या अधिक थी. इंफ्लुएंजा के उपचार के लिए भर्ती शिराओं के थ्रोम्बोम्बोलिज्म वाले मरीजों के लिए 90 दिनों का जोखिम क्रमशः 14.4 फीसद, 15.8 फीसद और 16.3 फीसद रहा. धमनियों के थ्रोम्बोम्बोलिज्म से पीड़ित मरीजों में ऐसे रोगियों की संख्या अधिक थी, जो पुरुष थे और उम्रदराज थे. इस समूह को आईसीयू तक की जरूरत पड़ी. इसके साथ ही शोधकर्ताओं के समूह ने यह भी पाया कि इंफ्लुएंजा और कोविड-19 मरीजों में शिराओं के थ्रोम्बोम्बोलिज्म से पीड़ितों में 90 दिनों में तुलनात्मक रूप से जोखिम दर 5.3 फीसद, 4.1 फीसद और 10.9 फीसद रही. कुल मिलाकर अध्ययन के निष्कर्षों ने अस्पताल में भर्ती कोविड-19 रोगियों और अस्पताल में भर्ती इफ्लुएंजा रोगियों के बीच परस्पर महत्वपूर्ण संबंध पर प्रकाश डाला, जिसमें 90 दिनों के भीतर शिरापरक थ्रोम्बोम्बोलिज़्म का अनुभव होने का जोखिम अधिक था.
HIGHLIGHTS
- कोविड-19 वास्तव में हाइपरकॉएग्युलेबल की ओर ले जाता है
- इससे शिराओं और धमनियों में थ्रोम्बोम्बोलिज्म भी हो सकता है