Asad Encounter: भारत में मुठभेड़ को लेकर नहीं है कोई सीधा कानून, तो कैसे होता है काम?

Encounter- Supreme Court Guidelines : उत्तर प्रदेश में पुलिस ( Uttar Pradesh Police ) को खुली छूट है कि वो अपराधियों को मिट्टी में मिला दे. मिट्टी में मिलाने का मतलब है कि उन्हें ढेर कर दो. मुख्यमंत्री खुद को सदन में कहते हैं कि वो माफिया को...

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Shravan Shukla
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Asad Encounter

Asad Encounter ( Photo Credit : UPSTF)

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Encounter- Supreme Court Guidelines : उत्तर प्रदेश में पुलिस ( Uttar Pradesh Police ) को खुली छूट है कि वो अपराधियों को मिट्टी में मिला दे. मिट्टी में मिलाने का मतलब है कि उन्हें ढेर कर दो. मुख्यमंत्री खुद को सदन में कहते हैं कि वो माफिया को मिट्टी में देंगे. लेकिन जब वो ऐसा कहते हैं, तो इसका कतई मतलब नहीं है कि वो माफिया से जुड़े लोगों की हत्या कर देंगे. इसका मतलब होता है कि वो माफिया सिस्टम को खत्म कर देंगे. ऐसा तब होगा, जब माफिया से जुड़े लोगों की जगह जेल में बन जाएगी. वो पकड़े जाएंगे. तभी सलाखों के पीछे जा पाएंगे. ऐसा करने की कोशिश में कई बार अपराधियों और पुलिस के बीच गोलीबारी भी होती है, क्योंकि पुलिस का काम है अपराधियों को पकड़ना और अपराधी आदतन पुलिस से भागेगा. लेकिन मुठभेड़ इसे ही तो नहीं कहते. कोई भी घटना मुठभेड़ तब कही जाएगी, जब दोनों पक्षों की तरफ से बल प्रयोग हुआ हो. ऐसा हम नहीं, सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन्स कहती हैं. 

5 लाख का ईनामी असद मुठभेड़ में ढेर

माफिया डॉन अतीक अहमद का बेटा असद अहमद मारा जा चुका है. सरकार के विपक्षी उसे मासूम घोषित कर चुके हैं. ये अलग बात है कि वो उमेश पाल हत्याकांड के समय गोलियां चलाता दिख रहा है. उस पर 5 लाख का ईनाम घोषित था और वो झांसी में भागते समय पुलिस से मुठभेड़ में मारा गया. सवला ये है कि मुठभेड़ आखिर है क्या और इसे लेकर देश में किस तरह के कानून हैं. तो सबसे पहले जान लीजिए कि पुलिस और न्यायालय में अंतर क्या है.

पुलिस और न्यायालय में है मूलभूत अंतर, सजा देने का नाम पुलिस का नहीं

पुलिस किसी भी अपराध को रोकने की कोशिश करेगी. कोई अपराध हुआ भी है तो वो अपराधी को पकड़ेगी. उसे न्यायालय तक पहुंचाएगी और उस अपराधी के अपराध को साबित भी करेगी. न्यायालय पुलिस की बात सुनेगी. साथ ही कथित अपराधी की भी बात सुनेगी. हालात को भी मद्देनजर रखेगी और नियमों के मुताबिक, सजा देगी या फिर उसे बरी कर देगी. तो पुलिस का काम अपराधी को न्यायालय तक पहुंचाना है, उसे सजा देना नहीं. लेकिन अपराधी को पकड़ने और उसे न्यायालय में पहुंचाने के दौरान उस पर अपराधी की तरफ से, या अपराधी के साथियों की तरफ से कोई हमला होता है, जिसके बचाव में पुलिस की गोली से कोई मर जाता है, तो उसे मुठभेड़ कहेंगे. खास बात ये है कि अचानक हुई मुठभेड़ों को छोड़ दें, तो अधिकतर मुठभेड़ों पर उंगली उठती रही है, इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने एक तरह से गाइडलाइन्स बनाई हैं कि किसी भी मुठभेड़ की सूरत में उसकी जानकारी किसे किसे दी जाए और पुलिस को क्या क्या काम करने चाहिए. 

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दो तरह के होते हैं मुठभेड़

मुठभेड़ दो तरह के होते हैं, एक औचक और दूसरा घेरेबंदी, छापेमारी के दौरान. औचक को हमेशा परिस्थितिजन्य नजरिये से देखा जाता है. लेकिन असद अहमद के मुठभेड़ में पुलिस उसकी लंबे समय से तलाश कर रही थी. उस पर 5 लाख का ईनाम था. ऐसे में इस मामले में पुलिस को कई प्रक्रियाओं का पालन भी करना पड़ा है. आईए अब बताते हैं कि किन प्रक्रियाओं का अपनाया जाना जरूरी है और क्यों...

  • किसी भी मुठभेड़ की पहले से सिस्टम को सूचना देनी पड़ी है. खासकर छापेमारी, तलाशी अभियान पर निकलने से पहले. इस दौरान सिस्टम को पता होना चाहिए कि मुठभेड़ वाली जगह पुलिस क्यों थी.
  • मुठभेड़ की सूरत में मजिस्ट्रेट की जांच होनी चाहिए, लेकिन सबसे पहले मुठभेड़ में शामिल पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज होना चाहिए. इस तरह की मुठभेड़ों की जानकारी मानवाधिकार आयोग को देना चाहिए.
  • मजिस्ट्रेट की जांच के बाद ही पुलिस टीम की भूमिका साफ होती है कि मुठभेड़ सही थी या गलत. गलत मुठभेड़ से मतलब ज्यूडिशियल किलिंग से है, जिसमें पुलिसकर्मी एक अपराधी को एकांत जगह पर ये कहते हुए गोली मार सकते हैं कि अपराधी ने उसके ऊपर गोली चलाई.
  • पुलिस को सिर्फ अपने बचाव में गोलीबारी का हक है. अगर एक तरफ से गोली चली है, तो ये हत्या का मामला होता है.
  • किसी भी अभियान पर निकलने से पहले पुलिस को डायरी अपडेट करनी होती है. इससे साफ जाहिर होता है कि पुलिस क्या काम करने मुठभेड़ वाली जगह पर गई थी. 

साल 2014 में जारी हुए थे दिशा निर्देश

ये दिशानिर्देश साल 2014 में जारी हुए थे, जिसे सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने दिये थे. इस बेंच में सीजेआई आरएम लोढ़ा और जस्टिस रोहिंगटन फनी नरीमन शामिल थे, जिन्होंने पीयूसीएल (पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज) बनाम महाराष्ट्र सरकार मामले में ये 16 सूत्रीय दिशा निर्देश जारी किये थे. वहीं, साल 1997 में सीजेआई MN वेंकटचेलैया ने कहा था कि मानवाधिकार आयोग को फर्जी मुठभेड़ों की शिकायत मिल रही है, ऐसे में सभी तरह की मुठभेड़ों की जांच की जानी चाहिए.  क्योंकि पुलिसकर्मी किसी की भी जान लेता है, तो ये हत्या का मामला है. लेकिन अगर बचाव में गोलियां चलाई गई है, तो हत्या का मामला नहीं, बल्कि मुठभेड़ का मामला बनेगा. मुठभेड़ के फर्जी मामलों में पुलिस के खिलाफ सख्त कार्रवाई और पीड़ित परिवार को मुआवजे देने का प्रावधान किया गया है. 

HIGHLIGHTS

  • भारत में मुठभेड़ को लेकर कोई कानून नहीं
  • सुप्रीम कोर्ट की 16 बिंदुओं की गाइडलाइन्स ही काफी
  • कोई भी मौत शुरुआत में मानी जाएगी हत्या
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