China-Tibet and America: अमेरिका की पूर्व हाउस स्पीकर नैंसी पेलोसी समेत 7 सांसदों का डेलिगेशन 2 दिन के भारत दौरे पर है. इन सभी ने धर्मशाला में तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा से मुलाकात की है. इस दौरान इन्होंने तिब्बत की आजादी के पक्ष में आवाज बुलंद है. नैंसी पेलोसी का ये दौरा अमेरिका और चीन के बीच तनाव को भड़का सकता है. ऐसे में पेलोसी की दलाई लामा से मुलाकात, तिब्बत की आजादी की बात और चीन-अमेरिका तनाव के भारत के लिए क्या मायने हैं. वर्तमान परिदृश्य से क्या भारत के तिब्बत को लेकर रूख में बदलाव आएगा.
चीन पर किया तीखा प्रहार
अमेरिकी कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल ने चीन पर तिब्बत को लेकर तीखा प्रहार किया है. नैंसी पेलीसी ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को तिब्बत के मसले पर आइना दिखाया है. नैंसी पेलोसी ने कहा, 'दलाई लामा की विरासत हमेशा जीवित रहेगी, लेकिन चीनी राष्ट्रपति कुछ सालों में चले हैं, कोई भी शी को किसी भी चीज का क्रेडिट नहीं देगा.' वहीं, इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल ग्रेगरी मीक्स ने कहा कि, 'चीन चाहे तो अपनी नाखुशी जाहिर कर सकता है. हम जो सही है, उसके पक्ष में खड़े होंगे. सही यह है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि तिब्बतियों को आजादी मिले.'
पेलोसी के दौरे से भड़का चीन
नैंसी पेलोसी के दलाई लामा से मुलाकात पर चीन भड़का हुआ है. साऊथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की खबर के अनुसार, चीन ने नैंसी पेलोसी सहित दलाई लामा से मिलने के लिए सांसदों की भारत यात्रा पर अमेरिका को चेतावनी दी. उसने कहा कि अगर वाशिंगटन तिब्बत को चीन का हिस्सा मानने के अपने कमिटमेंट का सम्मान नहीं करता है, तो वह 'कठोर कदम' उठाएगा. चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने दलाई लामा को अलगाववादी बताया.
भारत के लिए क्या मायने?
तिब्बत को लेकर नैंसी पेलेसी की दलाई लामा से मीटिंग पर दुनियाभर की निगाहें टिकी रहीं. चूंकि ये मुलाकात भारत में हुई है, जिसके असर से देश अछूता नहीं रह सकता है. अगर तिब्बत पर भारत के रुख की बात करें तो 2003 में राज्य सभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में विदेश मंत्रालय में तत्कालीन राज्य मंत्री विनोद खन्ना ने बताया था कि 'भारतीय पक्ष यह मानता है कि तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के क्षेत्र का हिस्सा है.' हालांकि भारत वहां से निर्वासित दलाई लामा समेत हजारों तिब्बतियों को शरण देता है.
दलाई लामा से भारत के साथ रिश्तों पर चीन आपत्ति जताता रहा है. उसकी ये आपत्ति भारत को लेकर ही नहीं बल्कि जो भी देश या नेता दलाई लामा से संबंध रखने की कोशिश करता है, तो चीन का गुस्सा भड़क जाता है. तिब्बत में हिंसक घटनाओं के बाद 1959 में जब दलाई लामा ने भारत में शरण ली थी तब भी चीन को ये बात पसंद नहीं आई थी. कहा जाता है कि 1962 के भारत-चीन युद्ध की एक बड़ी वजह ये भी थी. दलाई लामा आज भी भारत में रहते हैं. हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला से तिब्बत की निर्वासित सरकार चलती है.
भारत-चीन विवाद में 'तिब्बत फैक्टर'
भारत चीन सीमा विवाद की जड़ में 'तिब्बत फैक्टर' अहम है. असल में भारत और चीन के बीच विवाद दो बड़े क्षेत्रों लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश को लेकर है. चीन का कहना है कि अरुणाचल प्रदेश 'दक्षिणी तिब्बत' का हिस्सा है. हालांकि भारत चीन के इस दावे को सिरे से खारिज करता है. भारत अरुणाचल प्रदेश को अपना अभिन्न अंग बताता है. जब भी दलाई लामा अरुणाचल प्रदेश जाते हैं, तो चीन अपनी नाराजगी जताता है. ऐसे ही नाराजगी उसने पीएम मोदी के अरुणाचल प्रदेश के दौरे पर जताई थी. हालांकि भारत ने चीन को करारा जवाब दिया था.
'जैसे को तैसा' वाली पॉलिसी
नैंसी पेलोसी के दलाई लामा से मिलने और चीन-अमेरिका तनाव से भारत की तिब्बत की नीति में कोई बदलाव आएगा. अभी ये कहना जल्दबादी होगा. हालांकि बीते कुछ सालों में मोदी सरकार में ऐसे कदम उठाए गए, जिनसे चीन को ये संदेश दिया गया कि अगर वो संवेदनशील विषयों पर भारत को ठेस पहुंचा सकता है, तो भारत भी ठीक वैसा ही कर सकता है. ऐसा हाल ही में भी दिखा जब दिखा चीन ने अरुणाचल प्रदेश में कुछ इलाकों के नाम बदले. भारत ने भी चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में दो दर्जन से अधिक स्थानों का नाम बदलने का ऐलान कर दिया.
जब मोदी ने चला 'तिब्बत कार्ड'
भारत के दलाई लामा और केंद्रीय तिब्बतन प्रशासन के साथ संबंध बनाए रखना चीन के लिए हमेशा परेशानी का सबब रहा है. इसने भारत को 'तिब्बत कार्ड' दिया है, जिसका इस्तेमाल भारत बीजिंग के साथ अपने संघर्ष में समय-समय पर करते हुए दिखता है. द डिप्लोमेट की रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने अतीत में कई बार तिब्बत कार्ड खेला है फिर चाहे अरुणाचल प्रदेश के तवांग में दलाई लामा को इजाजत देने की बात हो या फिर डोकलाम विवाद के समय सांगेय (Sangay) को विवादित चीन-भारतीय सीमा के पश्चिमी क्षेत्र में लद्दाख के पैंगोंग त्सो (Pangong Tso) में तिब्बती ध्वज फहराने की अनुमति देना हो.
भारत-चीन विवाद में तिब्बत को देखें तो दलाई लामा से नैंसी पेलोसी का मिलना भारत के लिए सकारात्मक कदम के रूप में देखा जाना चाहिए, क्योंकि क्षेत्रीय भूराजनीति संतुलन बढ़ेगा. यह भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक हित्तों को मजबूत कर सकता है. तिब्बत पर अमेरिका के इस रुख का चीन को कड़ा संदेश जाता है कि उसकी विस्तारवादी नीति का कड़ा जवाब दिया जाएगा. कहीं न कहीं अमेरिका का इस कदम से चीन पर दबाव बढ़ेगा.
Source : News Nation Bureau