अमेरिका के वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद यानी रियल जीडीपी (Gross Domestic Product) में वित्तीय वर्ष 2022 के दूसरे क्वार्टर अप्रैल से जून महीने में 0.9 फीसदी की वार्षिक दर से गिरावट दर्ज की गई है. इसके साथ ही अमेरिका में आर्थिक मंदी ( Recession in America ) की आशंका काफी तेज हो गई है. अमेरिकी ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक एनालिसिस की ओर से बृहस्पतिवार देर रात जारी आंकड़ों के मुताबिक इससे पहले साल 2022 के जनवरी से मार्च यानी पहली तिमाही में अमेरिका की जीडीपी में 1.6 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी.
ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक एनालिसिस ने अपने एक स्टेटमेंट में बताया है कि रियल जीडीपी में गिरावट प्राइवेट इन्वेंट्री निवेश में कमी, रेसिडेंशियल फिक्स्ड इन्वेंस्टमेंट, फेडरल गवर्मेंट के खर्चे, राज्य और स्थानीय सरकारों के खर्चे और नॉन रेशिडेंशियल फिक्स्ड निवेश और आंशिक रूप से निर्यात और व्यक्तिगत उपभोग में खर्च की बढोतरी वगैरह को दिखाते हैं. अमेरिका के वाणिज्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक फेडरल रिजर्व की तमाम कोशिशों के बावजूद अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी में पहुंच चुकी है.
25 अगस्त को होगी आंकड़ों की समीक्षा
अमेरिका में रियल जीडीपी में लगातार दूसरे क्वार्टर में गिरावट दिखाने वाले ये आंकड़े अनुमानित आधार पर जारी किए गए हैं. इकोनॉमिक एनालिसिस एजेंसी इस साल 25 अगस्त को इन आंकड़ों की समीक्षा करेगी. वहीं, अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के जानकारों का कहना है कि रियल जीडीपी में लगातार दो क्वार्टर में गिरावट दिखना साफ तौर पर मंदी का इशारा करता है. ऐसी आर्थिक परिस्थिति को तकनीकी रूप से मंदी की श्रेणी में रखा जाता है. ऐसे में अमेरिकी अर्थव्यवस्था अनऑफिशियली मंदी में प्रवेश कर चुकी है. एक सर्वे में बताया गया कि 65 फीसदी अमेरिकी पहले ही मंदी में जाने की बात स्वीकार कर चुके हैं.
राष्ट्रपति बाइडेन ने मंदी से किया इनकार
अमेरिका में आधिकारिक तौर पर मंदी का फैसला एक गैर सरकारी संगठन नेशनल ब्यूरो ऑफ इकनॉमिक रिसर्च करता है. इसके आठ सदस्य सभी आर्थिक कारकों और आंकड़ों को देखने के बाद मंदी की आधिकारिक घोषणा करते हैं. इससे पहले अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बीते दिनों देश के आर्थिक मंदी की ओर बढ़ने से साफ इनकार कर दिया था. उन्होंने कहा था कि विकास की दर थोड़ी धीमी जरूर पड़ सकती है पर ऐसा कहना गलत होगा कि हम मंदी की ओर बढ़ रहे हैं.
42 साल में सबसे ज्यादा महंगाई का दौर
बाइडेन और उनके सहयोगियों ने दावा किया था कि उनके विचार में अमेरिका में रोजगार दर अब भी इतिहास में सबसे अधिक है और देश को निवेशक भी लगातार मिल रहे हैं. इसके उलट अमेरिका आर्थिक विकास दर में कमी के साथ ही पिछले चार दशकों ( 42 साल ) में सबसे अधिक महंगाई के दौर से जूझ रहा है. बढ़ी हुई महंगाई दर से निपटने और अर्थव्यवस्था में मांग घटाने के लिए यूएस फेडरल ओपन मार्केट कमिटी ने इस सप्ताह की शुरुआत में ब्याज दरों को 75 बेसिस प्वाइंट तक बढ़ाने का फैसला किया था.
तीसरी तिमाही में भी राहत के आसार नहीं
फेडरल रिजर्व ने भी महंगाई को थामने के लिए जून-जुलाई में 1.50 फीसदी ब्याज दर बढ़ा दिया है. इससे आने वाले समय में कर्ज और महंगा होगा. लोग खर्च कम करेंगे और निवेश भी घट जाएगा. इसका सीधा असर अमेरिका की विकास दर पर पड़ेगा. आशंका है कि लगातार तीसरी तिमाही में भी अमेरिका की विकास दर शून्य से नीचे रह सकती है. अमेरिकी अर्थव्यवस्था आगे भी सुस्त विकास दर के दबाव में दिख रही है. इसका असर दुनिया के अन्य देशों पर भी देखने को मिल सकता है.
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अमेरिका में मंदी का भारत पर कैसा असर
दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने की वजह से अमेरिका की हालत का असर भारत भी साफ तौर पर देखने को मिल सकता है. मंदी का सबसे ज्यादा असर पहले से ही प्रभावित ग्लोबल सप्लाई चेन पर होगा. यूरोपीय देशों का आयात भी अमेरिका पर निर्भर करता है. भारत सहित दुनियाभर के देश तमाम उत्पादों के लिए अमेरिका पर निर्भर करते हैं. भारत की आईटी कंपनियों को इसका सबसे ज्यादा खामियाजा भुगतना पड़ेगा. हालांकि, भारत अपने विशाल उपभोक्ता बाजार और विनिर्माण और उत्पादन की लंबी शृंखला की बदौलत आसानी से इसका सामना कर लेगा.
HIGHLIGHTS
- फेडरल रिजर्व की तमाम कोशिशों के बावजूद मंदी में अमेरिकी अर्थव्यवस्था
- महंगाई के चलते US Economy अनऑफिशियली मंदी में प्रवेश कर चुकी है
- सर्वे में 65 फीसदी अमेरिकी लोग मंदी में होने की बात स्वीकार कर चुके हैं