अमेरिका की वरिष्ठ नेता नैन्सी पेलोसी ताइवान का दौरा करके वापस जा चुकी हैं. पेलोसी के जाते ही चीन ने ताइवान पर घेरा डाल दिया है. ताइवान से लगते हुए इलाकों में चीनी सेनाओं ने युद्ध अभ्यास शुरू कर दिया है. चीन लगातार मिसाइलें दाग रहा है. हालांकि वो टारगेटेड नहीं हैं. जल, थल और आकाश चीन तीनों ओर से ताइवान पर दबाव बनाए हुए है, जिसको देखकर युद्ध की संभावनाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि अमेरिकी नेता नैन्सी पेलोसी के दौरे से ताइवान को आखिर हासिल क्या हुआ? मतलब, पेलोसी का आना ताइवान के लिए फायदे का सौदा रहा या फिर घाटे का? चर्चा तो इस बात की भी है कि कहीं चीन और ताइवान के बीच भी रूस-यूक्रेन जैसे हालात न बन जाएं. इन सबको लेकर अमेरिका एक बार फिर सवालों के घेरे में है.
अधिकारिक नहीं था नैन्सी पेलोसी का ताइवान दौरा
राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के बाद नैन्सी पेलोसी अमेरिका की तीसरी शक्तिशाली नेता मानी जाती हैं. ऐसे में उनका किसी विदेशी दौरे पर जाना खास महत्व रखता है. खासकर जब वह देश ताइवान रहा हो. लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि पेलोसी का ताइवान दौरा अधिकारिक न होकर निजी था. बताया जा रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और वहां के प्रशासन ने उनको ताइवान जाने से मना किया था. बावजूद इसके पेलोसी अपनी बात पर अटल रही. क्योंकि अमेरिका एक लोकतांत्रिक देश है और व्हाइट हाउस के प्रवक्ता का पद भी स्वतंत्र है. ऐसे में उनको ताइवान न जाने के लिए बाध्य भी नहीं किया जा सकता था.
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वन चाइना पॉलिसी पर अमेरिका का दोहरा स्टैंड
चीन ताइवान को अपना हिस्सा बताता है और वन चाइना पॉलिसी की नीति पर चलता है. चीन का क्लियर स्टैंड है कि वन चाइना वन नेशन सिद्धांत को न मानने वाला कोई भी देश उससे संबंध नहीं रख सकता. आप सोच रहे होंगे कि इस पर दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका का क्या स्टैंड है. हम आपको बता दें कि अमेरिका भी चीन की वन चाइना के सिद्दांत को मानता है. ऐसे में अमेरिका की ताइवान के साथ हमदर्दी या ताइवान के साथ मजबूती के साथ खड़ रहने का दावा उसकी नीति पर सवालिया निशान लगाता है.
पेलोसी के दौरे से ताइवान को क्या मिला
यूं तो चीन पहले से ही ताइवान को लेकर काफी पजेसिव रहा है, लेकिन पेलोसी के ताइवान दौरे ने उसको और ज्यादा आक्रामक बना दिया है. कहें तो पेलोसी के ताइवान पहुंचने से चीन भड़क गया है. वहीं इस बीच पेलोसी की ताइवान विजिट के दौरान न तो कोई एग्रीमेंट साइन किया गया है और न दोनों देशों के बीच किसी तरह की कोई डील ही हुई है. यहां तक कि पेलोसी ने यह तक बोलने से भी परहेज रखा कि अमेरिका ताइवान को सेल्फ डिफेंस के लिए कोई हथियार या डिफेंस सिस्टम मुहैया कराएगा. इस हिसाब से पेलोसी के दौरे से ताइवान के हाथ कुछ बड़ा नहीं लग सका, सिवाय लंबे अरसे बाद किसी बड़े अमेरिकी नेता के ताइवान दौरे के.
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क्या केवल अपना दबदबा कायम करना चाहता था अमेरिका
जैसे कि चीन अमेरिका को बार बार चेता रहा था और पेलोसी के ताइवान पहुंचने पर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दे रहा था. उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कि यह अमेरिका और चीन दोनों के लिए ही प्रतिष्ठा का सवाल बन चुका था. बावजूद इसके अमेरिकी नेता पेलोसी ने अपनी ताइवान यात्रा के कैंसिल नहीं किया, जो चीन के लिए अपमान का घूंट पीने जैसा है. ऐसे में माना जा रहा है कि चीन किसी भी कीमत पर अपना प्रभाव कम नहीं होने देगा और ताइवान से अपने अपमान का बदला ले सकता है.
रूस को चीन के और करीब ला सकता है अमेरिका का यह कदम
रूस और यूक्रेन में पहले से ही युद्ध छिड़ा हुआ है. इस बीच चीन-ताइवान के बीच भी कुछ ऐसे ही हालात बनते नजर आ रहे हैं. वहीं, अमेरिका का यह कदम रूस को चीन के और ज्यादा करीब ला सकता है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि रूस के साथ युद्ध में अमेरिका यूक्रेन की मदद कर रहा. इसके साथ ही अमेरिका और उसके मित्र देशों ने रूस कर कई तरह के आर्थिक व अन्य प्रतिबंध भी लगाए हुए हैं...जाहिर है कि इसको लेकर रूस अमेरिका से खासा नाराज है. ऐसे में अमेरिका अगर चीन के खिलाफ ताइवान का साथ देता है तो रूस को चीन के पाले में आने में ज्यादा देर नहीं लगेगी और महाशक्तियों की बीच की यह जोर आजमाइश पूरी दुनिया के एक और विश्व युद्ध में धकेल सकती है.
Source : Mohit Sharma