तारीख 26 जुलाई, साल 1999... जब 16 हजार 500 फीट की ऊंचाई पर, सर्द की गिरफ्त में वो रात, धड़ाधड़ चलती गोली-बारियों से तपीश पैदा कर रही थी. यहां पर्वतों पर सवार हमारे जाबांज जवान अदम्य साहस का परिचय देते हुए पाकिस्तानियों को रौंदने के लिए लगातार आगे बढ़ रहे थे. बीते करीब 60 दिनों से सैकड़ो भारतीय सैनिकों के पराक्रम का चश्मदीद रहा कारगिल, आज इस महायुद्धा की आखिरी रात का साक्षी होने जा रहा था. आज की रात, हमारे भारतीय सैनिकों की वीरगाथाएं कारगिल की फिजाओं से होते हुए देश के एक-एक नागरिग के जहन में हमेशा-हमेशा के लिए राज करने वाली थी... ये कहानी थी पहले पलटवार की, पहली जीत की, चोटी पर लहराते पहले तिरंगे की, ये कहानी थी कारगिल की...
इसकी शुरुआत होती है, साल 1998 की सर्दियों से जब श्रीनगर-कारगिल-लेह राजमार्ग के ऊंचे इलाकों पर पाकिस्तानी घुसपैठिए नियंत्रण रेखा पार कर भारत में दाखिल हो जाते हैं. जब भारत के शूरवीर सैनिकों को पाकिस्तानियों के नापाक मनसूबों की भनक लगती है, तो उन्हें नाकामयाब करने के लिए शुरुआत होती है 'ऑपरेशन विजय' की, जिसमें हमारे कई बहादुर जवानों ने देश की मिट्टी के नाम अपनी आखिरी सांस कुर्बान कर दी, मगर जमीन से हजारों फीट ऊपर करगिल की चोटियों पर तिरंगा लहरा दिया.
The Lahore Declaration
8 मई से 26 जुलाई 1999, तक चले इस युद्ध की बुनियाद थी साल 1990 में कश्मीर में हुए अलगाववादियों की नापाक हरकतें, जिसके चलते कश्मीर में कत्लेआम की कई दर्गदनाक तस्वीरें सामने आई. भारत का मालूम चला कि इसके पीछे पाकिस्तान का हाथ है, जो इन अलगाववादियों को वित्त पोषित कर रहा है. इसी के मद्देनजर साल 1999 के फरवरी महीने में, भारत और पाकिस्तान के बीच शांतिपूर्ण द्विपक्षीय समाधान के लिए The Lahore Declaration पर हस्ताक्षर किए गए, मगर बावजूद इसके कश्मीर की वादियों में पाकिस्तान ने अपनी नापाक हरकतें जारी रखी.
तो शायद हम कश्मीर खो बैठते...
भारत को पता चला कि पाकिस्तानी सशस्त्र बलों के कुछ अर्धसैनिक मुजाहिदीन के साथ मिलकर भारत में गुप्त रूप से प्रशिक्षण ले रहे हैं. उनका मकसद था कश्मीर और लद्दाख के बीच संपर्क खत्म कर भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर छोड़ने के लिए मजबूर करना. कहा जाता है कि अगर वो ऐसा करने में सफल होते, तो शायद हम कश्मीर खो बैठते.
इसी के मद्देनजर शुरुआत हुई 'ऑपरेशन विजय' की, जिसमें हमारी सेना ने पाकिस्तानियों के नापाक मनसूबो को नाकामयाब कर, उन्हें खदेड़ लिया. 'ऑपरेशन विजय' बेहद ही भीषण था, हमारे कई सैनिक शहीद हुई, कई मासूमों की जानें गई, कई लोग हताहात हुए और देश को भी काफी नुकसान हुआ. बावजूद इसके हमने डटे रहे और आखिरकार 26 जुलाई 1999 को पाकिस्तानी घुसपैठियों को मार भगाया, साथ ही करगिल की चोटियों पर एक बार फिर तिरंगा लहराया.
Source : News Nation Bureau