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Explainer: क्या है बांग्लादेश का कोटा सिस्टम, जिसकी आग में जल रहा देश?

बांग्लादेश दंगों की आग में जल रहा है. पूरा विवाद 1971 की जंग लड़ने वाले सैनिकों के बच्चों को मिलने वाला आरक्षण खत्म करने की मांग को लेकर है. आइए जानते हैं बांग्लादेश में कोटा सिस्टम क्या है?

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Ajay Bhartia
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Bangladesh

आरक्षण की आग, सुलगता बांग्लादेश?( Photo Credit : Social Media)

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Bangladesh Quota System: भारत का पड़ोसी देश बांग्लादेश दंगों की आग में जल रहा है. वहां एक हफ्ते से प्रदर्शनकारी छात्र हिंसक प्रदर्शन कर रहे हैं. छात्रों ने शेख हसीना सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. हिंसा में अबतक 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है, जबकि 3000 से ज्यादा घायल बताए जा रहे हैं. बांग्लादेश में हालात बेकाबू हैं. कर्फ्यू लगा दिया गया. सेना को उतार दिया गया है, लेकिन बवाल थम नहीं रहा है. पूरा विवाद 1971 की जंग लड़ने वाले सैनिकों के बच्चों को मिलने वाला आरक्षण खत्म करने की मांग को लेकर है. आइए जानते हैं कि बांग्लादेश में कोटा सिस्टम क्या है, जिसकी आग में देश जल रहा है.

बांग्लादेश में ठप हुई कई सेवाएं

हिंसक प्रदर्शनों के चलते बांग्लादेश में हालात बदतर होते जा रहे हैं. वहां बस-ट्रेन और मेट्रो सेवा ठप हो गई हैं. हिंसा बढ़ने से रोकने के लिए सरकार ने मोबाइल इंटरनेट बंद कर दिया है. स्कूल, कॉलेज और मदरसे अनिश्चितकाल तक के लिए बंद कर दिए गए हैं. पूरे देश में कर्फ्यू लगा दिया गया. वहीं बांग्लादेश में हिंसा के बाद 500 से ज्यादा भारतीय लौट आए हैं, लेकिन अभी सैकड़ों लोग फंसे हुए हैं. वो भी स्वदेश लौटने की तैयारी में जुटे हुए हैं. यह सब बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों के लिए कोटा सिस्टम के कारण है.

किस वजह से शुरू हुए विरोध प्रदर्शन?

जून में बांग्लादेशी हाईकोर्ट ने सरकारी नौकरियों के लिए विवादस्पद कोटा सिस्टम को बहाल किया. इस फैसले ने शेख हसीना सरकार के 2018 के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें इस कोटा सिस्टम को खत्म करने को कहा गया था. इसके बाद राजधानी ढाका समेत कई हिस्सों में छात्र सड़कों पर उतर आए. मौजूदा समय में भी बांग्लादेश में आरक्षण के खिलाफ हिंसक आंदोलन हो रहा है. जगह-जगह हिंसा, आगजनी, फायरिंग और पथराव की घटनाएं देखने को मिल रही हैं.

सुप्रीम कोर्ट पहुंचा पूरा मामला 

बंग्लादेश में मचे इस बवाल के बीच कोटा सिस्टम विवाद का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. शेख हसीना सरकार ने इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में एक अपील दायर की. 10 जुलाई को बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी. मामले में 7 अगस्त को अगली सुनवाई होनी है. 

फिर क्यों बढ़ गया बांग्लादेश में तनाव?

सुप्रीम कोर्ट की ओर से अस्थायी तौर पर सरकारी नौकरियों में आरक्षण सिस्टम पर रोक लगाने के बाद भी बांग्लादेश में तनाव कम नहीं हुआ. इसमें पीएम शेख हसीना के उस बयान ने आग में घी की तरह काम किया, जिसमें उन्होंने प्रदर्शनकारियों को 'रजाकार' कहा. बांग्लादेश में इस शब्द को अपमानजनक माना जाता है, क्योंकि इसे 1971 के युद्ध में पाकिस्तान का साथ देने वाले लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. पीएम हसीना के बयान को आंदोलनकारी छात्रों ने अपना नारा बना लिया. इसके बाद बांग्लादेश की सभी सड़कें छात्रों द्वारा लगाए जा रहे नारे 'तुम कौन हो? मैं कौन हूं? रजाकार... रजाकार...' गूंज उठीं.

विरोध प्रदर्शन के हिंसक होने की वजह?

कोटा सिस्टम के समर्थन और उसके विरोध में छात्रों के अलग-अलग गुटों में टकराव होने के चलते प्रदर्शन हिंसक हो गया और फिर दंगे भड़क गए. ये झड़पें कोटा विरोधी प्रदर्शनकारी छात्रों और पीएम हसीना की अवामी लीग पार्टी की स्टूडेंट विंग 'बांग्लादेश छात्र लीग' के छात्रों के बीच हुईं. प्रदर्शनकारी छात्रों का आरोप है कि 'बांग्लादेश छात्र लीग' के समर्थकों ने उन पर हमला किया. इमारतों से उनके सिर पर पत्थर फेंके, जिससे प्रदर्शनकारी छात्रों को काफी गंभीर चोटें भी आईं. वहीं पुलिस ने भी प्रदर्शनकारी छात्रों के खिलाफ शख्स एक्शन लिया. पुलिस ने उनको तितर-बितर करने के लिए रबर की गोलियां चलाईं. 

पुलिस ने प्रदर्शनकारी छात्रों को हटाने के लिए साउंड ग्रेनेड और आंसू गैस का भी इस्तेमाल किया. पुलिस की ये कार्रवाई प्रदर्शनकारी छात्रों के उग्र होते प्रदर्शन को काबू करने की दिशा में गई. प्रदर्शनकारी छात्रों ने कई रेलवे ट्रैक और प्रमुख सड़कों को रोक रखा था. देश में यातायात पूरी तरह से ठप हो गया. लोग कहीं भी आ जा नहीं पा रहे थे. इसी बीच आगजनी, पथराव और गोलीबारी की घटनाओं ने तनाव को चरम पर पहुंचा दिया.

बांग्लादेश का कोटा सिस्टम

अब आइए बांग्लादेश के उस कोटा सिस्टम को समझने की कोशिश करते हैं, जिसकी वजह वहां हिंसक प्रदर्शन और दंगे भड़के हुए हैं. दरअसल, 1971 में पाकिस्तान से आजादी की जंग लड़ने वालों को बांग्लादेश में वॉर हीरो कहा जाता है. देश में 30 फीसदी सरकारी नौकरियां इन वॉर हीरो के बच्चों के लिए आरक्षित हैं. इसी आरक्षण को खत्म करने की मांग को लेकर छात्र आंदोलित हैं. इनके अलावा भी कुछ अन्य तरह के आरक्षण दिए जाने के बाद कोटे का पूरा आंकड़ा 56 फीसदी हो जाता है.

1972 से वहां कोटा सिस्टम लागू किया गया था. तब से इसमें कई बार बदलाव किए गए. 2019 तक 56% सरकारी नौकरियां अलग-अलग कोटा के तहत आरक्षित थीं. इस सिस्टम के तहत फर्स्ट और सेकंड क्लास की 44% सरकारी नौकरियां योग्यता के आधार पर हैं. अब आइए जानते हैं कि 56% कोटा सिस्टम के अंतर्गत कौन-कौन आता है. इसमें 30% स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चे और पोते-पोतियां, 10% महिलाएं, 10% 'पिछड़े' जिलों के लिए 'जिला कोटा', 5% जातीय अल्पसंख्यक और 1% शारीरिक रूप से विकलांग लोग शामिल हैं.

प्रदर्शनकारी छात्रों की क्या है मांग?

प्रदर्शनकारी छात्र अब जातीय अल्पसंख्यकों और विकलांगों के लिए कोटा को छोड़कर इन सभी कोटा को हटाने की मांग कर रहे हैं. इसका मतलब है कि वे 56% में से 50% आरक्षण को हटाने की मांग कर रहे हैं.

पीएम हसीना ने क्या कहा?

प्रधानमंत्री शेख हसीना प्रदर्शनकारी छात्रों से शांति बनाए रखने की अपील की है. उन्होंने कहा कि वो हिंसा की निंदा करती हैं. प्रदर्शनकारी छात्रों को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक धैर्य रखना चाहिए. कानून मंत्री ने कहा कि सरकार प्रदर्शनकारी छात्रों से बात करना चाहती है, लेकिन वो इसके लिए तैयार नहीं हैं. वहीं, प्रदर्शनकारी छात्रों का तर्क है कि गोलीबारी और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकती है. अब देश बेसब्री से सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहा है. लेकिन आशंका जताई जा रही है कि विरोध प्रदर्शन तब तक नहीं रुकेंगे जब तक कोटा सिस्टम को रद्द नहीं कर दिया जाता.

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Source : News Nation Bureau

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