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Explainer: क्या है चीन-तिब्बत विवाद, 74 साल से बदस्तूर है जारी, जानिए दलाई लामा से इतना क्यों चिढ़ता है ड्रैगन

1950 के दशक के आखिर से शुरू हुआ दलाई लामा और चीन के बीच विवाद अब तक खत्म नहीं हुआ है. आइए जानते हैं कि चीन-तिब्बत विवाद क्या है, और दलाई लामा से चीन इतना क्यों चिढ़ता है.

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Ajay Bhartia
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Dalai Lama and Xi Jinping

दलाई लामा से इतना क्यों चिढ़ता है चीन( Photo Credit : Social Media)

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China-Tibet Dispute: अमेरिकी सांसदों के धर्मशाला दौरे से तिब्बत पर चीन के कब्जे को लेकर फिर चर्चा शुरू हो गई है. सवाल ये है कि खुद बौद्ध बहुल होने के बाद भी चीन तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा से क्यों चिढता है. दरअसल चीन और तिब्बत के बीच विवाद बरसों पुराना है. चीन कहता है कि तिब्बत तेरहवीं शताब्दी में उसका हिस्सा रहा है इसलिए तिब्बत पर उसका हक है. तिब्बत चीन के इस दावे को खारिज करता रहा है.

चीन ने किया तिब्बत पर आक्रमण 

1912 में तिब्बत के 13वें धर्मगुरु दलाई लामा ने तिब्बत को स्वतंत्र घोषित कर दिया था. 1933 में उनके निधन के बाद चीन ने तिब्बत को कब्जाने की नई चाल चलना शुरू कर दिया. सितंबर 1949 में, कम्युनिस्ट चीन ने बिना किसी उकसावे के पूर्वी तिब्बत पर आक्रमण कर दिया. इसके बाद कई महीनों तक तिब्बत पर चीन का कब्जा चलता रहा. 

आखिरकार 1951 में तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने 17 बिंदुओं वाले एक समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए.  इस समझौते के बाद तिब्बत आधिकारिक तौर पर चीन का हिस्सा बन गया. हालांकि तिब्बत इस संधि को नहीं मानता. उसका कहना है कि ये संधि दबाव बनाकर करवाई गई थी. 

चीन के कब्जे के खिलाफ तिब्बती लोग

तिब्बती लोगों का मानना है कि चीन ने अवैध तरीके से उसके इलाके पर कब्जा जमाया हुआ है. इसी कारण तिब्बती लोगों में चीन के खिलाफ गुस्सा बढ़ने लगा. 1955 के बाद से पूरे तिब्बत में चीन के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन होने लगे. इसी दौरान पहला विद्रोह हुआ जिसमें हजारों लोगों की जान गई. 

मार्च 1959 में खबर फैली कि चीन दलाई लामा को बंधक बनाने वाला है. इसके बाद हजारों की संख्या में लोग दलाई लामा के महल के बाहर जमा हो गए. आखिरकार एक सैनिक के वेश में दलाई लामा तिब्बत की राजधानी ल्हासा से भागकर भारत पहुंचे. भारत सरकार ने उन्हें शरण दी. दलाई लामा आज भी भारत में रहते हैं. हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला से तिब्बत की निर्वासित सरकार चलती है.

दलाई लामा को अलगावदी मानता है चीन

1950 के दशक के आखिर से शुरू हुआ दलाई लामा और चीन के बीच विवाद अब तक खत्म नहीं हुआ है. चीन दलाई लामा को अलगाववादी मानता है और उन्हें अपनी संप्रभुता के लिए खतरा बताता है. यही वजह है कि दलाई लामा से जब भी कोई विदेश मंत्री मिलता है या जब वो किसी देश की यात्रा पर जाते हैं, तो चीन आधिकारिक बयान जारी कर इस पर आपत्ति जताता है.

2010 में जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा व्हाइट हाउस में दलाई लामा से मिलें थे, तो चीन नाराज हो गया था. उसने चेताया था कि इससे चीन-अमेरिका संबंधों को गंभीर नुकसान होगा. जब एक बार जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने तिब्बती नेता से मुलाकात की थी, तब चीन ने महीनों तक जर्मनी को नजरअंदाज किया था. फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी की दलाई लामा से मुलाकात के बाद भी यूरोपीय संघ और चीन के बीच संबंध थोड़े समय के लिए खराब हो गए थे. 

यानी चीन दलाई लामा को अपना दुश्मन मानता है. जो भी दलाई लामा से मिलता है, चीन उसके खिलाफ नजरे डेढ़ी कर लेता है. अब अमेरिका खुलकर तिब्बत के सथ खड़ा हो गया है, जाहिर है इससे दोनों देशों में तनाव और बढ़ेगा. हालांकि इस बार अमेरिका पूरी तरह से तैयार है और चीन की घेराबंदी करने की पूरी कोशिश कर रहा है. 

Source : News Nation Bureau

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