Explainer: क्या है इंटरनेशनस स्पेस स्टेशन, जहां 5 सप्ताह से फंसी हुई हैं सुनीता विलियम्स, जानिए- कितना सेफ?

एस्ट्रोनॉट सुनीता विलियम्स करीब 5 सप्ताह से इंटरनेशनस स्पेस स्टेशन (ISS) पर फंसी हुई हैं. स्पेसक्राफ्ट में खराबी के कारण उनकी वापसी बार-बार टल रही है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि ISS कितना सेफ है.

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Ajay Bhartia
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Sunita

Sunita Williams( Photo Credit : NASA)

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Sunita williams news: भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स करीब 5 सप्ताह से इंटरनेशनस स्पेस स्टेशन (ISS) पर फंसी हुई हैं. स्पेसक्राफ्ट में खराबी के कारण सुनीता विलियम्स की वापसी बार-बार टल रही है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि ISS कितना सुरक्षित है, इसमें अंतरिक्ष यात्रियों के लिए क्या-क्या इंतजाम किए गए हैं और क्या इसमें लंबे वक्त तक रूका जा सकता है. आइए इस एक्सप्लेनर में इन सवालों का जवाब जानते हैं.

एस्ट्रोनॉट सुनीता विलियम्स अब भी ISS पर फंसी हुई हैं. सुनीता विलियम्स ने साथी अंतरिक्ष यात्री बुच विल्मोर के साथ 5 जून 2024 को स्टारलाइनर स्पेसक्राफ्ट से स्पेस के लिए उड़ान भरी थी. तय कार्यक्रम के मुताबिक, उन्हें स्पेस स्टेशन में 8 दिन रुकना था और 13 जून को वापस पृथ्वी पर आना था, लेकिन उनके स्पेसक्राफ्ट स्टारलाइनर में तकनीकी खराबी आ गईं. अब नासा और बोइंग तकनीकी खामियां दुरुस्त करने की कोशिश में जुटे हैं, इसलिए सुनीता विलियम्स और उनके साथी करीब 5 सप्ताह से ISS पर फंसे हुए हैं. दोनों अंतरिक्ष यात्रियों के लिए वीरान अंतरिक्ष में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन ही इकलौता सहारा है.

क्या है इंटरनेशनस स्पेस स्टेशन?

दरअसल अंतरिक्ष की दुनिया के रहस्यों को जानने के लिए एस्ट्रोनॉट्स स्पेस मिशन पर जाते हैं. वो जितने दिन अंतरिक्ष में बिताते हैं, ISS पर ही रहते हैं, जिसे खासतौर पर इंसानों की सुविधाओं का ख्याल रखते हुए ही बनाया गया है. 

- ISS के निर्माण में लगभग 120 बिलियन डॉलर का खर्चा आया है. स्पेस स्टेशन 357 फीट में बना हुआ है, जो एक फुटबॉल मैदान से भी बड़ा है. इसका वजन 4 लाख 20 हज़ार किलोग्राम है, जो 320 कारों के वजन के बराबर है.

- ISS में 5 बेडरूम, 2 बाथरूम, एक जिम, बड़ी खिड़की है. स्पेस स्टेशन पर पृथ्वी जैसा वातावरण बनाए रखने के लिए खास इंतजाम किए गए हैं.

- ISS में एक किचन एरिया भी है, लेकिन अंतरिक्ष यात्रियों को धरती से सप्लाई होने वाले खाने पर ही निर्भर रहना पड़ता है. खाना तो धरती से जाता है, लेकिन सवाल ये है कि अंतरिक्ष यात्रियों को पानी की सप्लाई कहां से होती है और ISS में ऑक्सीजन कैसे बनती है. 

- खास बात ये है कि ISS के अंधेरे वाले हिस्से में -128 डिग्री सेल्सियम तो उजाले वाले हिस्से में 93 डिग्री सेल्सियस तापमान रहता है. ऐसे में स्टेशन के अंदर तापमान को कंट्रोल करने के लिए हीटर, इंसुलेशन और अन्य तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है.

- ISS 28 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी के चारों तरफ दौड़ता है. इसका मतलब है कि ये स्टेशन हर 90 मिनट में पृथ्वी का एक चक्कर लगा लेता है. यानी स्पेस स्टेशन में मौजूद अंतरिक्ष यात्री को 24 घंटे में 16 सूर्योदय और सूर्यास्त देखने को मिलता है. 

- स्पेस में माइक्रोग्रेविटी के कारण कचरा, गंदगी और मलबा जमीन पर फैलने के बजाए हवा में तैरने लगता है. इसीलिए कचरे को बैग में इकट्ठा करके सप्लाई स्पेसक्राफ्ट में रखा जाता है और धरती पर वापस लाया जाता है.

- माइक्रोग्रेविटी के कारण नहाना भी आसान नहीं होता, क्योंकि नल खोलने पर पानी नीचे गिरने के बजाए हर दिशा में उड़ने या तैरने लगता है. खाना खाते वक्त भी इसी तरह की चुनौती का सामना करना पड़ता है क्योंकि स्पेस में कोई छत या जमीन नहीं होती.

ISS पर अंतरिक्ष यात्री नहाते और सोते कैसे हैं?

एस्ट्रोनॉट्स के लिए इतने इंतजामों के बावजूद अंतरिक्ष में रहना किसी चुनौती से कम नहीं होता. माइक्रोग्रेविटी अंतरिक्ष में सबसे बड़ी चुनौती होती है. स्पेस में ग्रेविटेशनल फोर्स ना होने से अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर पर कई विपरीत प्रभाव भी पड़ते हैं. इस कारण उन पर कई बीमारियों का शिकार होने का खतरा बढ़ता जाता है. जानकारों के मुताबिक अंतरिक्ष में माइक्रोग्रैविटी के कारण हृदय से जुड़े कामकाज पर असर पड़ता है. बिना गुरुत्वाकर्षण के पैरों की तरफ रक्त प्रवाह होता है. इससे शरीर के ऊपरी भाग में अधिक रक्त एकत्र होने का अनुभव होता है. इस कारण कार्डियोवैस्कुलर प्रणाली और देखने की क्षमता पर असर पड़ सकता है. 

स्पेस में क्यों होता है हड्डियों को नुकसान?

कुछ अंतरिक्ष यात्री स्पेस मोशन सिकनेस का अनुभव करते हैं. जिसमें जी मचलाने और भटकाव जैसे लक्षण दिखते हैं. हालांकि पृथ्वी पर लौटने के बाद ठीक हो जाते हैं. लंबे वक्त तक स्पेस में रहने के कारण अंतरिक्ष यात्रियों की मसल्स और हड्डियों पर भी असर पड़ता है. क्योंकि अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण न होने से शरीर का भार पैरों पर नहीं पड़ता.

धरती पर भार सहन करने वाली हड्डियां स्पेस में वजन महसूस नहीं करतीं. इसी कारण अंतरिक्ष यात्रा में हड्डियों के सूक्ष्म बोन रॉड पतले हो जाते हैं और कुछ का संपर्क एक-दूसरे से टूट जाता है. जब यात्री धरती पर लौटता है तो बोन रॉड की चौड़ाई बढ़ जाती है, लेकिन जो टूट चुके थे, वो ठीक नहीं हो पाते. इस तरह अंतरिक्ष यात्रियों की हड्डियों की संरचना स्थायी रूप से बदल जाती है. पृथ्वी से पूरी तरह से अलग माहौल के कारण अंतरिक्ष यात्रियों को कई अन्य बीमारियों का शिकार बनने का खतरा रहता है.

अंतरिक्ष यात्री स्पेस में हाई लेवल के रेडिएशन के भी संपर्क में आते हैं, जिसका उनकी सेहत पर असर पड़ता है. धरती से अंतरिक्ष में जाने पर एस्टॉनॉट्स सूर्य के रेडिएशन के अधिक प्रभाव में आ जाते हैं. सूर्य के रेडिएशन के प्रभाव में आने से कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है. इन स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए, अंतरिक्ष एजेंसियां ​​मिशन के दौरान और बाद में कठोर एक्सराइड प्लान, पोषण संबंधी और मेडिकल निगरानी की व्यवस्था लागू करती हैं. 

अंतरिक्ष यात्री जितना ज्यादा वक्त स्पेस में बिताता है. उसकी समस्याएं उतनी ही बढ़ने का खतरा मंडराने लगता है. फिलहाल सुनीता विलियम्स भी ISS पर इन्हीं चुनौतियों से जूझ रही हैं. विपरीत माहौल में रहने के साथ उनकी सेहत से जुड़ी चिंता भी बढ़ रही हैं. उम्मीद है कि चुनौतियों से लड़ने में माहिर सुनीता विलियम्स इस बार भी सभी चुनौतियों को पार करेंगी और जल्द धरती पर लौटेंगी.

Source : News Nation Bureau

Astronaut Sunita Williams International Space Station
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