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Tower of Silence: क्या है ‘टावर ऑफ साइलेंस’, Ratan Tata Death के बाद इंटरनेट पर छाया रहा ये शब्द, जानिए रहस्य

Tower of Silence: देश के मशहूर उद्योगपति रतन टाटा के निधन के बाद सबसे ज्यादा जिस शब्द की इंटरनेट पर चर्चा रही वो है ‘टावर ऑफ साइलेंस’. आइए ये जानते हैं कि ये क्या है और इसका रहस्य क्या है?

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Ajay Bhartia
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Tower of Silence

टावर ऑफ साइलेंस (Wikipedia/British Library)

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Tower of Silence: देश के दिग्गज उद्योगपति का शरीर पर अब पंचतत्व में विलीन हो गया है. वो पारसी समुदाय से आते थे, फिर भी पारसियों के पारंपरिक दखमा की बजाय उनका दाह संस्कार हुआ. हालांकि उनके निधन के बाद सबसे ज्यादा जिस शब्द की इंटरनेट पर चर्चा रही वो है ‘टावर ऑफ साइलेंस’. इसके अंदर गैर पारसियों के जाने की इजाजत नहीं होती, इसलिए अन्य लोगों के लिए एक रहस्य बना हुआ है. आइए जानते हैं कि टावर ऑफ साइलेंस क्या है.

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क्या है ‘टावर ऑफ साइलेंस’  

पारसियों के कब्रिस्तान को दखमा या ‘टावर ऑफ साइलेंस’ का जाता है, जो गोलाकार खोखली इमारत के रूप में होता है. जब किसी पारसी समुदाय के व्यक्ति की मौत होती है, तो उसके शव को नहलाने के बाद ‘टावर ऑफ साइलेंस’ में छोड़ दिया जाता है. इसमें शव को आकाश में दफनाया (Sky Burial जाता है. 

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गिद्धों के लिए छोड़ दिए जाते शव

इसके मायने समझें तो शव के निपटारे के सूरज और माहासारी पक्षियों जैसे गिद्ध आदि के छोड़ दिया जाता है. पारसियों के अंत्येष्टि की इस प्रक्रिया को दोखमेनाशिनी (Dokhmenashini) कहा जाता है, जो तीन हजार साल पुरानी बताई जाती है. टावर ऑफ साइलेंस को पारसी पवित्र स्थान के रूप में मानते हैं. इसके अंदर गैर पारसियों के जाने पर रोक होती है.

पारसियों के अनुष्ठान के प्रमाण सबसे पहले 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य में हेरोडोटस के इतिहास में मिलता है, जो एक प्राचीनी इतिहासकार थे. हेरोडोटस के इतिहास में पारसी अंतिम संस्कार की रस्मों को ‘गुप्त’ बताया गया है. हालांकि बाद के समय में ऐसा नहीं रहा. पारसियों के धर्म ग्रंथ में पृथ्वी (zām), जल (āpas) और अग्नि (ātar) को पवित्र तत्वों माने जाते हैं, इसलिए इनको प्रदूषण को रोकने के लिए पारसियों के शव खुले आकाश में छोड़ दिया जाता है.  

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पारसियों ने बदला अंतिम संस्कार का तरीका

टावर ऑफ साइलेंस के इस्तेमाल का पहला दस्तावेज 9वीं शताब्दी ई की शुरुआत में मिलता है. टावर ऑफ साइलेंस की एक पुरानी तस्वीर कई साइट्स पर मौजूद है. ये तस्वीर 1880 की बताई जाती है, जिसकी दीवार पर बड़ी संख्या में गिद्ध बैठे हुए हैं. वर्तमान में गिद्ध विलुप्त हो चुके हैं, ऐसे में पारसियों का शव का दखमा करना आसान नहीं रहा है, ऐसे में पारसियों अंतिम संस्कार के वैकल्पिक तरीकों को अपनाना शुरू कर दिया है, जिसमें दाह संस्कार करना भी शामिल है.

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