राहुल गांधी (Rahul Gandhi) सहित कांग्रेस नेताओं द्वारा संसद में विपक्षी सांसदों के माइक बंद किए जाने का आरोप लगाने के बाद बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि संसद में माइक्रोफोन बंद कर दिए जाते हैं और उनकी आवाज दबा दी जाती है. लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी (Adhir Ranjan Chowdhury) ने भी स्पीकर ओम बिरला (Om Birla) को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि उनका माइक्रोफोन तीन दिनों के लिए म्यूट कर दिया गया था. उनके आरोपों ने एक सवाल खड़ा कर दिया है कि संसद सदस्यों (MP) के माइक्रोफोन वास्तव में चालू या बंद कौन करता है और प्रोटोकॉल क्या हैं?
सभी सांसदों की संसद में होती है तय सीट
संसद के प्रत्येक सदस्य की एक निर्दिष्ट यानी पहले से तय सीट होती है. माइक्रोफोन डेस्क से जुड़े होते हैं और एक नंबर होता है. संसद के दोनों सदनों में एक कक्ष है जहां साउंड टेक्नीशियन बैठते हैं. ये कर्मचारियों का एक ऐसा समूह हैं जो लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही को लीपिबद्ध करते हैं और रिकॉर्ड करते हैं. कक्ष में सभी सीटों की संख्या के साथ एक इलेक्ट्रॉनिक बोर्ड है. माइक्रोफोन को वहां से चालू या बंद किया जा सकता है. कक्ष का अग्रभाग शीशे का है और वे सभापीठ और सांसदों को बोलते हुए और समग्र सदन की कार्यवाही को देखते हैं. यह निचले सदन के मामले में लोकसभा सचिवालय के कर्मचारियों द्वारा और उच्च सदन के मामले में राज्यसभा सचिवालय के कर्मचारियों द्वारा संचालित होता है.
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सभापति के निर्देश पर नियमानुसार बंद किए जाते हैं माइक्रोफोन
संसद की कार्यवाही को कवर कर चुके विशेषज्ञों और दिग्गज पत्रकारों का कहना है कि माइक्रोफोन को चालू और बंद करने की एक निर्धारित प्रक्रिया है. वे कहते हैं कि केवल स्पीकर ही नियमों के अनुसार माइक्रोफोन को बंद करने का निर्देश दे सकते हैं. संसद की कार्यवाही बाधित होने पर इस शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है. दोनों सदनों में माइक्रोफ़ोन को मैन्युअल रूप से चालू और बंद किया जाता है. डीएमके के राज्यसभा सांसद और जाने-माने वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन कहते हैं, 'माइक्रोफोन राज्यसभा के सभापति के निर्देश पर चालू किए जाते हैं.'
शून्यकाल में मिलता है तीन मिनट का समय
विल्सन कहते हैं, 'शून्यकाल में सदस्य को तीन मिनट का समय दिया जाता है और जब तीन मिनट खत्म हो जाते हैं तो माइक्रोफोन अपने आप बंद हो जाता है. विधेयकों आदि पर वाद-विवाद के मामलों में प्रत्येक पक्ष को समय दिया जाता है. सभापति उस समय और अपने विवेक के अनुसार चलते हैं. जरूरत पड़ने या लगने पर सभापति सदस्य को अपनी बात पूरा करने के लिए एक या दो मिनट का अधिक समय देते हैं. यदि किसी सांसद के बोलने की बारी नहीं है तो उसका माइक बंद हो सकता है. विशेष उल्लेख के मामले में सांसदों के पास 250 शब्दों को पढ़ने की सीमा होती है.' संसद की कार्यवाही को कवर करने वाले एक पत्रकार के अनुसार, 'जैस ही 250 शब्दों की सीमा खत्म होती है कक्ष में कर्मचारियों द्वारा माइक बंद कर दिया जाता है.'
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सांसदों का होता है सीट नंबर
एक विशेषज्ञ के अनुसार, सीटों की संख्या व्यक्तिगत सांसदों के लिए चिह्नित की जाती है और सांसदों से अनुरोध किया जाता है कि वे अपनी निर्धारित सीटों से ही बोलें. विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक समर्पित, अच्छी तरह से प्रशिक्षित कर्मचारी है जो लोकसभा और राज्यसभा में पूरे माइक्रोफोन सिस्टम की देखभाल करता है. वे दिशा-निर्देशों के अनुसार ही कार्य करते हैं.
जब सांसदों की बोलने की बारी नहीं है, तो हम उनकी आवाज कैसे सुनते हैं
पी. विल्सन कहते हैं, 'व्यवधानों के दौरान पूरे विपक्ष की आवाज जोर से सुनाई देती है. अध्यक्ष या सदस्य का अपना माइक्रोफोन भी आवाज उठाता है और इस तरह आवाज सुनाई पड़ती हैं.' केवल सभापति, लोकसभा के मामले में अध्यक्ष और राज्यसभा के मामले में सभापति के पास असाधारण परिस्थितियों में माइक को बंद करने का निर्देश देने का अधिकार है. इस कड़ी में लोकसभा में वरिष्ठ पद पर आसीन एक पूर्व अधिकारी कहते हैं, 'माइक बंद होने के दावे काफी चौंकाने वाले हैं. मुझे यकीन नहीं है कि ऐसा कुछ किया गया है.'
HIGHLIGHTS
- राहुल गांधी ने ब्रिटेन में माइक बंद रहने का बयान दे खड़ा किया विवाद
- विशेषज्ञों का कहना है कि सिर्फ सभापति के पास है माइक अधिकार
- वह भी नियमों के अनुसार ही माइक को ऑन-ऑफ का देते हैं निर्देश