Who is Masoud Pezeshkian: मसूद पेजेश्कियान ईरान के नए राष्ट्रपति होंगे. उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल की है. पेजेश्कियान को अबतक गिने गए तीन करोड़ वोटों में से 53.3% फीसदी वोट मिले हैं. उनकी पहचान एक सुधारवादी नेता के रूप में है. उन्होंने चुनाव में अपने प्रतिद्वंदी सईद जलीली को हराया. जलीली एक कट्टरपंथी नेता हैं, उनको 44.3 फीसदी वोट मिले हैं. इस तरह पेजेश्कियान का ईरान के नए राष्ट्रपति बनने का रास्ता साफ हो गया. इस साल मई महीने में हेलीकॉप्टर दुर्घटना में राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की दुखद मृत्यु के बाद ईरान में चुनाव हुए. आइए जानते हैं कि मसूद पेजेश्कियान कौन हैं और उनके राष्ट्रपति बनने से भारत-ईरान रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा.
ईरान के लिए क्यों खास पेजेश्कियान?
69 वर्षीय मसूद पेजेश्कियान की जीत ईरान के लिए कई मायनों में अहम है. चूंकि वो सुधारवादी नेता हैं, उनका राष्ट्रपति बनना देश में कट्टरपंथ के बढ़ावे पर लगाम लगाएगा. राष्ट्रपति के रूप में पेजेश्कियान पूर्व रईसी की नीतियों, एजेंडा और शासन शैलियों में बदलाव ला सकते हैं, जिससे देश के घरेलू और विदेशी मामलों पर असर जरूर दिखेगा.
इसकी शुरुआत पेजेश्कियान के राष्ट्रपति चुनाव में खड़े होने से ही हो गई थी. उन्होंने जनता से ईरान में एकता, सद्भाव, अनिवार्य हेडस्कार्फ कानून में ढील और व्यावहारिक विदेश नीति और दुनिया से ईरान का अलगाव खत्म करने का वादा किया था. वो देश में मॉरल पुलिसिंग के कड़े आलोचक रहे हैं.
जलीली से कैसे अलग पेजेश्कियान?
पेजेश्कियान के इन वादों ने जनता के दिलो-दिमाग पर गहरा असर छोड़ा. यही वजह है कि लोगों ने दिल खोल कर उनके पक्ष में वोट डाले और कट्टरपंथी नेता सईद जलीली को नकार दिया. हालांकि इससे ये साबित नहीं होता कि सईद जलीली कमजोर नेता है. उनका भी ईरान की राजनीति में काफी दबदबा है. उनको देश के सबसे ताकतवर धार्मिक समुदायों में मजबूत समर्थन हासिल रहा है.
हालांकि, कई अहम मुद्दों पर जलीली की सोच पूर्व राष्ट्रपति रईसी और सर्वोच्च नेता आयातुल्लाह अली खामेनेई के जैसी ही है. जलीली देश की परमाणु नीति को यथास्थिति रखे जाने के पैरोकार हैं. इस मसले पर जैसा कड़ा रूख रईसी का था, वैसा ही वो बनाए रखने के पक्षधर हैं. जलीली पश्चिम विरोधी भी रहे हैं.
पेजेश्कियान की जीत रईसी से कैसे अलग?
पेजेश्कियान की पूर्व राष्ट्रपति रईसी से काफी अलग है, जिन्होंने खामेनेई के सबसे भरोसेमंद के रूप में महिलाओं के लिए सख्त ड्रेस कोड किए. 2022 में जब महिलाओं के पहनावे पर कानून का उल्लंघन करने के आरोप में महसा अमिनी की गिरफ्तारी के बाद हिरासत में उनकी मौत हो गई थी, तब पेजेश्कियान ने महसा अमिनी की मौत के खिलाफ आवाज बुलंद की थी. उन्होंने अधिकारियों से महसा अमिनी की मौत के कारणों को स्पष्ट करने का दबाव बनाया था.
वहीं, रईसी ने न्यूक्लियर डील की बहाली के मसले पर पश्चिमी देशों के साथ किसी भी तरह की बातचीत नहीं करने का रूख अपनाया. हालांकि पेजेश्कियान ऐसा नहीं मानते हैं. उन्होंने 2015 में पश्चिमी देशों के साथ असफल परमाणु समझौते के 'नए सिरे से बातचीत' का आह्वान किया था. इसका मतलब ये होगा कि अगर समझौता होता है तो ईरान पश्चिमी प्रतिबंधों में ढील के बदले अपने परमाणु कार्यक्रम पर अंकुश लगाने के लिए सहमत हो जाएगा.
कौन हैं मसूद पेजेश्कियान
मसूद पेजेश्कियान का जन्म 29 सितंबर 1954 को ईरान के महाबाद (Mahabad) इलाके में हुआ था. उनके पिता अजेरी समुदाय से थे, जबकि मां कुर्दिश थीं. पेजेश्कियान पेशे से हार्ट सर्जन रहे हैं और पूर्व में स्वास्थ्य मंत्री रह चुके हैं. उन्होंने ईरान-इराक युद्ध के दौरान मेडिकल टीम को अग्रिम मोर्चे पर भेजा था. उन्होंने 2013 और 2021 में दो बार राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं पाए. 1994 में एक कार एक्सीडेंट में उनकी पत्नी और बेटी की मृत्यु हो गई, और तब से उन्होंने अपने बाकी तीन बच्चों को अकेले ही पाला है.
पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद खातमी के नेतृत्व वाले सुधारवादी खेमे ने रईसी की मृत्यु के बाद पेजेश्कियान का समर्थन किया. ईरान के शिया धर्मतंत्र को स्वीकार करते हुए पेजेश्कियान ने किसी भी तरह के आमूलचूल परिवर्तन का आश्वासन नहीं दिया और सर्वोच्च नेता खामेनेई को राज्य के मामलों पर अंतिम अधिकार के रूप में मान्यता दी. राष्ट्रपति परमाणु मामलों या मिलिशिया समर्थन पर प्रमुख नीतिगत बदलाव नहीं कर सकते हैं, क्योंकि खामेनेई स्टेट अफेयर्स पर नियंत्रण रखते हैं.
भारत के साथ रिश्तों पर क्या पड़ेगा असर?
पेजेश्कियान कह चुके हैं कि वो दुनिया से ईरान का अलगाव खत्म करेंगे, जो दर्शाता है कि वो दुनिया के तमाम देशों के साथ ईरान के अच्छे संबंध चाहते हैं. ऐसे में उनसे भारत के साथ ईरान के संबंधों को और मजबूत करने की उम्मीद है. हाल ही में भारत में ईरान के राजदूत डॉक्टर इराज इलाही ने कहा था कि 'ईरान का राष्ट्रपति कोई भी बने, भारत के साथ विदेश नीति में कोई बदलाव नहीं होगा. भारत और ईरान इतिहास में एक साथ रहे हैं और अब हम अपने संबंधों के एक नए युग की शुरुआत में हैं. ईरान-भारत संबंध मजबूत बने रहेंगे'
VIDEO | "Today, we celebrated the martyrdom of our dear President Ebrahim Raisi with Indian brothers from different religions. We expressed that all of us are brothers and we are all together in sad days as well as in happy days. India and Iran have been together in history and… pic.twitter.com/yGuFRehwvj
— Press Trust of India (@PTI_News) July 3, 2024
रईसी की मौत से पहले ही ईरान की भारत के साथ चाबहार बंदरगाह को लेकर डील हुई थी. इस पर भी राजदूत इलाही ने कहा, 'ईरान-भारत परियोजना चाबहार बंदरगाह में शामिल हैं और उस समझौते का हमेशा सम्मान किया जाएगा.' उन्होंने कहा कि हमें नया राष्ट्रपति मिल गया है, लेकिन ईरान की विदेश नीति और आंतरिक नीति में कोई बदलाव नहीं होगा. दोनों ही चर्चाओं में आंतरिक और बाहरी रूप से ईरानी शक्ति को मजबूत करने पर जोर दिया गया है.
Source : News Nation Bureau