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हमास-इजरायल की जंग का असल मास्टरमाइंड कौन है?

इस्लामिक दुनिया में सुन्नाी बहुल देशों का लीडर सऊदी अरब और शिया बहुल देशों का लीडर ईरान कई सालों से एक दूसरे के साथ अदावत रखते आए हैं. दूसरे विश्व युद्ध के बाद से कच्चे तेल के खजाने के तौर पर सामने आए इस इलाके में अमेरिका का सिक्का चला करता था.

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Prashant Jha
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Israel Palestine conflict( Photo Credit : File Photo)

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डेढ़ साल से भी ज्यादा वक्त से जारी यूक्रेन युद्ध अभी थमने का नाम नहीं ले रहा है कि अचानक मिडिल-ईस्ट में जंग का एक नया मोर्चा खुल गया है. कहने के तो इस जंग में अभी तक इजरायल और फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास ही शामिल हैं लेकिन इतिहास गवाह है कि मिडिल-ईस्ट में इजरायल की जंग बाकी अरब देशों के साथ फैलने में देर नहीं लगाती.  तो सवाल ये है कि आखिरकार अचानक ऐसा क्या हो गया है कि हमास ने खुद से कहीं ज्यादा तकतवर इजरायल पर हमला करके गाजा पट्टी में मौजूद अपने ठिकानों पर तबाही की दावत दे दी. दरअसल, इस जंग के मास्टरमाइंड मिडिल ईस्ट नहीं बल्कि कहीं और बैठे हैं और ये जंग महज इजरायल या हमास की नहीं बल्कि पूरे मिडिल ईस्ट के इलाके पर दबदबा कायम करने की जंग है, जिसमें एक ओर है अमेरिका और दूसरी ओर है चीन. कैसे अचानक शुरू हुई ये जंग भारत के लिए बड़ा झटका साबित हो सकती है, लेकिन पहले आपके बताते हैं कि जंग अचानक से शुरू नहीं हुई बल्कि इसकी पटकथा करीब 8 महीने पहले ही लिखी जा चुकी थी उस वक्क जब चीन ने इस इलाके के दो कट्टर दुश्मन देश ईरान और सऊद अरब के बीच समझौता कराया था.

यह भी पढ़ें: इजरायल ने गाजा की इस्लामिक यूनिवर्सिटी पर की बमबारी, हमास इंजीनियरों का है ट्रेनिंग सेंटर

दरअसल, इस्लामिक दुनिया में सुन्नाी बहुल देशों का लीडर सऊदी अरब और शिया बहुल देशों का लीडर ईरान कई सालों से एक दूसरे के साथ अदावत रखते आए हैं. दूसरे विश्व युद्ध के बाद से कच्चे तेल के खजाने के तौर पर सामने आए इस इलाके में अमेरिका का सिक्का चला करता था. 1979 में हुई इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान अमेरिका का दुश्मन बन गया जबकि सऊदी अरब अमेरिका का सबसे मजबूत पार्टनर बन गया. शिया सुन्नाी के इस झगड़े के बावजूद इस इलाके में अमेरिका के एक और देश इजरायल के खिलाफ लगभग पूरा अरब जगत एक एकजुट रहा है.

चीन ने कर दिया खेला

अब इस कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के खजाने वाले इलाके में अमेरिका की जगह अपना दबदबा बनाने के लिए चीन ने इसी साल फरवरी में सऊदी अरब और ईरान के बीच एक दूसरे की राजधानी में अपने मिशंस खोलने के लिए समझौता करा दिया. यूक्रेन युद्ध में उलझे अमेरिका के लिए ये एक बड़ा झटका था. जिस दुश्मनी को अमेरिका खत्म नहीं करा सका उसे चीन दोस्ती में बदलवा रहा था. बस यहीं से अमेरिका ने सऊदी अरब को अपने पाले में बनाए रखने की कवायद शुरू की.

सऊदी अरब और इजरायल में समझौते नहीं होने से अमेरिका का प्लान हो सकता है फेल
इसी साल जुलाई में अमेरिका के NSA जैस सुलिवन एक सीक्रेट एजेंडे के तहत सऊदी पहुंचे और कई मीडिया रिपोर्ट्स, के मुताबिक सऊदी अरब की इजरायल के साथ समझौते की फाउंडेशन तैयार की. अमेरिका की ये कोशिश सऊदी अरब को चीन के खेमे में जाने से रोकने और मिडिल ईस्ट में अपने खोए इकबाल को वापस पाने की है. जानकारी के मुताबिक इस संभावित समझौते में. सऊदी अरब इजरायल के साथ दुश्मनी भुलाकर उसे मान्यता देगा जिसके बदले में अमेरिका सऊदी अरब को अकगसी सुरक्षा की गारंटी देगा. सऊदी अरब को इजरायल के बेहतरीन हथियार भी मुहैया कराए जाएंगे.जाहिर है इस समझौते के बाद मिडिल ईस्ट के समीकरण तो बदल ही जाएंगे साथ ही इस इलाके में अमेरिका का रुतबा भी बरकरार रहेगा. लेकिन अब हमास के इजरायल पर हमले और इजरायल की जवाबी कार्रवाई में हो रही फिल्सतीनी मुसलमानों की तबाही ने सऊदी अरब के लिए इजरायल के साथ डील करना मुश्किल कर दिया है.  साफ है अरब देशों के सेंटीमेंट्स के खिलाफ जाकर सऊदी अरब इजरायल के साथ समझौता नहीं कर सकता और अमेरिका का प्लान फ्लॉप हो सकता है. अमेरिका का प्लवैन फ्लॉप होने कगा मतलब है चीन की इस इलाके की बिसात पर फिर से वापसी . और इसीलिए ऐसा माना जा रहा है कि हमास का खुद से कहीं तकतवर इजरायल पर हमला करना अमेरिका-सऊदी अरब की डील को रोकने की कोशिश हो रही है.

इस प्रोजेक्ट को  चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट की काट के तौर पर देखा जा रहा

अब बात करते हैं इस पूरी घटनाचक्र में भारत के नफे-नुकसान की. दरअसल, हाल ही में भारत की राजधानी दिल्ली में आयोजित हुई जी20 की मीटिंग साइडलाइंस में एक बड़े फैसले का आकलन हुआ था. ये फैसला था अमेरिका की पार्टनरशिप में भारत से यूएई, सऊदी अरब और इजरायल होकर यूरोप तक जाने वाले एक इकॉनोमिक कॉरिडोर के निर्माण का. इस  IMEC प्रोजेक्ट मे कुल 6,000 किलोमीटर का गलियारा तैयार किया जाएगा. इसमें 3,500 किमी समुद्री मार्ग और 2500 किमी जमीनी मार्ग होगा. इस प्रोजेक्ट के तहत पहले भारत के मुंबई पोर्ट से कार्गो समुद्री मार्ग से खाड़ी के देशों तक जाएगा. वहां से रेल नेटवर्क के जरिए इजरायल के हाइफा पोर्ट तक पहुंच कर फिर से समुद्री मार्ग के जरिए ग्रीस के जरिए यूरोप में एंट्री लेगा.  इस कॉरिडोर में रेलवे लाइन के साथ-साथ हाई-स्पीड डेटा केबल, हाइड्रोजन पाइपलाइनऔर इलेक्ट्रिसिटी केबल भी होगी. ये परा प्रोजेक्ट चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट की काट के तौर पर देखा जा रहा है .अरबों डॉलर का ये प्रोजेक्ट सऊदी अरब और इजरायल की संभावित दोस्ती पर ही निर्भर है. लेकिन अब फिलिस्तीन-इजरालय की जंग ने सऊदी अरब को दो राहे पर खड़ा कर दिया है और इससे भारत-अमेरिका के इस बड़े प्रोजेक्ट पर भी सवाल खड़ा हो रहा है. जाहिर है, इजरायल को उसकाने वाला हमास का हमला बस गाजापट्टी के एअक छोटे से जमननी के टुकड़े की ही जंग नहीं बल्कि इसमें बड़े इंटरनेशनल प्लेयर शामिल है और फिलहाल इस दजंग का बड़ा फायदा चीन को और बड़ा घाटा भारत को हो दिख रहा है.

Source : Sumit Kumar Dubey

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