Importance of Lok Sabha Speaker's post: लोकसभा चुनावों में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) 240 सीटों के साथ बड़ा दल है. उसकी अगुवाई वाला गठबंधन राष्ट्रीय जनतांत्रिक (एनडीए) की आज यानी शुक्रवार को संसदीय दल की बैठक हुई, जिसमें नई सरकार बनाने के फॉर्मूले पर चर्चा हुई. इस बीच, नई सरकार के गठन को लेकर बार्गेनिंग का दौर भी जारी है. गठबंधन में बीजेपी के सहयोगी दल तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) दोनों ही समझ रहे हैं कि उनके बिना नई सरकार नहीं बन सकती है. उनकी नजर नई सरकार में बड़े पदों और लोकसभा स्पीकर पद है. ऐसे में सवाल है कि TDP और JD(U) बीजेपी से लोकसभा स्पीकर पद काम क्यों मांग रहें, इस पद से उनको इतना लगाव क्यों है, क्या है इस पद की अहमियत, और क्या होते हैं अधिकार. आइए जानते हैं.
TDP ने BJP से मांगा स्पीकर पद
दरअसल, 1998 के चुनावों में किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था. तब बीजेपी के अटल बिहारी वाजपेयी ने टीडीपी के बाहरी समर्थन से NDA गठबंधन सरकार बनाई थी. तब टीडीपी को स्पीकर पद दिया गया था. उसके नेता जीएमसी बालयोगी स्पीकर बने थे. अब एक बार फिर इस पद को लेकर इसलिए टीडीपी की ओर से डिमांड बढ़ गई है, जिसके लिए वो फुल बार्गेनिंग के फुल मूड में दिख रही है.
स्पीकर पद पर जेडीयू की भी नजरें
उधर, जेडीयू की भी नजरें स्पीकर पद पर टिकी हुई हैं. खबरे हैं कि उसने भी बीजेपी से इस पद को लेकर मांग की है. जेडीयू नेता केसी त्यागी भी कह रहे हैं कि नई कैबिनेट में उनका प्रतिनिधित्व उनके पर्पोर्शन के अनुसार होना चाहिए. मतलब ये कि जेडीयू की जो भागीदारी है, उस हिसाब से उसको कैबिनेट में हिम्मेदारी मिलनी चाहिए. 2019 में JDU के 16 सांसद थे, लेकिन उसको सिर्फ एक ही कैबिनेट मंत्री पद मिला और आरपी सिंह केंद्रीय मंत्री बने थे. अब जेडीयू चाहती है कि उसके केंद्रीय मंत्रियों की संख्या बढ़े.
स्पीकर पद छोड़ने को तैयार नहीं BJP!
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बीजेपी ने एनडीए सहयोगियों मुख्यतौर पर टीडीपी और जेडीयू की मांगों पर अपनी सीमा तय कर ली है. पार्टी ने जोर दिया है कि वह गृह, वित्त, रक्षा, विदेश मंत्रालय और कृषि जैसे प्रमुख मंत्रालय नहीं छोड़ेगी. लोकसभा अध्यक्ष का पद भी छोड़ने को तैयार नहीं है!
क्यों इतना जरूरी है स्पीकर पद?
2014, 2019 में पूर्ण बहुमत की मोदी सरकार था. बीजेपी ने अपने हिसाब से सुमित्रा महाजन और ओम बिड़ला को लोकसभा स्पीकर बनाया था. लेकिन 2024 में ऐसा नहीं है, क्योंकि बीजेपी बहुमत से दूर है, उसे सरकार बनाने और उसे चलाने के लिए सहयोगी दलों पर निर्भर रहना होगा. अगर किसी भी तरह से BJP सरकार बना भी ले तो उसको लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ सकता है, जिसके तहत उसको लोकसभा में बहुमत साबित करना होगा. ऐसे में स्पीकर का पद काफी अहम हो जाता है. आइए इसे 1998 की वाजपेयी सरकार के गिरने से समझते हैं.
...ऐसा होने पर स्पीकर की भूमिका अहम
1998 में लोकसभा चुनाव हुए और नतीजे त्रिशंकु संसद (Hung Parliament) के रूप में सामने आए, जिसमें कोई भी पार्टी या गठबंधन बहुमत हासिल नहीं कर सका. बीजेपी के वाजपेयी टीडीपी के बाहरी समर्थन से एनडीए की सरकार बनाई. लेकिन जब अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) ने अपना समर्थन वापस ले लिया, तो वाजपेयी सरकार अल्पमत में आ गई. उस समय टीडीपी के जीएमसी बालयोगी स्पीकर थे. माना जाता है कि बहुमत परीक्षण के समय जीएमसी बालयोगी ने ही गिरधर गमांग को वोट डालने की स्वीकृति दी थी और एक वोट से वाजपेयी सरकार गिर गई थी. गिरधर गमांग कांग्रेस सांसद थे, लेकिन वे लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिए बगैर ओडिशा के मुख्यमंत्री बन गए थे. बालयोगी चाहते तो गमांग को वोट देने से रोक सकते थे, लेकिन उन्होंने उनको विवेक के आधार पर वोट देने की अनुमति दे दी थी.
स्पीकर पद के क्या होते हैं अधिकार
- स्पीकर सदन का कस्टोडियन होता है. वह सदन के सदस्यों के अधिकारों का कस्टोडियन होता है. हर मामले में उसका निर्णय ही आखिरी होता है, चाहे वो रेजोल्यूशन के बारे में या मोशन के बारे में हो या फिर किसी क्वेशचन के बारे में हो. उनके फैसल को चुनौती भी नहीं दी जा सकती है. हर चीज में स्पीकर का निर्णय अंतिम होता है.
- लोकसभा स्पीकर का पद संवैधानिक होता है. सदन में उसकी मंजूरी के बिना कुछ भी नहीं हो सकता. स्पीकर को सदन की मर्यादा और व्यवस्था बनाए रखनी होती है. ऐसा नहीं होने पर वो सदन को स्थगित या फिर निलंबित कर सकता. इतना ही नहीं, मर्यादा का उल्लंघन करने वाले सांसदों को भी स्पीकर निलंबित कर सकते हैं.
- पाला बदलने वाले सदस्यों की अयोग्यता पर भी स्पीकर दल-बदल कानून के तहत फैसला करते हैं. हालांकि, 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में साफ कर दिया था कि स्पीकर के फैसले को अदालत में चुनौती दी जा सकती है. इसके बावजूद दल-बदल के मामले में स्पीकर के पास अहम पावर होती हैं.
- स्पीकर सदन में वोटिंग नहीं करता है, लेकिन बराबरी की स्थिति में यानी सदन में किसी प्रश्न पर बराबर मत बंट जाते हैं, तो स्पीकर को वोट करने का अधिकार होता है. ऐसे वोट को कास्टिंग वोट कहा जाता है, इसका मकसद गतिरोध को हल करना होता है.
- वह फैसला करता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं और इस प्रश्न पर उसका निर्णय अंतिम होता है.
Source : News Nation Bureau