Hijab-Eid Ban In Tajikistan: मुस्लिम बहुल देश ताजिकिस्तान में अब महिलाएं हिजाब नहीं पहन पाएंगी, क्योंकि ताजिकिस्तान की सरकार ने हिजाब को 'एलियन गारमेंट' (विदेशी परिधान) बताते हुए बैन लगा दिया है. इसके साथ ही देश में ईद के त्यौहार पर बच्चों को दी जाने वाली ईदी को भी बैन कर दिया गया है. इस आदेश का अगर किसी ने पालन नहीं किया तो उसे भारी भरकम जुर्माना देगा. आखिर ताजिकिस्तान में हिजाब पहनने और ईदी देने पर बैन क्यों लगा. इसके पीछे की वजह आपको जरूरी जाननी चाहिए. ये भी जानिए की हिजाब को लेकर भारत में क्या रुख है.
कितना देना पड़ सकता है जुर्माना
ताजिकिस्तान की संसद ने ईद-उल-फितर (Eid al-Fitr) और ईद-उल-अजहा (Eid Al-Adha) से पहले 'एलियन गारमेंट' कहे जाने वाले हिजाब पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून को मंजूरी दे दी है और ऐसा करने वालों पर जुर्माना लगाया है. नए कानून का पालन न करने पर 60 हजार से 5 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान रखा गया है. वहीं अगर कोई धार्मिक या सरकारी अधिकारी इस कानून का पालन नहीं करेगा तो उस पर 3-5 लाख तक का फाइन लगाया जाएगा.
हिजाब-ईदी पर क्यों लगाया बैन? (Tajikistan Hijab Ban Reason)
- ताजाकिस्तान सरकार का कहना है कि ये कदम देश में धर्मनिरपेक्षता और ताजिक कल्चर (Tajik Culture) को बढ़ावा देने और धर्म के सार्वजनिक प्रदर्शन पर अंकुश लगाने के लिए उठाया है. सरकार ने ईद के दौरान उपहार और पैसे मांगने की प्रथा ईदी पर भी बैन लगा दिया है. करीब एक करोड़ की आबादी वाले ताजिकिस्तान में 96% से ज्यादा लोग इस्लाम धर्म मानते हैं. हालांकि, देश में इस्लाम के विभिन्न संप्रदायों का प्रभुत्व है, जिनमें सुन्नी मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक है.
- ताजिकिस्तान हिजाब को इस्लामी चरमपंथियों (Islamic extremists) से जोड़कर देखता है. ताजिकिस्तान में कई वर्षों से हिजाब पर अनऑफिशियली बैन था.
- देश के शिक्षा मंत्रालय ने 2007 में छात्रों के लिए इस्लामी परिधान और वेस्टर्न-स्टाइल मिनीस्कर्ट दोनों पर बैन लगा दिया था.
- सरकार इनके बजाय ताजिक नेशनल ड्रैसों को बढ़ावा देना चाहती है और हाल के वर्षों में इसके लिए देश कैंपेन भी चलाए गए.
- दो साल पहले देश की राजधानी दुशांबे में काले कपड़े बेचने पर बैन लगा दिया था.
- इतना ही नहीं अनऑफिशियल रूप से घनी दाढ़ी रखने पर भी बैन लगा रखा है.
- देश में इस्लामी प्रार्थना को विशिष्ट स्थानों तक सीमित रखने के लिए मौजूदा कानून हैं.
हिजाब-ईदी बैन होने पर मचा हंगामा
ऐसे में हिजाब और ईदी बैन होने पर हंगामा मचा हुआ है. ताजिकिस्तान सरकार के फैसले की पूरे देश में आलोचना हो रही है. मानवाधिकार संगठनों समेत मुस्लिमों से जुड़े कई ग्रुप्स ने नए कानून का विरोध किया है. इस्लामिक देश ताजिकिस्तान के इस फैसले के विरोध में हैं. अफगानिस्तान में यूनियन ऑफ इस्लामिक स्कॉलर एंड क्लेरिक्स ने हिजाब को बैन किए जाने की निंदा की है.
वहीं काउंसिल ऑफ अमेरिकन-इस्लामिक रिलेशंसन (CAIR) ने भी ताजिकिस्तान के इस फैसले पर आपत्ति जताई है. सीएआईआर निदेशक कोरी सैलर ने कहा, 'हिजाब पर प्रतिबंध लगाना धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है. धार्मिक पोशाक पर इस तरह के प्रतिबंधों का किसी भी देश में कोई स्थान नहीं होना चाहिए, जो अपने लोगों के अधिकारों का सम्मान करता हो.'
हिजाब को लेकर भारत में क्या रुख
2021 में भारतीय राज्य कर्नाटक में हिजाब को लेकर जबरदस्त विवाद हुआ था. इस विवाद की शुरुआत उडुपी के गवर्मेंट पीयू कॉलेज से हुई थी. हुआ ऐसा था कि हिजाब पहनकर आई 6 छात्राओं को क्लास में आने से रोक दिया था. इसके बाद कॉलेज के बाहर प्रदर्शन हुए. हिजाब को लेकर उडुपी से उठा हंगामा देश के अन्य राज्यों में फैल गया. मामला कर्नाटक हाईकोर्ट पहुंचा. कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा था कि इस्लाम में हिजाब पहनना धर्म का अभिन्न अंग नहीं है, इसीलिए इसे शैक्षणिक संस्थानों में नहीं पहना जा सकता है.
कर्नाटक हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की उस अपील को खारिज किया, जिसमें हिजाब को महिलाओं का मौलिक अधिकार बताया गया था. साथ ही कर्नाटक हाईकोर्ट ने सरकार को इस संदर्भ में आदेश पारित करने का अधिकार भी दिया. इसके बाद से ही मामला शांत हो गया था. हालांकि मुस्लिम पक्ष इस फैसले को लेकर सहमत नहीं थी. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
मामले पर सुप्रीम कोर्ट का खंडित आदेश आया. जस्टिस हेमंत गुप्ता ने जहां हिजाब बैन के कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. वहीं दूसरे जस्टिस सुधांशु धूलिया ने हिजाब बैन के फैसले को खारिज कर दिया है.
जस्टिस धूलिया ने कहा कि हाईकोर्ट ने गलत रास्ता अपनाया है और आखिर में यह मामला अनुच्छेद-14 और 19 से जुड़ा हुआ है. उन्होंने कहा कि आखिरी सवाल तो यही है कि लड़कियों की जो शिक्षा है वह सबसे अहम है और वह दिमाग में रखना चाहिए. उनकी जिंदगी बेहतर करना दिमाग में रखना चाहिए. दोनों जस्टिस के अलग-अलग मत के बाद मामले को चीफ जस्टिस को भेजा गया. सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलील के बाद 22 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था.
Source : News Nation Bureau