28 पार्टियों का इंडिया गठबंधन विपक्षी दलों के साथ चौथी बार फिर एक छत के नीचे आया. बैठक का उद्देश्य था कि विपक्षी दलों के बीच सीट शेयरिंग, संयोजक का नाम समेत कई मुद्दों पर एक राय कायम की जाए. बताया जा रहा है कि इन मुद्दो पर विस्तार से चर्चा भी हुई सबसे खास बिहार के मुख्यमंत्री और इंडिया गठबंधन की नींव रखने वाले नीतीश कुमार भी बैठक में शामिल हुए और जल्द से जल्द सीट शेयरिंग के मुद्दे पर आम सहमति बनाने की अपील की, लेकिन जिस बात का डर शुरू से था वही हुआ. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक ऐसा प्रस्ताव रख दिया, जिससे विपक्षी एकजुटता में सियासी माहौल गरमा गया. ममता दीदी ने ऐसी चाल चली की बिहार यानी नीतीश और लालू की सारी सियासत धरी रह गई.
दीदी ने मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए रख दिया. जिस नाम के लिए नीतीश इतने दिनों से लामबंदी कर रहे थे, उस नाम पर ममता ने सियासी पानी फेर दिया. खड़गे का नाम सुनते ही ना सिर्फ नीतीश बल्कि नीतीश के नाम के पीछे अपने बेटे तेजस्वी का भविष्य तलाशने वाले लालू यादव भी नाराज हो गए . नाराजगी ऐसी कि दोनों दिग्गज लालू और नीतीश कुमार गठबंधन की बैठक के बीच से ही निकल गए और साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी शामिल नहीं हुए. आइए जानते हैं इंडिया गठबंधन की इनसाइड स्टोरी. जहां दल तो मिले, लेकिन दिल नहीं मिले.
ममता बनर्जी ने खड़गे का नाम आगे कर नीतीश की इच्छा पर पानी फेर दिया
दरअसल, इंडिया गठबंधन का जब निर्माण हुआ था तो उसमें नीतीश कुमार की भूमिका सबसे अहम मानी गई थी. नीतीश कुमार ने विपक्षी दलों को एक साथ लाने के लिए जमकर पसीना बहाया था. ये नीतीश कुमार की ही कार्य कुशलता थी जिन्होंने आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को एक मंच पर लाने में कामयाब हुए थे. इसके बाद चर्चा होने लगी कि नीतीश कुमार ही गठबंधन का चेहरा होंगे. लालू यादव ने भी पिछले दिनों नीतीश कुमार के नाम का समर्थन किया था. लालू यादव ने कहा था कि नीतीश कुमार के सामने कोई चुनौती नहीं है. वो गठबंधन का नेता हो सकते हैं, लेकिन दिल्ली में आयोजित गठबंधन की चौथी बैठक में एकाएक ममता बनर्जी ने मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम पीएम उम्मीदवार के लिए प्रस्तावित कर दिया. इससे बैठक में शामिल नीतीश और लालू यादव अचंभित रह गए. इन दोनों नेताओं को उम्मीद नहीं थी कि ममता बनर्जी खड़गे के नाम का प्रस्ताव रखेंगी. रही सही कसर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पूरी कर दी. केजरीवाल ने ममता के प्रस्ताव का समर्थन कर दिया. फिर क्या था नीतीश और लालू यादव नाराज होकर बैठक से चल दए.
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नीतीश विधानसभा चुनावों साथ लड़ना चाह रहे थे चुनाव
हाल ही में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ी थी. जबकि नीतीश कुमार और अखिलेश यादव चाहते थे कि कांग्रेस साथ मिलकर चुनाव लड़े. आज हुई बैठक में नीतीश ने इस बात का जिक्र भी किया. उन्होंने कहा कि 5 राज्यों में गठबंधन के साथ अगर चुनाव लड़ते तो नतीजे आज कुछ और होते. नीतीश कुमार मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में साथ लड़ने की बात कही थी, लेकिन कांग्रेस ने नीतीश की बात को किनारा करते हुए अलग से चुनाव लड़ने का फैसला किया. नतीजा कांग्रेस को तीनों राज्यों में करारी हार का सामना करना पड़ा. हालांकि, तेलंगाना में कांग्रेस ने बाजी मार ली.
सीट शेयरिंग पर कांग्रेस के तेवर अब भी गर्म
सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस के तेवर वहीं है जो पहले थे. क्योंकि हिंदी हार्ट लैंड में कांग्रेस भले ही सरकार नहीं बना पाई, लेकिन तीनों राज्यों में कांग्रेस अपने वोट शेयर को लेकर खासा उत्साहित है. कांग्रेस का मानना है कि इन राज्यों में गठबंधन की दूसरी पार्टियों के पास कोई ठोस दावेदारी नहीं. इन राज्यों में भाजपा को टक्कर देने के लिए कांग्रेस ही एक मात्र विकल्प है. लिहाजा कांग्रेस इन राज्यों में सीट शेयरिंग पर एक मत होने के मूड में नजर नहीं आ रही है. पश्चिम बंगाल, बिहार, दिल्ली, यूपी और पंजाब में कांग्रेस को लगता है कि उनके मुकाबले किसी अन्य पार्टी में इतना दम नहीं है कि भाजपा से सीधा टक्कर ले सकें. इन पांच राज्यों लोकसभा की 180 से अधिक सीटें हैं. कांग्रेस को लगता है कि यहां पर बीजेपी से सीधा मुकाबला वही कर सकती है. हालांकि, बंगाल में तृणमूल, वाम मोर्चा और कांग्रेस में सीट शेयरिंग होना मुश्किल सा लग रहा है.
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संयोजक पर पिक्चर नहीं हुई क्लियर
इंडिया गठबंधन की चौथी बैठक में उम्मीद जताई जा रही थी कि आज गठबंधन को संयोजक मिल जाएगा, लेकिन संयोजक के मुद्दे पर आज भी सहमति नहीं बनी. संयोजक की दौड़ में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम सबसे आगे चल रहा था, वहीं अब ममता बनर्जी ने मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम प्रस्तावित कर एक नया शिगूफा छोड़ दिया है. ऐसे में संयोजक के नाम पर आज भी सस्पेंस बरकरार है. ऐसे में यह साफ दिख रहा है कि गठबंधन में दल तो शामिल हो गए, लेकिन नेताओं के दिल नहीं मिले हैं. ऐसे में ये भी सवाल उठता है कि क्या गठबंधन में सिर्फ बैठकें होंगी या फिर कुछ निष्कर्ष भी निकलेगा. क्योंकि लोकसभा चुनाव में अब 6 महीने से भी कम का समय बचा है. मोदी के रथ पर सवार बीजेपी को हराने के लिए इंडिया गठबंधन ऐड़ी चोटी का जोड़ तो लगा रही है, लेकिन सभी दल एक मुद्दे पर सहमत नहीं हो पा रहे हैं.
Source : प्रशांत झा