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क्या 1991 में अल्पमत की नरसिम्हा सरकार से सीख लेंगे नरेंद्र मोदी? विपरीत हालात में भी लिए थे बड़े फैसले 

लोकसभा 2024 के परिणामों ने इस बार एनडीए की परिस्थितियां बदल दी हैं, इस बार भाजपा को पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हुआ है. ऐसे में एनडीए की सरकार बनने पर क्या पीएम मोदी बड़े फैसले ले पाएंगे। इस तरह के हालात नरसिम्हा राव सरकार में भी देखे गए थे.  

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Mohit Saxena
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lok sabha election results

lok sabha election results( Photo Credit : social media)

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लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम चौंकाने वाले रहे हैं. जहां पर चुनाव से पहले सभी एग्जिट पोल भाजपा को पूर्ण बहुमत और एनडीए को 400 पार दिखा रहे थे. वहीं 4 जून को बाद परिणाम ने सबको हैरान कर दिया. भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका है. वह 240 पर सिमट गई. हालांकि एनडीए को 293 सीटें मिली हैं. वहीं विपक्ष की बात करें तो इंडिया अलायंस को 234 सीटें मिली हैं. इस तरह से विपक्ष की ताकत में इजाफा हुआ है. इस बीच 9 जून को नरेंद्र मोदी पीएम पद की शपथ लेंगे. उन्हें सहयोगी दलों  के 52 सांसदों का समर्थन प्राप्त होगा. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि मोदी 3.0 सरकर बड़े फैसले को लेने में कितना कारगर होने वाली है. यह सवाल उठ रहा है कि पांच साल तक क्या भाजपा सभी 15 दलों को साथ लेकर चल पाएगी. 

ऐसा भी कहा जा रहा है ​कि अब सत्ता भाजपा के हाथ में होने के बजाए एनडीए सहयोगी दलों के खाते में जाएगी. इससे कहीं आर्थिक सुधार की रफ्तार तो कम नहीं होगी. हालांकि पीएम मोदी ने नई सरकार बनने पर बड़े फैसले के ​संकेत दिए थे. अब सवाल ये उठता है कि वे सहयोगी दलों के साथ ऐसा कर पाएंगे. ऐसा ही कुछ सवाल 1991 के लोकसभा चुनाव के परिणामों के बाद भी उठे थे.  

आपको बता दें कि 1991 में कांग्रेस नेता पी वी नरसिम्हा राव ने बिना किसी के समर्थन से केंद्र में अल्पमत की सरकार बनाई. यह पूरे पांच साल तक चली. इस दौरान राव सरकार ने कई बड़े फैसले लिए, जिससे सरकार आर्थिक संकटों से उभर पाई. आर्थिक उदारीकरण का दौर शुरू हुआ. देश में भारी निवेश हुआ. 

जानें 1991 में कांग्रेस को मिली थीं कितनी सीटें 

1991 के आम चुनाव में पंजाब और जम्मू कश्मीर की 19 सीटों को लेकर तीन चरणों पर वोटिंग हुई. पहले चरण में 20 मई को मतदान हुआ. 211 सीटों पर मतदान हुआ. उस दिन तमिलनाडु के पेरंबदूर में राजीव गांधी की एलटीटीई (LTTE) के आत्मघाती हमले में हत्या हो गई. पूरे देश में कांग्रेस के प्रति सहानुभूति की लहर देखी गई. 12 और 15 जून को हुए मतदान में कांग्रेस के पक्ष में हवा बही. परिणाम जब सामने आए तो कांग्रेस को 236 सीटें मिलीं. वहीं विपक्ष में भाजपा 120 सीटें जीतकर दूसरे स्थान पर रही. अन्य दलों में जनता दल को 59, सीपीएम को 35, सीपीएम को 14, टीडीपी को 13 और एआईडीएमके को 11 सीटें प्राप्त हुईं. 

इस तरह से किसी भी दल को बहुमत नहीं मिल पाया. उस समय कांग्रेस के नरसिम्हा राव सामने आए. उन्हें सरकार बनाने का मौका दिया गया. इस बीच फरवरी में पंजाब और जम्मू-कश्मीर में इलेक्शन हुए और कांग्रेस की 11 सीटें बढ़ गईं. इसके बाद ये आंकड़ा 247 तक पहुंचा. इस परिणाम के बावजूद नरसिम्हा राव ने पांच साल तक सफलता के साथ सरकार चलाई. इस दौरान उन्होंने अपनी शर्तो पर बड़े फैसले लिए.  प्रणब मुखर्जी जैसे बड़े नेताओं को किनारे करके उन्होंने मनमोहन सिंह को वित्त मंत्रालय का कार्यभार सौंपा. मनमोहन सिंह के पास कोई भी राजनीतिक अनुभव नहीं था. इसके बाद भी उन्होंने आर्थिक सुधार और उदारीकरण का सबसे बड़ा निर्णय लिया. 

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बिना किसी डर के लिए बड़े फैसले 

1991 में देश बड़े आर्थिक संकट से गुजर रहा था. विदेशी मुद्र भंडार खाली होने के कगार पर था. इस दौरान उन्होंने दो बार रुपये का अवमूल्यन करने का ऐतिहासिक फैसला किया. इस तरह का निर्णय पहले कभी नहीं ​नहीं गया था. इसके बाद आर्थिक उदारीकरण के पहले चरण को पूरा किया. कई राजनीतिक और प्रशासनिक निर्णय लिए गए. उन्होंने दोबारा न्यूक्लियर प्रोग्राम को आरंभ किया. इस कारण आने वाली अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार इसे अमलीजामा पहना पाई. अटल सरकार ने पोकरण-2 में परमाणु बमों का सफल परीक्षण किया.

चार राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाया 

दिसंबर 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढह जाने के बाद नरसिम्हा सरकार ने कड़े फैसले लिए. उन्होंने भाजपा शासित चार राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाया. अल्पमत की सरकार होने के बाद भी उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश की भाजपा सरकार को बर्खास्त किया. 

अनुभवी सहयोगियों से ये संभव हो सका 

अल्पमत में होने के बाद भी नरसिम्हा राव सफलता से सरकार चला पाए क्योंकि उनके पास ऐसे सांसद थे जो काफी अनुभवी थे. उनके मंत्रिमंडल में प्रणब मुखर्जी, अर्जुन सिंह, शरद पवार, बलराम जाखड़, बी. शंकरानंद जैसे कई बड़े अनुभवी नेता थे. इन्होंने मुश्किल काम को भी स्थिरता के साथ हल कर दिया. नरेंद्र मोदी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है मंत्रालय का आवंटन. अगर अनुभवी के हाथों में मंत्रालय का कार्यभार जाता है तो एनडीए सरकार अपना 5 साल का कार्यकाल आसानी से पूरा कर सकती है. 

Source : News Nation Bureau

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